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    सरदार पटेल का योगदान (sardar patel biography in hindi)

    सरदार वल्लभ भाई पटेल, एक ऐसे व्यक्ति जिन को हम लोग लौह पुरूष के नाम जानते हैं। लौह पुरुष यानी एक ऐसे सख्श, जिनके इरादे लोहे की तरह फौलादी होते हैं और जिसने जिंदगी में कभी हारना नहीं सीखा हो।

    31 अक्टूबर 1975 को गुजरात के नादियाड के एक किसान के घर पैदा हुए वल्लभ भाई पटेल बचपन से ही बहुत साहसी थे। हालांकि इसका कोई लिखित सुबूत नहीं है, लेकिन कहा जाता है कि वल्लभ भाई पटेल ने एक बार बचपन में अपने शरीर के नासूर को ठीक करने के लिए गर्म लोहे से अपने आप को ही दाग लिया था क्योंकि उनके घर पर ऐसा करने की किसी दूसरे सदस्य की हिम्मत नहीं हुई थी।

    जवान सरदार पटेल प्रारंभिक शिक्षा नाडियाड और बोरसाड़ में करने के बाद उन्होंने अपने जीवन के 22 वें साल में मैट्रिक की परीक्षा पास की। उसके बाद उन्होंने बैरिस्टर की पढ़ाई करने का निर्णय लिया। उस समय उनकी आर्थिक स्थिति इतनी खराब थी कि परीक्षा में सफल होने के लिए पढ़ने के लिए उनके पास किताबें खरीदने तक के पैसे नहीं थे।

    फिर भी लगन इतनी थी कि उन्होंने अपने दोस्तों और वकीलों से किताबें मांग मांग कर पढ़ाई की और परीक्षा पास की। इसके बाद पटेल ने गोधरा, बोर्साड़ और आणंद में कानून का अभ्यास करते हुए अपने घर की आर्थिक स्थिति को भी संभाला। पटेल जितने ज्यादा फौलादी इरादे वाले व्यक्ति थे, उतने ही नरम दिल के भी थे।

    एक घटना सामने आती है कि- वल्लभ भाई पटेल ने जब पर्याप्त पैसा कमा लिया तो उन्होंने पासपोर्ट और वीजा के लिए आवेदन किया था। जब टिकट और वीजा घर पहुंचा तो वी.एस. पटेल नाम का था। चूंकि उनके बड़े भाई विठ्ठल भाई पटेल भी इग्लैंड जाकर पढ़ने की इच्छा रखते थे तो अपनी जगह अपने भाई को भेज दिया।

    1909 में वल्लभ भाई की पत्नी झावेरबा का निधन हो गया लेकिन उन्होंने दूसरी शादी नही करने का फैसला किया और अपने परिवार वालों की मदद से बच्चों का पालन पोषण किया। 36 साल की उम्र में उन्होंने फिर से वकालत के लिए अप्लाई किया। लंदन गए और वकालत से जुड़े एक 36 महीने के कोर्स को सिर्फ तीस महीनों में ही पूरा करके वापस भारत आ गए। वल्लभ भाई ने पहले कभी विश्वविद्यालय में पढ़ाई न करने के बावजूद उस कोर्स को टॉप रैंकों से पूरा किया। भारत लौटने के बाद अहमदाबाद में रहने लगे और शहर के सबसे माने-जाने वकील बनके उभरे।

    अक्टूबर 1917 में पटेल की गांधी जी से एक छोटी सी मुलाकात ने पटेल में काफी बदलाव ला दिया। उन्होंने अब अपने आप को स्वतंत्रता की लड़ाई में झोंक देने का निर्णय लिया। दरअसल सितंबर 1917 में वल्लभ भाई ने बोरसाड़ में एक सभा मे भाषण दिया था, जिसमें उन्होंने पूरे भारत से गांधी जी के स्वराज की माँग वाली याचिका पर हस्ताक्षर करने की अपील की थी। और जब एक महीने बाद गोधरा में गांधी जी से पहली बार मुलाकात हुई तो गाँधी जी ने पटेल का काफी उत्साहवर्धन किया। अब पटेल खुलकर अंग्रेजों के विरोध में आ गए।

