Mothers’ Day Special: यह सच है कि मातृत्व दिवस मनाने के जरिये एक व्यक्ति और पूरे समाज के निर्माण में माताओं की भूमिका को पहचानने का आधुनिक विचार बेहद ही बेहतरीन पहल है; लेकिन हकीकत यह भी है कि उन्हीं माताओं के स्वास्थ को लेकर हमारा समाज सदियों से उदासीन बना रहा है।
भारत मे माताएं युगों-युगों से पूजी जाती रही हैं। भारत के संस्कृति में माँ का स्थान देवताओं से भी ऊपर रहा है। लेकिन दूसरी सच्चाई यह भी है कि माताओं के स्वास्थ्य को लेकर हमारा समाज बड़ा उदासीन भी रहा है। माताओं के त्याग को तो कविताओं और कहानियों में खूब जगह मिली लेकिन जब मातृत्व सुरक्षा, महिला स्वास्थ और पोषण की बारी आती है तो वही माताएं समाज के आखिरी पायदान पर रही है।
जब देश आजाद हुआ तब भारत मे मातृत्व मृत्यु दर (Maternal Mortality Rate-MMR) 2000 प्रति 1 लाख प्रजनन (जीवित) था। इसे दूसरे शब्दों में कहें तो उस वक़्त प्रत्येक 1 लाख जीवित बच्चे के जन्म के क्रम में लगभग 2000 माताओं की मृत्यु हो जाती थी, जो अपने-आप में काफी भयावह आंकड़ा था। । इसकी वजह अशिक्षा, ग़रीबी आदि तो थी ही लेकिन सबसे बड़ी वजह कम उम्र में ही “लड़कियों के हाँथ पीले कर दिए जाने वाली मानसिकता” थी।
जाहिर है, कम उम्र में (12-18) उनका शारीरिक-विकास पूर्णतया होता नहीं था और प्रजनन के दौरान उचित व्यवस्था के अभाव में तथा अन्य जटिलताओं के कारण बड़ी संख्या में मृत्यु हो जाती थी। साथ ही, तत्कालीन भारत के ग्रामीण हिस्सों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र या अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ केंद्र की संख्या बेहद कम थीं।
फिर जैसे जैसे मुल्क आगे बढ़ा, सरकारों का ध्यान भी महिला स्वास्थ को लेकर सकारात्मक होता चला गया। आज़ादी के बाद भारत ने त्रि-स्तरीय स्वास्थ्य प्रणाली को अपनाया। स्वास्थ्य सेवा के तीन स्तर क्रमशः- ग्रामीण इलाकों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (PHC), जिला अस्पताल और फ़िर राज्य या जिला से ऊपर क्षेत्रीय स्तर के अस्पताल, हैं।
इसके कारण भारत मे कई नए मेडिकल कॉलेज खोले जाने लगे ताकि चिकित्सक:रोगी अनुपात (WHO के मुताबिक आदर्श स्थिति, 1 डॉक्टर प्रति 1000 जनसंख्या) को हासिल किया जा सके। साथ ही, ANM (Auxiliary Nursing &” Midwifery) की संकल्पना ने स्वास्थ सुविधाओं को गाँव-गाँव, घर-घर पहुंचाने में मदद मिली।
इसके अलावे पिछले कुछ दशकों में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM), राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (NRHM) आदि वृहत योजनाओं के जरिये मातृत्व सुरक्षा और शिशु स्वास्थ्य पर विशेष जोर दिया गया।
जननी सुरक्षा योजना (JSY) के जरिये गर्भवती महिलाओं को सहायता राशि सीधे खाते में भेजे जाने की व्यवस्था की गई। जननी शिशु स्वास्थ्य योजना (JSSY) के जरिये सरकारी अस्पतालों में उचित स्वास्थ्य मानकों के बीच प्रसव की मुफ्त व्यवस्था की गई। प्रधानमंत्री मातृत्व वंदन योजना (PM MVY) जैसे कार्यक्रमों से मातृत्व-सुरक्षा के मसले पर बल दिया गया।
