Fri. Nov 22nd, 2024
    महात्मा गाँधी की दांडी यात्रा

    12 मार्च 1930 को गांधी जी के नेतृत्व में भारत के तमाम क्षेत्रों के लोगों ने 240 लंबी लंबी यात्रा शुरू की थी। जिसका मकसद था, नमक पर अंग्रजों द्वारा बनाये गए कर व्यवस्था को पूरी तरह से खत्म करना। दरअसल अंग्रेजों ने नामक बनाने पर टैक्स लगा रखा था जबकि देश के गरीब किसान भुखमरी का शिकार हुए जा रहे थे।

    इस यात्रा के पीछे और भी बहुत सारे मकसद थे। इस यात्रा से सिर्फ नमक कानून नहीं टूटा था, बल्कि भारत पर इसके वृहद परिणाम दिखाई दिए थे। अभी तो बहुत कुछ है जो आप को जानना चाहिए। क्योंकि जब अपने इतिहास के संघर्षों के बारे में जानेंगे तभी हम इस आजादी के असली मूल्य को समझ पाएंगे और उसका आंकलन कर पाएंगे।

    सन 1920 से लेकर 1922 तक चले असहयोग आंदोलन के बाद आजादी की लड़ाई वाला माहौल ठंडा पड़ गया था। आजादी की लड़ाई तो चल रही थी, लेकिन उसमें वो गर्मजोशी का माहौल नहीं बन पा रहा था जो कि असल में होना चाहिए था। इसके बाद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने 26 जनवरी 1930 को पूर्ण स्वराज की मांग की घोषणा कर दी। अंग्रेजों को खुले तौर पर बता दिया गया कि अब हम किसी भी तरह की कोई पराधीनता स्वीकार नहीं करेंगे। अब हमें पूर्ण आजादी चाहिए। घोषणा तो हो गई, अब बारी थी कुछ करने की।

    कांग्रेस के तमाम सुप्रीम नेताओं जैसे जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल आदि ने गांधी जी के साथ बैठक किया। गांधी जी ने एक रास्ता सुझाया कि बिना किसी हिंसा के हम अंग्रेजों के बनाए गए कानूनों को एक-एक करके तोड़ देंगे, तो धीरे-धीरे सारे कानून भंग हो जाएंगे। और इस तरह हम स्वतः ही आजाद हो जाएंगे।

    सबसे पहले गांधी जी ने नमक की खेती करने वाले किसानों पर लगाएंगे टैक्स का विरोध में अंग्रेजों के कानून को तोड़ने का सुझाव दिया। लेकिन वो नेहरू और सरदार पटेल को बहुत अच्छा नहीं लगा था। जहां एक तरफ पटेल ने जमीन पर लगाए गए टैक्स पर आंदोलन की बात कही तो दूसरी तरफ जवाहरलाल नेहरु और दिव्य लोचन साF दिया। उनका तर्क था कि मानव जीवन में नमक बहुत महत्वपूर्ण होता है, और इस आंदोलन में हर जाति धर्म के लोग शामिल होंगे। दूसरी बात ये कि अंग्रेजों की कुल राजस्व आय का 8.2 प्रतिशत भाग नमक उत्पादन पर लगाये गए कर से प्राप्त होता है।

    उस समय के प्रमुख कांग्रेस नेताओं में से एक सी. राजगोपालाचारी को महात्मा गाँधी की बात समझ आ गयी।

    5 फरवरी को समाचार पत्रों में छपा कि गांधी जी सविनय अवज्ञा आंदोलन के तहत पैदल यात्रा करने जा रहे हैं। जिसमें वह नमक बनाने पर अंग्रेजों के कानून को तोड़ेंगे। फरवरी के अंत दांडी मार्च का पूरा खाका तैयार हो चुका था। अंग्रेज इसको कोई महत्व नहीं दे रहे थे। उनको लगता था कि इन सब चीजों से कोई फर्क नहीं पड़ेगा। यहां तक कि खुद वायसराय लार्ड इरविन ने इसको कोई महत्व नहीं देते हुए, लंदन को लिखित पत्र में कहा था-“कि मुझे नहीं लगता कि वर्तमान में नमक कानून को लेकर जो चलने वाला है उसमें कुछ खास दम है”

    गांधी जी को कहीं ना कहीं इस बात का एहसास हो चुका था, कि आंदोलन से पूर्ण स्वराज वाले आंदोलन को बल मिलेगा और उसका मार्ग प्रशस्त होगा। उन्होंने अपने तर्क में यह भी बोला था कि इस आंदोलन से हिंदू मुस्लिम में एकता की भावना भी उत्पन्न होगी।

