Landslide in Kerala: अगस्त महीने के पहली किरण के साथ देश के सुदूर दक्षिण में स्थित “गॉडस ओन कंट्री (God’s Own Country)” कहे जाने वाले राज्य केरल में “एक्ट ऑफ गॉड (Act of God)” के कारण सैंकड़ो लोगों की मौत ख़बर से पूरा देश सहम उठा।
दरअसल केरल के वायनाड जिले के मेप्पडी इलाके में 31 जुलाई की रात और पहली अगस्त की सुबह अतिवृष्टि (Heavy Rainfall) हुई। इस कारण कई इलाकों में हुए भूस्खलन से अबतक 360 से ज्यादा लोगों की मौत तथा इसके लगभग दुगने संख्या में लोग घायल हुए हैं। साथ ही बड़ी संख्या में लोगों के गायब होने की भी खबर है जिनकी तलाश अभी भी जारी है।
Visited the landslide-affected Chooralmala in Wayanad to assess the ongoing rescue operations. The weight of the tragedy is still deeply felt, but the relentless efforts of those working to restore normalcy offer a glimmer of hope. Together, we’ll overcome this challenge as well. pic.twitter.com/88gOYAlHX9
— Pinarayi Vijayan (@pinarayivijayan) August 1, 2024
पिछले कुछ दिनों में, वायनाड विनाशकारी भूस्खलन के कारण खबरों में रहा है, जिसमें सैकड़ों लोगों की जान चली गई। बादल फटने से हुए भूस्खलन के कारण घर भी नष्ट हो गए और कई लोग मलबे में फंस गए। इसने मेप्पडी, मुंडक्कई और चूरलमाला पर हमला किया और इसके परिणामस्वरूप पास का एक पुल ढह गया, जिसका उपयोग मुंडक्कई में अट्टामाला में प्रवेश करने के लिए किया जाता था।
साल 2024 को अगर ‘भूस्खलन का साल (Year of Landslide)’ कहा जाए तो कोई गलत नहीं होगा क्योंकि इस साल अब तक भूस्खलन से जुड़े घटनाओं में दुनिया भर में तकरीबन 2,500 से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं।
भूस्खलन के कारण साल 2024 के शुरुआत (जनवरी) में चीन के युन्नान में 47, मई में पापुआ न्यू गिनी में 2000 से भी ज्यादा मौतें, जुलाई के शुरुआती हफ्ते में इंडोनेशिया के सुलावेसी प्रान्त में 23 मौतें और अब केरल के वायनाड में 360 से ज्यादा मौतें हुईं हैं।
भूस्खलन- एक विभीषिका के रूप में
आमतौर पर भूस्खलन (Landslide) को एक विभीषिका के रूप में उस तरह से विनाशकारी नहीं माना जाता है जैसे अकाल या तूफ़ान या फिर बाढ़ को माना जाता है। इसे स्थानीय घटना मानते हुए इसके बारे में ज्यादा वैज्ञानिक अध्ययन भी नहीं किया जाता। लेकिन बीते कुछ सालों से जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से भूस्खलन की घटनाओं की आवृत्ति (Frequency of Landslide) बढ़ी है और इस से जान-माल की क्षति भी काफी हुई है।
भारत मे भूस्खलन को पहले तो बिल्कुल भी तवज़्ज़ो नहीं दिया जाता था परंतु 2013 के केदारनाथ हादसे (Kedar Nath Tragedy) के बाद भूस्खलन के तरफ थोड़ा ध्यान दिया जाने लगा। ज्ञातव्य हो कि इस हादसे में अकेले उत्तराखंड में तकरीबन 6000 लोगों की मौत हुई थी और हज़ारों लोग लापता हुए थे।
अंग्रेजी इंडियन एक्सप्रेस में छपे लेख में IIT मद्रास के एक रिपोर्ट के हवाले से यह बताया गया है कि दुनिया भर में भूस्खलन से होने वाली मौतों का 8% मौत अकेले भारत मे होता है।
IIT मद्रास के द्वारा मशीन लर्निंग मॉडल का उपयोग करके एक उच्च-रिज़ॉल्यूशन वाला “भारत भूस्खलन संवेदनशीलता मानचित्र (Indian Landslide Susceptibility Map)” विकसित किया है।
आईआईटी-मद्रास की शास्त्र पत्रिका में प्रकाशित एक पेपर के अनुसार, आईएलएसएम से पता चलता है कि देश का 13.17% हिस्सा भूस्खलन के लिए अतिसंवेदनशील है, जो पहले की तुलना में अधिक है; और 4.75% क्षेत्र को “अति अतिसंवेदनशील” माना जाता है।
सिक्किम में सबसे बड़ा भूमि क्षेत्र (57.6%) है जो भूस्खलन-प्रवण है, जबकि हिमालय क्षेत्र से इतर भूस्खलन के लिहाज से केरल सबसे असुरक्षित राज्य है, जिसका 14% से अधिक भूमि “बहुत उच्च संवेदनशीलता” श्रेणी में है।
