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    निकाह हलाला

    जम्मू-कश्मीर में लागू अनुच्छेद 35ए को लेकर सियासत एक बार फिर गरमा गई है। कई दिनों से जारी बहसबाजी के बीच इस अनुच्छेद को चुनौती देने वाली एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई है। इस पर सुनवाई करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने 5 सदस्यीय बेंच बनाई है जो 6 हफ्ते बाद इस मामले की सुनवाई करेगी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दायर याचिका जम्मू-कश्मीर में लागू अनुच्छेद 35ए और अनुच्छेद 370 के संवैधानिकता के जाँच की मांग करती है। कोर्ट द्वारा गठित बेंच इस मामले पर सुनवाई करते हुए अनुच्छेद 35ए और अनुच्छेद 370 की संवैधानिकता जांचेगी। इसमें इन अनुच्छेदों के तहत जम्मू-कश्मीर को मिलने वाला विशेष राज्य का दर्जा भी पुनर्मूल्यांकित किया जायेगा। इस पर अपना पक्ष रखते हुए जम्मू-कश्मीर सरकार ने कोर्ट में कहा है कि इस मुद्दे को लेकर 2002 में हाई कोर्ट ने फैसला सुनाया था जिसका वह पालन कर रही है।

    अनुच्छेद 35ए

    पिछले कुछ दिनों से अनुच्छेद 35ए सुर्ख़ियों में है। जम्मू-कश्मीर विधानसभा को विशेषाधिकार देने वाला यह अनुच्छेद भारतीय संविधान में वर्णित नहीं है। इसे हटाने की मांग को लेकर दायर याचिका मात्र से बवाल मचा हुआ है। जम्मू-कश्मीर के प्रमुख राजनीतिक दल इस अनुच्छेद को हटाने की मांग को लेकर अपना विरोध जता चुके हैं। जम्मू-कश्मीर अध्ययन केंद्र ने अनुच्छेद 35ए को जम्मू-कश्मीर के लोगों के साथ किया गया एक ‘संवैधानिक धोखा’ करार दिया है। 14 मई, 1954 को देश के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने एक आदेश पारित किया था। इसी आदेश को आधार बनाकर देश के संविधान में एक नया अनुच्छेद 35ए जोड़ दिया गया था।

    हाशिये पर जीवन गुजारने को मजबूर करता संवैधानिक धोखा

     

    अनुच्छेद 35ए जम्मू-कश्मीर की विधानसभा को यह अधिकार देती है कि वह स्थायी निवासी की परिभाषा निर्धारित करे। इसके अनुसार राज्य सरकार को यह अधिकार है कि वह विभाजन के वक़्त दूसरी जगहों से आये शरणार्थियों और भारत के अन्य राज्यों के लोगों को कौन सी सहूलियतें दें और कौन सी नहीं। यह अनुच्छेद 370 का ही हिस्सा है। इसके अनुसार जम्मू-कश्मीर में देश के अन्य राज्यों के लोग जमीन नहीं खरीद सकते। इस धारा की वजह से आजादी के 70 सालों बाद भी लाखों लोगों को जम्मू-कश्मीर में स्थायी नागरिकता नहीं मिल सकी है। इन्हें कश्मीर में अल्पसंख्यक कहा जाता है पर इन्हें अल्पसंख़्यकों के हिस्से का 16 फ़ीसदी आरक्षण नहीं मिलता। इन लोगों में 80 फ़ीसदी दलित हिन्दू है जो विभाजन के वक़्त पकिस्तान से भारत आये थे। आज भी वह मूलभूत सुविधाओं से दूर हैं और हाशिए पर जीवन गुजारने को मजबूर हैं। इन तबकों के बच्चों को जम्मू-कश्मीर के राजकीय संस्थानों में दाखिला नहीं मिलता और ये लोग विधानसभा चुनावों में भी मतदान नहीं कर सकते। इन सब अल्पसंख्यकों में सबसे बुरी स्थिति वाल्मीकि समाज के लोगों की है जिन्हें आज भी राज्य में केवल सफाईकर्मी की नौकरी मिलती है और इनका वेतन भी बहुत कम होता है।

    अनुच्छेद 370

    अनुच्छेद 370 भारतीय संविधान का विशेष अनुच्छेद है जिसके तहत जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त है। देश की राजनीति के इतिहास में यह धारा बहुत विवादित रही है। कई शीर्ष राजनीतिक दल और कानूनविद इस धारा को ही जम्मू-कश्मीर में उत्पन्न अलगाववाद की वजह मानते हैं। जब जम्मू-कश्मीर में इस धारा को लागू किया गया था तो इसे अस्थायी और संक्रमणकालीन परिस्थितियों तक ही लागू रखने का हवाला दिया गया था। तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित नेहरू के विशेष हस्तक्षेप से इसे तैयार किया गया था।