इसके अतिरिक्त आंगनबाड़ी और ASHA (Accredited Social Health Activist) कर्मियों के जरिये टीकाकरण और अन्य जाँच को काफ़ी सुगम बनाया गया। लिहाज़ा इसके मातृत्व स्वास्थ को लेकर जागरूकता और उसके परिणाम भी सुधरे हैं।
इन स्वास्थ्य सुधारों का सबसे ज्यादा फायदा ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं को मिला और मातृत्व मृत्यु दर में जबरदस्त गिरावट दर्ज की गई। यूनिसेफ़ के आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार भारत में मातृत्व मृत्य दर का आँकड़ा 2014-16 में 130 (प्रति 1,00,000) और 2018-20 में और भी घटकर 97 (प्रति 1,00,000) रह गया है।
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र की जनसंख्या और प्रजनन से संबंधित विशेष एजेंसी UNFPA के विश्व जनसँख्या रिपोर्ट 2024 (World Population Report 2024) के आंकड़ों में यह कहा गया कि 1990 के दशक के उत्तरार्ध के बाद मातृत्व सुरक्षा को लेकर किये गए प्रयासों के कारण भारत सतत विकास लक्ष्य (SDG)- मातृत्व मृत्यु दर (70 प्रति 1,00,000 जीवित जन्म) के लक्ष्य– को निर्धारित समय यानि 2030 से पहले ही हासिल कर सकता है।
A more equitable future for all is possible!
Read @UNFPA‘s State of World #Population Report 2024 – #ThreadsOfHope – on why we must end inequalities in sexual and reproductive health and rights: https://t.co/HaQqFrdYp6#ICPD30 #GlobalGoals pic.twitter.com/RouDOglOvn
— UNFPA Asia and the Pacific (@UNFPAAsiaPac) April 17, 2024
इस रिपोर्ट के मुताबिक वर्तमान में भारत मे 90% प्रसव किसी न किसी अस्पताल में या डॉक्टर्स के प्राइवेट क्लीनिक जैसी संस्थानों में करवाये जाते हैं। इसी रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि लगभग 80% महिलाओं को अपने स्वास्थ संबंधित निर्णय लेने की आज़ादी है।
उपरोक्त दोनों ही आंकड़े महिला स्वास्थ और मातृत्व सुरक्षा को लेकर भारत जैसे विकासशील देश के लिए न सिर्फ महत्वपूर्ण बल्कि काफी सकारात्मक है। हालांकि राज्यों के स्तर पर इन्हीं आंकड़ों की तस्वीर थोड़ी अलग है। बिहार, मध्यप्रदेश, ओड़िशा तथा राजस्थान आदि जैसे राज्यों में मातृत्व सुरक्षा से जुड़े पहलुओं पर विशेष काम करने की आवश्यकता है।
हालांकि, अभी भी सुधार की काफी गुंजाइश है। यूनिसेफ़ के मुताबिक़ साल 2020 मे लगभग 25,220 महिलाओं की मौत प्रसव के दौरान हो गई थी। इसे प्रतिदिन के हिसाब से देखें तो लगभग 69 महिलाओं की मृत्यु प्रतिदिन प्रसव के दौरान हुई है।
कुलमिलाकर भारत ने अपनी नीतियों में सुधार कर के महिला स्वास्थ्य से संबंधित चुनौतियों को बेहतरीन तरीके से संभाला है। आम जनमानस में भी माताओं की भूमिका को लेकर निश्चित ही एक जागरूकता आयी है। शायद इसी कारण मातृत्व दिवस के दिन परिवार से लेकर सोशल मीडिया तक माताओं के लिए सम्मान भरे पोस्ट और माताओं के ऊपर लिखी गईं पंक्तियों और कविताओं से सराबोर है।
यह कहा जा सकता है कि वर्तमान पीढ़ी मातृत्व और ममत्व की अहमियत को पहचानने की कोशिश तो कर रही है; लेकिन यह कोशिश की तस्वीरें लगाकर महज भावनात्मक जिम्मेदारी निभाने से ऊपर उठकर बतौर एक व्यक्ति और एक समाज, हमे मातृत्व सुरक्षा और महिला स्वास्थ की कसौटियों पर खरे उतरने की आवश्यकता है।
मातृत्व दिवस की बधाई!