    सारी तैयारियां हो गई थी, मार्गो का चयन हो गया था। उसके बाद तय किया गया कि 12 मार्च 1930 को गांधी जी अपने कुछ चुने हुए विश्वासपात्र सेवकों के साथ इस यात्रा को शुरू करेंगे। गांधी जी को अपने निवास स्थान साबरमती आश्रम से शुरू करते हुए 240 मील लंबी पैदल यात्रा करके गुजरात के समुद्री तट पर बसे नवसारी नाम के छोटे से कस्बे के एक छोटे से गांव जाना था और नमक बनाकर अंग्रेजों को यह संदेश देना कि अब हम अपनी ही जमीन पर नमक बनाने के लिए लगान नहीं देंगे। अब बस इस यात्रा या यूं कहें कि आंदोलन शुरू करना रह गया था।

    अंततः 12 मार्च 1930 को गांधी जी ने अपने निवास स्थान साबरमती आश्रम से अपने 78 समर्थकों के साथ यह यात्रा शुरू कर दिया। 240 मील यानी 390 किलोमीटर के इस पद यात्रा में सैकड़ों की संख्या में लोग जुड़ते चले गए तमाम कठिनाइयों को पार करते पूरे 24 दिन की पैदल यात्रा करने के बाद वह आखिर वह दिन आ गया, जब गांधी जी का आंदोलन सफल होने वाला था। वह दिन था 6 अप्रैल 1930 का। 6 अप्रैल 1930 को भोर में 6:30 बजे गांधी जी समुद्र के किनारे ठंडी पहुंचे और नमक बनाया।

    इस घटना ने भारतीयों के अंदर एक हौसला भर दिया था। लाखों लोगों ने ब्रिटिश सरकार के कानून को अस्वीकार करने का निर्णय ले लिया। इस आंदोलन ने अंग्रेजों को भारतीयों को लेकर सोचने पर मजबूर कर दिया था। इसी के साथ ही लाखों भारतीयों ने इस आंदोलन के बाद भरतीय स्वतंत्रता संग्राम में कूदने का फैसला कर लिया।

    गांधी जी का डांडी पहुंचकर नमक बनाने वाला लक्ष्य तो पूरा हो चुका था, लेकिन वो वही नहीं रुके। वो समुद्र का छोर पकड़ कर दक्षिण की तरफ बढ़ते रहे। नमक बनाते हुए लोगों को संबोधित करते रहे। इसी बीच कांग्रेस पार्टी ने डांडी से 25 किलोमीटर दक्षिण में स्थित दरसाना नमक फैक्ट्री में सत्याग्रह आंदोलन करने की योजना बनाई। क्योंकि उस समय लोगों का हुजूम गांधी जी के साथ था।

    वो समय सत्याग्रह आंदोलन के लिए एकदम सही था। लेकिन इस आंदोलन को हल्के में लेने वाली ब्रिटिश सरकार अब गांधी जी के आंदोलन से भयभीत हो चुकी थी। इसीलिए वो सत्याग्रह आंदोलन से सिर्फ एक दिन पहले ही यानी 4-5 मई की आधी रात को गांधी जी को गिरफ्तार कर लिया गया। लेकिन फिर भी आंदोलन अगले 1 साल तक चलता रहा। इस दौरान ब्रिटिश सरकार अहिंसा के साथ सत्याग्रह कर रहे लोगों को बहुत पीटा लेकिन सत्याग्रह आंदोलन फिर भी नहीं रुका। जब तक कि गांधीजी को छोड़ा नहीं गया, द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में तत्कालीन वायसराय लार्ड इरविन समझौता नहीं हो गया।

    सत्याग्रह आंदोलन के दौरान लगभग 60,000 भारतीयों को जेल जाना पड़ा।हालांकि इतना सब कुछ होने के बाद भी अंग्रेजों से कुछ खास रियायत नही मिल पायी। लेकिन इस आंदोलन ने पूरे विश्व का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लिया थी। विश्व भर के तमाम समाचार पत्रों और मैगज़ीनों में इस आंदोलन के बारे में छपा और बाद में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में इसने काफी बल प्रदान किया।

    By मनीष कुमार साहू

    मनीष साहू, केंद्रीय विश्वविद्यालय इलाहाबाद से पत्रकारिता में स्नातक कर रहे हैं और इस समय अंतिम वर्ष में हैं। इस समय हमारे साथ एक ट्रेनी पत्रकार के रूप में इंटर्नशिप कर रहे हैं। इनकी रुचि कंटेंट राइटिंग के साथ-साथ फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी में भी है।

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *