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    स्वामी विवेकानंद (swami vivekananda biography in hindi)

    स्वामी विवेकानंद एक हिंदु भिक्षु थे। अपने जीवन में वे एक साधारण सन्यासी थे, लेकिन उनके अनमोल विचार आज भी लोगों द्वारा याद किये जाते हैं। एक भिक्षु के अलावा वह एक भक्ति बुद्धि के जीव के साथ-साथ एक विचारक और बहुत अच्छे वक्ता भी थे।

    स्वामी विवेकानंद के गुरू का नाम स्वामी रामकृष्ण परमहंस था। उन्होनें अपने गुरू की विचारधारा को अपनाया और उसका प्रचार किया। विवेकानंद ने गुरू की शिक्षा को एक नया कीर्तिमान दिया। विवेकानंद समाजसेवा मे विश्वास रखते थे। वह गरीबों की मदद करते व उनके दुख दर्दो का निवारण करते।

    विवेकानंद देश और पूरे विश्व मे हिन्दू धर्म के प्रति काम करते थे व उन्होंने विश्व मे हिंदू धर्म का प्रचार किया और इसकी विशेषताएं बताई।

    विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी को हुआ था, और यह दिन राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में भारत मे मनाया जाता है। स्वामी विवेकानंद के उपदेशो से कई देशो के युवाओ को जीवन की राह मिली है। उनके उपदेशो मे भाईचारे और प्रेम से रहने की सीख मिलती है।

    इस लेख के जरिये हम स्वामी विवेकानंद के जीवन परिचय, उनके अनमोल विचार और उपदेश आदि पर चर्चा करेंगे।

    विषय-सूचि

    स्वामी विवेकानंद का शुरूआती जीवन और शिक्षा

    विवेकानंद का नाम बचपन में नरेंद्रनाथ था। उनका जन्म एक बंगाली परिवार मे कोलकाता में हुआ था। विवेकानंद के पिता का नाम विश्वनाथ दत्ता था और माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था। वह अपने आठ भाई-बहनों मे सबसे बड़े थे।

    विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को मकर संक्रांति के दिन हुआ। उनके पिता पेशे से वकील थे और माता एक भक्त रूपी महिला थी। भुवनेश्वरी देवी का अपने बेटे की सोच पर बहुत प्रभाव था।

    एक युवा के रूप में वह संगीत मे बेहद रूचि रखते थे। उन्हें गाना और बजाना बहुत पसंद था। वह बचपन से ही बुद्धिमान थे। उन्होंने अपनी पढ़ाई मेट्रोपाॅलिटन संस्थान और कलकत्ता के प्रेसीडेंसी काॅलेज से की थी। पढ़ाई और धार्मिक विद्या के साथ उन्हें खेल मे भी रूचि थी।

    उन्होंने कुछ खेलो के बारे में ज्ञान अर्जित किया जैसे कुश्ती और जिम्नास्टिक। विवेकानंद को पढ़ने का शौक था, उन्होंने हिंदु शास्त्रो को पढ़ा जैसे भागवत गीता और उपनिषद्।

    भक्ति भाव और रामकृष्ण परमहंस के साथ रिश्ता

    स्वामी विवेकानंद और रामकृष्ण परमहंस
    स्वामी विवेकानंद और रामकृष्ण परमहंस

    विवेकानंद की मां भगवान की भक्त थी। यही कारण था कि विवेकानंद को भक्ति के विषय मे रूचि थी। उनकी परवरिश एक धार्मिक माहौल मे हुई और वे आध्यात्मिक पथ पर आगे बढ़े। उन्होंने कुछ समय के लिए केशव चंद्र के ब्रहमो आंदोलन मे साथ दिया। ब्रहमो आंदोलन में यह विचारधारा थी कि मूर्ति की पूजा नही होनी चाहिए और वह अंधविश्वास के खिलाफ थे। उनकी विचार धारा कुछ धार्मिक बातों के खिलाफ थी। स्काॅटिश चर्च काॅलेज के प्रिंसिपल ने विवेकानंद को पहली बार श्री रामकृष्ण के बारे में बताया।

    स्वामी विवेकानंद ने कई धर्मो के बारे में पढ़ा और उन्होनें विद्ववानों से पूछा कि क्या आपने भगवान को देखा है, परंतु हर बार उन्हें किसी के जवाब से संतुष्टि नही मिली।

    एक समय की बात है जब स्वामी विवेकानंद काली मंदिर में रामकृष्ण से मिले तो उन्होंने उनसे वही सवाल पूूछा। तब रामकृष्ण ने एक संतोषजनक उत्तर दिया। वह उत्तर था,

    हां, मैने भगवान को देखा। मैं आपके अंदर भगवान को देखता हूँ। भगवान हर किसी के अंदर स्थापित है।

    स्वामी विवेकानंद इस उत्तर से प्रभावित हुए और वह यह जवाब सुनकर आश्र्चयचकित रह गए। समय बीतता गया और विवेकानंद और रामकृष्णा का रिश्ता भी मजबूत होता गया।

    स्वामी विवेकानंद का हिन्दू धर्म की ओर झुकाव

    सन् 1884 में विवेकानंद के पिता की मृत्यु हुई और उनका परिवार आर्थिक तंगी से ग्रसित हो गया। यह पूरी बात विवेकानंद ने अपने गुरू को बताई और उनसे अनुरोध किया कि भगवान से वह प्रार्थना करे और उनके परिवार को इस समस्या से बाहर निकाले।

    परंतु रामकृष्ण ने उन्हें यह कहा कि वह खुद जा कर मंदिर में पूजा अर्चना करें। जब विवेकानंद मंदिर गए और पूजा करना शुरू किया तो उन्होंने दौलत की जगह देवी से बेरागय और विवेक मांगा।

    एक संयासी का जीवन

    स्वामी विवेकानंद और उनके शिष्य
    स्वामी विवेकानंद और उनके शिष्य

    1885 के दौरान रामकृष्ण की तबीयत खराब हो गई। बाद में पता चला कि उन्हें गले मे कैंसर की बीमारी थी। रामकृष्ण सिंतबर 1885 में श्यामपुकुर नामक स्थान पर रहने गए थे। कुछ महीनों बाद स्वामी विवेकनंद भी एक किराये के घर मे रहने लगे। उन्हें किराए का घर कोस्सिपोरे कलकत्ता में मिला। उस स्थान पर उन्हें कुछ युवा मिले, जो रामकृष्ण को गुरू मानते थे और उन्होंने अपने गुरू की देखभाल की।

    16 अगस्त 1886 में स्वामी विवेकानंद के गुरू रामकृष्ण परमहंस ने अपना शरीर त्याग दिया।

    श्री रामकृष्ण की मृत्यु के बाद स्वामी विवेकानंद और उनके पांच मित्रों ने बरनगर नाम के एक स्थान पर आश्रय लिया। 1887 में सभी रामकृष्ण भक्तों ने विश्व से सारे नाते तोड़े और संयासी धर्म की शपथ लेकर जीवन व्यापान करने की चेष्ठा की।

    यह संघ दक्षिणा और मधुकरी पर निर्भर रहता था। 1886 में स्वामी विवेकानंद ने गणित की पढ़ाई छोड़ दी व भारत के भ्रमण पर चले गए। उन्होंने अपने दौरे में लोगो की समस्या को जाना और उनकी समस्या सुलझाने में जीवन व्यतीत किया। विवेकानंद का मानना था अगर किसी की समस्या का निवारण करना है तो उस स्थान के रीति रिवाज़, सभ्यता व सामाजिक ढाँचे को जानना होगा।

    विश्व धार्मिक संसद मे उपेदश

    स्वामी विवेकानंद शिकागो
    शिकागो में भाषण से पहले स्वामी विवेकानंद

    अपने भ्रमण के दौरान स्वामी विवेकानंद को विश्व धार्मिक संसद के बारे मे पता चला। उन्हें पता चला कि यह संसद शिकागो मे 1893 में आयोजित हो रहा है। स्वामी विवेकानंद इस संसद में भारत की, हिंदु धर्म की और अपने गुरू की विचारधारा का प्रदर्शन करना चाहते थे। विवेकानंद को उनके मदरास के भक्तो द्वारा आर्थिक रूप से सहायता मिली जिससे कि उनका शिकागो जाना निश्चत हुआ। 31 मई, 1893 को स्वामी विवेकानंद, अजित सिंह और खेतरी के राजा शिकागो की ओर बंबई से रवाना हुए।

    11 सितंबर 1893 को वह बड़ी मुसीबतों के बाद शिकागो शहर पहुचे। मंच का स्वागत विवेकानंद ने कुछ इस प्रकार किया कि सब आश्र्चयचकित रह गए। उन्होंने कहा ’मेरे अमेरिकी भाई बहनों’। उन्होंने विश्व के मानसपटल पर अपने सूत्रो की और हिंदू धर्म की व्याख्या की। आगे चलकर 1894 में उन्होंने वेदांता सोसाइटी आॅफ न्यू यार्क का गठन किया। अगले तीन वर्षो तक विवेकानंद अमेरीका में ही रहे। स्वामी विवेकानंद ने विश्व भर में अपने उपदेशो और हिन्दू धर्म का प्रचार किया।

    स्वामी विवेकानंद के उपदेश व उनका मिशन

    स्वामी विवेकानंद मृत्यु
    मृत्यु से कुछ दिन पहले स्वामी विवेकानंद

    1897 में स्वामी विवेकानंद वापस भारत आए और देश मे उनका भव्य स्वागत हुआ। पूरे देश मे कई भाषणो के बाद वह कलकत्ता गए और 1 मई 1897 को रामकृष्ण मिशन की शुरूआत की। यह मिशन कर्म योग और गरीबो की मदद के लिए स्थापित किया गया था।

    कुछ समय बाद इस मिशन ने कई स्कूलों का निर्माण कराया, अस्पताल खुलवाए और वेदांता पर आधारित कई कार्यक्रम कराए। स्वामी विवेकानंद अपने गुरू और वेदांता की विचारधारा से प्रभावित थे।

    स्वामी विवेकानंद एक देशभक्त थे। स्वामी विवेकानंद ने यह बताया कि ’जागो, उठो और जब तक लक्ष्य तक नहीं पहुंच जाते तब तक रूको मत।’

    स्वामी विवेकानंद की मृत्यु

    स्वामी विवेकानंद की भविष्यवाणी के अनुसार मृत्यु के समय उनकी आयु सिर्फ चालीस वर्ष की थी। 4 जुलाई 1902 को वह बेलुर गए और वहां जाकर उन्होंने भक्तो को संस्कृत का पाठ दिया।

    ऐसा करने के बाद उन्होंने अपने कमरे मे आराम किया और ध्यान के दौरान अपना शरीर त्यागा। सभी ने इस समाधि को महासमाधि का नाम दिया और गंगा के किनारे उनका संस्कार किया गया।

    ज्ञान की वसीयत

    विश्व के मानसपटल पर स्वामी विवेकानंद ने भारत की छवी प्रदर्शित की थी। महान संत द्वारा भारतीय और विदेशियो को प्रेम और भाईचारे से रहने का उपदेश दिया गया। सुभाष चंद्र बोस ने एक बार कहा था कि ’स्वामी जी ने दक्षिण और पूर्व को मिलाया है, धर्म और विज्ञान को जोड़ा है, वर्तमान और भूतकाल को मिलाया है। इसी कारण से वह महान है, देशवासियो को उनके उपदेशो से और ज्ञान से हिम्मत मिली है।’

    स्वामी जी ने दक्षिणी सभ्यता को समझाया और हिंदु शास्त्रो का भी प्रचार किया। उनका मानना था कि हिंदुस्तान मे गरीबी है परंतु विश्व की संस्कृति में भारत का अनमोल योगदान है।

    6 thoughts on “स्वामी विवेकानन्द का जीवन परिचय”
    1. Wowww yaar Bohat Badiya Article tha. Bohat ache se btaya ap ne. Thank you so much itna sab kuch btane ke liye aur sare doubts clear karne ke liye

    2. Very informative post sir! You have provided very valuable information about Swami Vivekananda.
      Thanks for the information.

    3. While traditional reds and maroons continue to hold their allure, the new lehenga embraces a broader spectrum of colors. Soft pastels, jewel tones, and even monochromatic ensembles have found their way into the modern lehenga palette. These variations allow for a more personalized expression of style, catering to individual preferences and occasions.

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