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    ईस्ट इंडिया कंपनी का इतिहास

    ईस्ट इंडिया कंपनी के बारे में तो आप जानते ही होंगे। यह वही कंपनी है, जो शुरू में तो भारत में व्यापार करने के इरादे से आई थी, लेकिन बाद में पूरे भारत पर कब्जा कर लिया था। इस लेख में हम ईस्ट इण्डिया कंपनी के इतिहास, ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना और इससे जुड़ी अन्य जानकारी पर चर्चा करेंगे।

    अंग्रेज 16वीं शताब्दी से लेकर 19वीं शताब्दी के मध्य तक यानी लगभग 350 वर्ष भारत में रहे लेकिन ऐसा नहीं कहा जा सकता कि अंग्रेजों ने 350 साल तक भारत में राज किया। शुरू में उनका विचार सिर्फ और सिर्फ व्यापार करने का था। लेकिन बाद में विचार बदल गया। 350 वर्षों में इस कंपनी ने कैसे अपना विचार बदल लिया? कैसे भारत पर राज करने लगी? और कैसे इसका अंत हुआ? इन तमाम बातों पर आज हम प्रकाश डाल रहे हैं।

    ईस्ट इंडिया कंपनी का इतिहास (history of east india company in hindi)

    शुरुआत कुछ यूँ हुई कि लंदन की महारानी एलिजाबेथ प्रथम ने एक रॉयल चार्टर लागू किया। जिसमें यह प्रावधान किया गया कि लंदन के गवर्नर और व्यापारिक कंपनियां पूर्वी देशों में व्यापारिक एकाधिकार स्थापित कर सकते हैं। इसके बाद वहां की तमाम व्यापारिक कंपनियां विश्व के तमाम पूर्वी देशों में व्यापार करने निकल पड़ी।

    ऐसी ही एक कंपनी बनाई गई, जिसका नाम था ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी। इस कंपनी को भी इसी रॉयल चार्टर एक्ट के तहत शक्तियाँ देकर एशिया के तमाम देशों के साथ मसालों और अन्य वस्तुओं के व्यापार के लिए भेजा गया।

    सन 1608 में इस कंपनी की पहली जहाज सूरत में आई। उस समय भारत में मुगल शासक जहांगीर का शासन था। उस जहाज से आया थॉमस रॉय ब्रिटेन के राजा जेम्स प्रथम का दूत बनकर राजदरबार पहुँचा। उसने राजा जहाँगीर के सामने ब्रिटिश राजा के साथ एक व्यापारिक संधि करने और इसके तहत सूरत में फैक्ट्री लगाने का प्रस्ताव रखा। थॉमस राए कामयाब रहा, और संधि पर हस्ताक्षर हो गए।

    ईस्ट इंडिया कंपनी जहाँगीर
    थॉमस रो जहाँगीर के दरबार में

    ऐसा बिल्कुल नहीं था कि उस समय भारत में सिर्फ ब्रिटेन के ही व्यापारी व्यापार करने आए थे। इनके अलावा पुर्तगाली भी यहाँ पर अपना व्यापार बढ़ा रहे थे। उस समय ऐसा भी नहीं था कि ब्रिटेन के व्यापारी सिर्फ भारत में ही व्यापार करने आए हो, बल्कि उसके अलावा इंडोनेशिया और सुमात्रा समेत कई देशों में भी इनका जाल फैला हुआ था। और यही इनकी आपसी कलह की वजह बन गया।

    1623 में तो इंडोनेशिया के एम्बोइना में डच और अंग्रेजों के बीच भयंकर नरसंहार हो गया था। इसमें अंग्रेज हार गए थे और उन्हें इंडोनेशिया छोड़ना पड़ गया था।

    ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना (east india company in india in hindi)

    ईस्ट इंडिया कंपनी भारत में 1600 ईस्वी में आई थी। अब उन्होंने अपना पूरा ध्यान भारत पर केंद्रित कर दिया। इसलिए उन्होंने पुर्तगालियों को भारत से भगा दिया और खुद अपना विस्तार करने में जुट गए। परिणाम स्वरुप जो फैक्ट्री 1611 में सूरत में खुली थी, वैसे ही दूसरी फैक्ट्री मद्रास में 1639 में, मुंबई में 1648 में, और कलकत्ता में 1690 में स्थापित कर दिया गया।