ओडिशा के आसपास, पूर्वी घाट के कुछ क्षेत्र भी अतिसंवेदनशील हैं – जो पिछले अध्ययनों में नज़र नहीं आए थे। अरुणाचल प्रदेश में सबसे बड़ा अतिसंवेदनशील क्षेत्र (31,845 वर्ग किमी) है, जो भूस्खलन पर डेटा की कमी के कारण इसकी जानकारी ज्यादा नहीं प्रकशित किया गया है।”
Wayanad Tragedy : एक ‘मानव-जनित’ प्राकृतिक हादसा
जलवायु विशेषज्ञों के अनुसार, हालिया भूस्खलन (Landslide in Wayanad, Kerala) अरब सागर के गर्म होने के कारण हुई अत्यधिक भारी वर्षा के कारण हुआ था। दक्षिण-पूर्व अरब सागर गर्म हो रहा है, जिससे केरल सहित पश्चिमी घाट के बड़े हिस्से में वायुमंडलीय अस्थिरता पैदा हो रही है। गहरे बादलों के साथ वर्षा वाले क्षेत्र दक्षिण की ओर बढ़ रहे हैं, जिसके परिणामस्वरूप अत्यधिक वर्षा हो रही है।
2011 में, पारिस्थितिकी-विज्ञानी माधव गाडगिल की अध्यक्षता में पश्चिमी घाट पारिस्थितिकी विशेषज्ञ पैनल (Ecological Expert Panel) ने इस क्षेत्र को पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र (Ecologically Sensitive Area)) के रूप में सीमांकित किया।
गाडगिल समिति ने दुनिया के आठ सबसे गर्म जैव विविधता वाले हॉटस्पॉट में से एक, पश्चिमी घाट के बड़े हिस्से में निर्माण, खनन और उत्खनन गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाने की सिफारिश की।
वायनाड (Wayanad), जो अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है, एक इको-टूरिज्म हॉटस्पॉट ब(Eco Tourism Hotspot) बन गया है, जिससे बड़े पैमाने पर निर्माण गतिविधियाँ हो रही हैं। वायनाड की वहन क्षमता का उचित मूल्यांकन किए बिना रिसॉर्ट्स उग आए हैं, सड़कों का निर्माण किया गया है, सुरंगें खोदी गई हैं और उत्खनन गतिविधियाँ शुरू की गई हैं।
ऐसे क्षेत्रों में सड़कों और अन्य बुनियादी ढांचे का निर्माण पर्यावरणीय प्रभाव को ध्यान में रखते हुए वैज्ञानिक सटीकता के साथ किया जाना चाहिए। दुर्भाग्य से, वर्तमान प्रथाओं में इन आवश्यक सावधानियों का अभाव है, जिससे भूस्खलन से होने वाली क्षति बढ़ जाती है।
वायनाड में घटते जंगलों पर 2022 के एक अध्ययन से पता चला कि 1950 और 2018 के बीच जिले का 62 प्रतिशत हरित क्षेत्र गायब हो गया, जबकि वृक्षारोपण क्षेत्र में लगभग 1,800 प्रतिशत की वृद्धि हुई।
इंटरनेशनल जर्नल ऑफ एनवायर्नमेंटल रिसर्च एंड पब्लिक हेल्थ में प्रकाशित अध्ययन से संकेत मिलता है कि 1950 के दशक तक वायनाड के कुल क्षेत्र का लगभग 85 प्रतिशत भाग वन आवरण के अंतर्गत था।
अब, यह क्षेत्र अपने व्यापक रबर बागानों के लिए जाना जाता है। भूस्खलन की तीव्रता (Intensity of Landslide) रबर के पेड़ों के कारण बढ़ी, जो वृक्षारोपण पूर्व समय के घने वन क्षेत्र की तुलना में मिट्टी को पकड़ने में कम प्रभावी हैं।
कुल-मिलाकर, संवेदनशील क्षेत्रों में बिना सोचे-समझे किए गए निर्माण ने देश भर में, विशेषकर पहाड़ी और पर्वतीय क्षेत्रों में ऐसी आपदाओं में बहुत योगदान दिया है। विशेषज्ञों ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि केरल में सड़कों और पुलियों के व्यापक निर्माण में वर्तमान वर्षा पैटर्न और तीव्रता को ध्यान में नहीं रखा गया है, बल्कि यह पुराने आंकड़ों पर निर्भर है।
भूस्खलन (Landslide) को गंभीरता से लेने की जरुरत
आकस्मिक बाढ़ को रोकने के लिए निर्माण में नए जोखिम कारकों पर विचार करने की आवश्यकता है, क्योंकि कई संरचनाएं नदी के प्रवाह को समायोजित करने में विफल रहती हैं, जिससे महत्वपूर्ण विनाश होता है। अवैज्ञानिक निर्माण पद्धतियाँ वर्तमान विनाश का एक प्रमुख कारण हैं।
वायनाड त्रासदी (Wayanad Landslide) प्रकृति और मानव गतिविधि के बीच नाजुक संतुलन की स्पष्ट याद दिलाती है। यह पारिस्थितिक चेतावनियों की उपेक्षा के गंभीर परिणामों और पर्यावरण और उस पर निर्भर जीवन की सुरक्षा के लिए सतत विकास प्रथाओं को अपनाने की तत्काल आवश्यकता पर प्रकाश डालता है।