    जम्मू-कश्मीर

    अनुच्छेद 370 के तहत मिलने वाले विशेषाधिकार

    – जम्मू-कश्मीर के नागरिकों के पास दोहरी नागरिकता होती है।
    – जम्मू-कश्मीर के अंदर भारत के राष्ट्रध्वज या राष्ट्रप्रतीकों का अपमान अपराध नहीं है।
    – भारत के न्यायपालिका के आदेश जम्मू-कश्मीर के अंदर मान्य नहीं होते हैं।
    – भारत की संसद जम्मू-कश्मीर के सन्दर्भ में कोई बड़ा कानून नहीं बना सकती। कानून निर्धारण का दायरा सीमित है।
    – जम्मू-कश्मीर की महिला यदि किसी अन्य भारतीय राज्य के व्यक्ति से विवाह करे तो उसकी कश्मीरी नागरिकता समाप्त हो जायेगी। वहीं किसी पाकिस्तानी नागरिक से विवाह करने पर उसे जम्मू-कश्मीर की नागरिकता मिल जायेगी।
    – अनुच्छेद 370 की वजह से कश्मीर में रह रहे पाकिस्तानियों को भी भारत की नागरिकता मिल जाती है।
    – भारत के किसी अन्य राज्य का व्यक्ति कश्मीर में जमीन नहीं खरीद सकता।
    – अनुच्छेद 370 की वजह से जम्मू-कश्मीर में RTI, RTE और CAG लागू नहीं हैं। वहाँ अन्य भारतीय कानून भी बेअसर हैं।
    – जम्मू-कश्मीर का अलग राष्ट्रध्वज होता है।
    – जम्मू-कश्मीर की विधानसभा का कार्यकाल 6 साल का होता है।
    – कश्मीर में पंचायत के अधिकार नहीं हैं।
    – जम्मू-कश्मीर की महिलाओं पर शरीयत कानून लागू होते हैं।
    – कश्मीर में चपरासी को 2500/- ही मिलते है।
    – कश्मीर में अल्पसंख्यकों(हिन्दू, सिख) को 16% आरक्षण नहीं मिलता है।

    सीएम महबूबा कर चुकी हैं पीएम मोदी से मुलाक़ात

    इस मसले को लेकर जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती ने हाल ही में प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी से मुलाक़ात की थी। मुलाक़ात के बाद पत्रकारों से बातचीत में मुफ़्ती ने कहा था कि यह हमारे एजेंडे में पहले से तय था कि जम्मू-कश्मीर के लोगों को मिल रहे विशेषाधिकारों में कोई बदलाव नहीं होगा। प्रधानमन्त्री जी ने भी इस पर अपनी सहमति जताई है। उन्होंने कहा कि राज्य में हालत अब सुधार रहे हैं। लोगों को जीवनस्तर सुधरने के लिए कई अहम फैसले लिए गए हैं और धीरे-धीरे सब पटरी पर लौट आयेगा। उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर एक मुस्लिम बाहुल्य राज्य है जो अभी मुश्किल दौर से गुजर रहा है। ऐसे में उन लोगों को विशेष अधिकार मिलने ही चाहिए। राज्य के लोगों से उनका विशेषाधिकार छीनने पर निश्चित रूप से उनकी नाराजगी बढ़ेगी और जनता में नकारात्मक सन्देश जायेगा। इस सिलसिले में उन्होंने केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह से भी मुलाक़ात की और उन्हें राज्य की स्थिति से अवगत कराया।

    महबूबा मुफ़्ती

     

    कुछ दिनों पूर्व ही महबूबा मुफ़्ती ने सरकार को चेताया था कि अगर कश्मीर के लोगों को मिल रहे विशेषाधिकारों में किसी भी तरह की कोई कमी आई तो कश्मीर में तिरंगा थामने वाला कोई नहीं मिलेगा। नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष फारुख अब्दुल्ला ने भी कहा था कि अनुच्छेद 35ए को हटाने से जम्मू-कश्मीर में ‘जन विद्रोह’ की स्थिति उत्पन्न हो जाएगी। अभी तक जम्मू-कश्मीर की सभी प्रमुख राजनीतिक पार्टियां इन्हीं विशेषाधिकारों को लेकर अपनी सियासी रोटी सेंकती रही हैं और इनके ख़त्म होने से इन पार्टियों को अपने अस्तित्व की चिंता भी सताने लगी है। अभी तक प्रमुख राष्ट्रीय पार्टियां भाजपा और कांग्रेस जम्मू-कश्मीर में सहयोगी दल की भूमिका में रही हैं और मुमकिन है विशेषाधिकार हटने के बाद ये कश्मीरी पार्टियां हाशिए पर आ जायें या सहयोगी दल की भूमिका तक ही सिमट जायें।

    By हिमांशु पांडेय

    हिमांशु पाण्डेय दा इंडियन वायर के हिंदी संस्करण पर राजनीति संपादक की भूमिका में कार्यरत है। भारत की राजनीति के केंद्र बिंदु माने जाने वाले उत्तर प्रदेश से ताल्लुक रखने वाले हिमांशु भारत की राजनीतिक उठापटक से पूर्णतया वाकिफ है।मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक करने के बाद, राजनीति और लेखन में उनके रुझान ने उन्हें पत्रकारिता की तरफ आकर्षित किया। हिमांशु दा इंडियन वायर के माध्यम से ताजातरीन राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर अपने विचारों को आम जन तक पहुंचाते हैं।