    सरदार पटेल और महात्मा गाँधी

    उन दिनों खेड़ा मे अकाल पड़ा था। किसानों के पास खाने तक के दाने नही हो पा रहे थे और अंग्रेजी हुकूमत लगान वसूलने में लगी थी। गाँधी जी ने इसके खिलाफ आंदोलन की बात की लेकिन उन दिनों वो चंपारण के आंदोलन में व्यस्त थे, इसलिए खुद आगे नही आ पाए थे। ऐसे में पटेल ने आंदोलन का नेतृत्व किया और अंततः अंग्रेजों को उनके सामने झुकते हुए लगान माफ करना ही पड़ा था।

    उनकी क्षमता को देखते हुए 1920 में उनको गुजरात के प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष के रूप में चुना गया। इसके बाद उन्होंने असहयोग आंदोलन में काफी अहम् भूमिका निभाते हुए पूरे गुजरात में भ्रमण किया और 3 लाख लोगों को आंदोलन के लिए तैयार किया। अगले कुछ सालों में उन्होंने महिला सशक्तिकरण, जातिगत भेदभाव और छुआ-छूत जैसे मुद्दों पर काफी काम किया।

    1923 में जब गाँधी जी जेल मे थे तो नागपुर में सत्याग्रह आंदोलन पटेल के नेतृत्व में ही संचालित किया गया था। इस दौरान बारदोली में एक आंदोलन के बीच महिलाओं ने वल्लभ भाई पटेल को सरदार कहना शुरू कर दिया। सरदार यानी मुखिया, और तब से पटेल, सरदार वल्लभ भाई पटेल बन गए।

    दांडी नमक यात्रा के दौरान सरदार को बिना किसी गवाह और सबूत के गिरफ्तार कर लिया गया था। उनको अपना कोई वकील नियुक्त करने तक का समय नही दिया गया था। पटेल और गांधी के गिरफ्तार होने के बाद दांडी यात्रा में और ज्यादा लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा। और अंत में अंग्रजों को मजबूर होकर गाँधी और पटेल को रिहा करना ही पड़ा। 1931 में उनको कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया। कई सारे आंदोलनों और गिरफ्तारियों को झेलते हुए पटेल लगातार आगे बढते रहे। भारत भी लगातार आजादी की तरफ बढ़ता चला गया और वो दिन भी आ गया जब भारत आजाद हो गया।

    4 जून 1947 तत्कालीन वायसराय लार्ड लुई माउंटबेटन ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की। इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में 300 से भी ज्यादा पत्रकार आये। इसके साथ देश के तमाम छोटे बड़े महाराजा और नवाबों को भी बुलाया गया था। माउंटबेटन ने एक लंबा चौड़ा और काफी प्रभावशाली भाषण दिया। जिसमें उन्होंने कहा कि अब वक्त आ गया है कि सभी राजा-महाराजा अपने हितों का ध्यान खुद रखें, अब आने वाला समय उनका है और इसी के साथ उन्होंने ऐलान किया कि अब ब्रिटिश शासन अगले साल जून में नहीं बल्कि इसी साल अगस्त में देश छोड़कर जाएगा।

    भारत की आजादी के बाद सरदार पटेल का भाषण

    महाराजाओं नवाबों को 3 विकल्प दिए गए- या तो वो भारत से मिले या पाकिस्तान से मिले या फिर चाहें तो स्वतंत्र देश की तरह भी रह सकते हैं। अंग्रेजों के इस ऐलान के बाद तो देश के तमाम छोटे-बड़े राजाओं ने स्वतंत्र रहने का फैसला कर लिया। तब एक सवाल ये खड़ा हो गया कि आखिर कितने देश आजाद हो रहे हैं एक, दो या 565?

    कुछ दिनों बाद माउंटबेटन ने इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेसन यानी विलीनीकरण का मसौदा तैयार किया। जिसमें उन्होंने कहा कि अगर आप भारत के साथ मिलते हैं तो भारत आपकी सम्पूर्ण रक्षा करेगा। लेकिन सभी छोटे-राजा महाराजा तो खुद से राज करना चाहते थे।

    ये घोषणा अखण्ड भारत का सपना देखने वाले तमाम देशवासियों के लिए एक सदमे की तरह था। सरदार पटेल को कांग्रेस की अंतरिम सरकार में रियासती मामलों का मंत्री बनाया गया और उनके ऊपर सम्पूर्ण भारत एक सूत्र में बांधने का जिम्मा आ गया। उनके सचिव के रूप में वी.पी. कृष्ण मेनन को नियुक्त किया गया। आजादी को ठीक से 75 दिन भी नही बचे थे, उन 565 छोटी-बड़ी रियासतों को अखंड भारत में शामिल करना पटेल के लिये एक बड़ी चुनौती थी। उसी में 11 जून 1947 को यानी आजादी से 65 दिन पहले त्रावणकोर का अपने आपको एक स्वतंत्र देश के रूप में घोषित करना पटेल के लिए और मुश्किल खड़ा कर गया।

    सरदार पटेल और नेहरु

    पाकिस्तान के पक्षधर, मोहम्मद अली जिन्ना ने इस मौके का भरपूर फायदा उठाने की कोशिश की। उन्होंने तो जोधपुर, जैसलमेर, और जूनागढ़ के राजाओं को तो खाली पेपर पर हस्ताक्षर करके ये कहते हुए दे दिया था कि पाकिस्तान के साथ जुड़ने के लिए जो भी शर्त रखना चाहोगे, वो मंजूर है। इसमें से जूनागढ़ के नवाब ने तो पाकिस्तान के साथ जाने का फैसला भी कर लिया था लेकिन सरदार के सेना भेजने जैसे कड़े फैसलों से वो डर गया और चुपके से सब-कुछ छोड़ कर पाकिस्तान भाग गया।

    ये उनकी कूटनीति का ही परिणाम है कि जैसलमेर, जूनागढ़, जोधपुर, भोपाल और त्रावणकोर जैसे बड़े राज्यों से बिना रक्त की एक बूंद बहाये, उन्हें भारत में शामिल कर लिया गया था।

    लेकिन जब बहुत मनाने के बाद भी हैदराबाद के निजाम ने विलीनीकरण करने से मना कर दिया, तब थक हार कर पटेल ने सेना भेजने का आदेश दे दिया। माउंटबेटन और जवाहरलाल नेहरू ने सेना भेजने के निर्णय को वापस करने के लिए एक आपातकाल बैठक बुलाई गई लेकिन सरदार ने पहुंचते ही कह दिया कि अब कुछ नही हो सकता और सेना निकल चुकी है। पांच दिन तक चलने वाले इस युद्ध में भारत की तरफ से 62 सैनिक शहीद हुए थे।

    भारत की आजादी के सिर्फ तीन साल बाद ही सन 1950 में सरदार पटेल का निधन हो गया। वे 75 वर्ष के थे।

    सरदार पटेल का अंतिम संस्कार

    जम्मू कश्मीर, जूनागढ़, भोपाल, और हैदराबाद के राजाओं की काफी धाक हुआ करती थी। इन पांचों ने भारत के साथ मिलने से सीधा मना कर दिया था। वो तो वल्लभ भाई पटेल ही थी जिनके अथक प्रयासों से आज भारत ‘अखंड भारत’ के रूप में हमारे सामने है।

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    1. भारतीय रियासतों का एकीकरण और अखंड भारत का निर्माण

    By मनीष कुमार साहू

    मनीष साहू, केंद्रीय विश्वविद्यालय इलाहाबाद से पत्रकारिता में स्नातक कर रहे हैं और इस समय अंतिम वर्ष में हैं। इस समय हमारे साथ एक ट्रेनी पत्रकार के रूप में इंटर्नशिप कर रहे हैं। इनकी रुचि कंटेंट राइटिंग के साथ-साथ फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी में भी है।

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