    इसी बीच चार्ल्स द्वितीय को हटाकर महारानी एलिजाबेथ ने इंग्लैंड की सत्ता को अपने हाँथ में ले लिया। उन्होंने तो ईस्ट इंडिया कंपनी में तमाम खाली पदों को भरते हुए कोलकाता, मुंबई, मद्रास के बंदरगाह का विकास करवाया। ऐसा इसलिए किया गया था क्योंकि उन दिनों यही तीन बंदरगाह सबसे ज्यादा प्रचलन में थे।

    ईस्ट इंडिया कंपनी भारत
    शुरूआती दिनों में ईस्ट इंडिया कंपनी भारत में

    कंपनी ने कपास, रेशम, नील और तमाम तरह के मसालों का व्यापार शुरू कर दिया। यह कई सालों तक चलता रहा। अभी यह सब कुछ चल ही रहा था कि ब्रिटेन की संसद में सन 1694 में एक कानून लागू किया कि अब से इंग्लैंड के हर व्यक्ति को ईस्ट इंडिया की तरह से व्यापार करने की अनुमति होगी। जब तक कि संसद द्वारा उस पर कोई प्रबंधन लगा हो। जिससे ईस्ट इंडिया कंपनी को एक बार तगड़ा झटका लगा। अब दो कंपनियां हो गई थी, एक नई ईस्ट इंडिया कंपनी और एक पुरानी ईस्ट इंडिया कंपनी और दोनों ही एक यूनाइटेड कंपनी के बैनर तले काम करने लगी।

    ईस्ट इंडिया कंपनी के वेतन प्रदत्त सेवक गोमस्ता थे, जो कंपनी के दलाल के रूप में काम करते थे। ये कंपनी के लिए लोगों से हफ्ता वसूलते थे।

    1740 के आते आते फ्रांस के व्यापारी भी भारत में व्यापार करने के लिए दाखिल हो गए। ईस्ट इंडिया कंपनी अपना अधिकार नहीं खोना चाहती थी, इसलिए वह फ्रांसीसियों को भगाने में लग गई, लेकिन फ्रांसीसी भी पूरे दमखम के साथ खड़े हुए। अब तक की नोक-झोंक अब लड़ाई में तब्दील होने जा रही थी। 1756 में युद्ध शुरू भी हो गया इन दोनों के बीच। सन 1763, यानी 7 साल तक चली इस लड़ाई में आखिर फ्रांसीसियों की हार हुई क्योंकि वो अंग्रेजों के सामने काफी कम थे।

    इस लड़ाई ने ईस्ट इंडिया कंपनी के हौसलों को और बढ़ा दिया। उनको अपनी शक्ति पर घमंड होने लगा। इधर 1750 के बाद से ही मुगल साम्राज्य धीरे-धीरे घटता जा रहा था। इसका ईस्ट इंडिया कंपनी ने फायदा उठाते हुए पहले 1757 प्लासी, फिर 1764 में बक्सर पर हमला कर दिया। और स्थानीय राजाओं से संधि पर हस्ताक्षर करवा लिया।

    प्लासी की लड़ाई ईस्ट इंडिया कंपनी भारत
    प्लासी की लड़ाई

    यहीं से शुरू हुआ ईस्ट इंडिया कंपनी के व्यापार करने के एजेंडे का राज करने के एजेंडे में तब्दील होना। इस संधि के अनुसार पूरे बंगाल राज्य की प्रशासनिक और न्यायिक व्यवस्था की पूरी कमान इंडिया कंपनी के हाथ में आ गई।

    इसके बाद वो दौर शुरू हो गया जब एक के बाद एक क्षेत्र ईस्ट इंडिया कंपनी के कब्जे में आते चले गए। यहां तक कि भारत के उपमहाद्वीप क्षेत्रों पर भी कब्जा कर लिया गया। लेकिन इसी बीच इंग्लैंड की महारानी को ईस्ट इंडिया कंपनी के भ्रष्टाचार और शक्तियों का दुरुपयोग का डर सताने लगा। इसीलिए 1773 में ‘द रेगुलेशन एक्ट 1773’ पास किया गया। जिसके द्वारा सेना में भर्ती के लिए हिंदुस्तानियों द्वारा किसी भी प्रकार का कोई पैसा, इनाम या उपहार लेने पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगा दिया गया।

    इस एक्ट ने बंगाल के गवर्नर जनरल को संपूर्ण ईस्ट इंडिया कंपनी के गवर्नर जनरल पद पर पदोन्नति दिलवा दी। इसके बाद 1784 में विलियम पिट्स का ‘इंडिया एक्ट 1784’ आया जिसके मुताबिक यहां पर शासन तो ईस्ट इंडिया कंपनी ही करेगी लेकिन अगर कोई कानून बनाना हो तो इंग्लैंड की पार्लियामेंट्री रेगुलेशन बोर्ड से पास करवाना पड़ेगा। इन्होंने एक पार्लियामेंट्री बोर्ड बनाया था जिसमें 6 कमिश्नर होंगे, लंदन की कुछ व्यापारिक कंपनियों के डायरेक्टर होंगे, वित्त विभाग के राज्य सचिव के अलावा 4 लोग महारानी द्वारा नामित किये गये लोग होंगे। ब्रिटिश पार्लियामेंट ने ये नियम लागू किया था ताकि ईस्ट इंडिया कंपनी उनके कब्जे में ही रहे।

    रोबर्ट क्लाइव और मीर जाफर

    1813 में कंपनी का भारत में व्यापारिक एकाधिकार खत्म हो गया। और चार्टर्ड एक्ट 1833 के तहत चीन में भी उनका एकाधिकार खत्म हो गया। इसके बाद ब्रिटेन की सरकार ने बंगाल, उड़ीसा और बिहार को संभालने के लिए 1854 में एक लेफ्टिनेंट गवर्नर नियुक्त किया गया और गवर्नर जनरल को पूरे औपनिवेशिक भारत को संभालने का जिम्मा दे दिया गया। ये व्यवस्था 1857 में होने वाले प्रथम स्वतंत्रता संग्राम तक जारी रहा।

    ईस्ट इंडिया कंपनी ने एक तरह से भारतीयों पर अत्याचार करना शुरू कर दिया था। पूरी प्रशासन और सेना अँग्रेजों के हाथ में होने की वजह से प्रजा कुछ नहीं कर पा रही थी। उनका अत्याचार और शोषण लगातार बढ़ता जा रहा था। इसी बीच कई क्रांतिकारी भी पैदा हुए। युद्ध की तैयारियां होने लगी। क्योंकि जनता भूख और गरीबी से मर रही थी लेकिन ईस्ट इंडिया कम्पनी उनसे लगान वसूलने में लगी थी।

    सन 1857 में क्रांति शुरू हो गई लेकिन ईस्ट इंडिया कंपनी को हराना नामुमकिन सा हो चला था। हालांकि ईस्ट इंडिया कंपनी ने सबकुछ दोबारा से नियंत्रित कर लिया लेकिन इंग्लैंड में उसका गलत संदेश गया। ईस्ट इंडिया कंपनी की नीतियों से नाखुश होकर ब्रिटेन की महारानी ने ईस्ट इंडिया कंपनी से भारत पर राज करने का अधिकार वापस लेते हुए सन 1858 में ‘गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट 1858’ पास करते हुए कानून लागू कर दिया।

    ईस्ट इंडिया कंपनी की सत्ता खत्म होने के बाद भारत के विकास में कुछ बदलाव आया। सबसे पहले तो न्याय दिलाने के लिए एक सुप्रीम कोर्ट की स्थापना की गई। दूसरा सबसे बड़ा फायदा हुआ कि हावड़ा-कोलकाता-रानीगंज की 120 किमी लंबी रेल लाइन बनाने का फैसला किया गया। उसके अलावा भारत में पोस्टल सिस्टम और टेलीग्राफी की शुरुआत की गई। हालांकि इन सभी बदलावों से अंग्रेजों को ही ज्यादा फायदा था, लेकिन कुछ तो हुआ था जो विकास के रूप में दिख रहा था।

    ईस्ट इंडिया कंपनी के बारे में ज्यादा जानकारी के लिए आप यहाँ दी गयी विडियो भी देख सकते हैं।

    [youtube https://www.youtube.com/watch?v=7Eg_Opn0wlk?start=9]

    By मनीष कुमार साहू

    मनीष साहू, केंद्रीय विश्वविद्यालय इलाहाबाद से पत्रकारिता में स्नातक कर रहे हैं और इस समय अंतिम वर्ष में हैं। इस समय हमारे साथ एक ट्रेनी पत्रकार के रूप में इंटर्नशिप कर रहे हैं। इनकी रुचि कंटेंट राइटिंग के साथ-साथ फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी में भी है।

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