Nicaragua Flight Story & Out Migration From India: 260 भारतीयों को लेकर निकारागुआ जा रहे विमान एयरबस A340 को मानव तस्करी के संदेह के बीच वापस भारत भेज दिया गया जिसमें सवार 60 गुजराती लोगों ने यह क़बूल किया कि उन्होंने एक एजेंट को अमेरिका में गैर कानूनी रूप से पहुंचाने के एवज़ में (For Illegal Out-Migration) 60-80 लाख रुपये तक के भुगतान करने का करार किया था।
लगभग दो सप्ताह पहले अहमदाबाद से 303 यात्रियों को लेकर जिसमें 260 भारतीय थे, निकारागुआ जाने वाली फ्लाइट को मानव तस्करी के संदेह में फ़्रांस में 04 दिन तक उतार लिया गया था और बाद में 26 दिसंबर को वापस मुम्बई भेज दिया गया।
ऐसे में यह सवाल उठता है कि गुजरात के इन 60 से अधिक लोगों की ऐसी क्या परिस्थिति आन पड़ी थी कि इतनी बड़ी संख्या में इतने बड़े रक़म को देकर गैरकानूनी तरीके से अमेरिका या किसी और देश मे दाख़िल होना चाहते हैं?आखिर ये लोग भारत को छोड़कर किसी और देश मे जाने को क्यों मज़बूर हैं?
गुजरात, मुंबई, कोलकाता आदि के समुद्री किनारों को छोड़कर जहाजों में भरकर सदियों से भारतीय लोग दूसरे देशों में जाते रहे हैं। तब लोग भारत में अच्छी नौकरी की संभावनाएं न होने के कारण देश को छोड़ (Out Migration) विदेशों में बेहतर मौके और अपनी किस्मत आजमाने जाते थे। ब्रिटानिया हुक़ूमत के दौरान कई बार भारतीय मजदूरों को गुआना, अफ्रीका, दक्षिण अमेरिकी देशों आदि में जबर्दस्ती जहाज़ों में भरकर ले जाया जाता था। इस दौर की स्थिति का जिक्र भारत के कई लोकगीतों, लोककथाओं और किताबों में मिलता है।
लेकिन अब तो हालात वैसे नहीं है। सरकार के हर दावे में भारत दुनिया के सबसे तेजी से तरक्की कर रही अर्थव्यवस्था है। सत्ता में कोई भी दल हो, दावा तो यही होता है कि भारत मे रोजगार के पर्याप्त अवसर उपलब्ध हैं। लेकिन इन सब के बावजूद पिछले कुछ सालों में भारत को छोड़कर विदेश जाने (Out Migration) और भारत की नागरिकता को छोड़ उन तमाम देशों की नागरिकता (Renunciation of Indian Citizenship) लेने वाले भारतीयों की संख्या अचानक से बढ़ी है।
21 जुलाई 2023 को संसद में एक सवाल का जवाब देते हुए विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने बताया कि साल 2022 में कुल 2,25,260 भारतीयों ने भारत की नागरिकता का त्याग किया है। तुलनात्मक विश्लेषण के लिहाज़ से देखें तो 2020 में यह संख्या 85,256 थी; जबकि बीते साल 2023 के शुरुआती 6 महीने में ही यह संख्या 87,026 हो गई है।
The External Affairs Minister, S Jaishankar, informed Parliament on Thursday that a total of 2,25,620 people have renounced their Indian citizenship since 2011.https://t.co/ilTIQThLqT#SJaishankar #india #citizenship #renunciation #externalaffairsminister
— PolitiXPress (@politix_press) February 22, 2023
प्रसिद्ध अख़बार द हिन्दू (The Hindu) के एक रिपोर्ट के मुताबिक नवंबर 2022 से सितंबर 2023 के बीच तकरीबन 96,917 भारतीयों को अकेले अमेरिका में ग़ैरकानूनी रूप से प्रवेश लेने के जुर्म में गिरफ्तार किया गया है। साल 2019-20 में अमेरिका में ग़ैरकानूनी रूप से घुसने के लिए 19,883 भारतीयों को गिरफ्तार किया गया था। साल 2021-22 में यह संख्या 63,927 थीं।
स्पष्ट है कि बीते एक दशक में भारत को छोड़कर दूसरे देश की नागरिकता लेने वालों की संख्या लगातार बढ़ी है। लिहाज़ा यह कहना गलत नहीं होगा कि कहीं ना कहीं कुछ गड़बड़ जरूर है।
ऐसा नहीं है कि नागरिकता छोड़कर दूसरे देश मे पलायन (Out Migration) कर रहे है लोगों में सिर्फ़ वे लोग ही शामिल हैं जिन्हें महज़ जीविका की तलाश होती है; बल्कि देश के धनाढ्य लोग भी- जिन्हें High Net Worth Individual (HNIs) कहा जाता है- विदेशों में बसने के लिए गोल्डन वीज़ा ख़रीद रहे हैं। वैश्विक निवेशक बैंक मॉर्गन स्टैनले (Morgan Stanley) के मुताबिक़ साल 2014 से 2018 के बीच लगभग 23000 करोड़पतियों ने अपना देश छोड़कर विदेशों में बस गए हैं।
कुल-मिलाकर देखें तो बीते एक दशक में ग़रीब से लेकर प्रोफेशनल से लेकर करोड़पति अमीरों द्वारा भारत छोड़कर जाने का सिलसिला बढ़ा है। आम ग़रीब लोग बिचौलियों के छल-प्रपंच के शिकार हो जाते हैं; प्रोफेशनल थोड़े दौड़-भाग कर के वर्क-वीज़ा (Work Visa) ले रहे हैं और करोड़पति अमीर सीधे विदेशी नागरिकता को ख़रीद ले रहे हैं।
अंग्रेजी हुकूमत के दौरान भारतीयों का बलपूर्वक विदेश पलायन (Forcibly Out Migration) कराया जाता था। बलपूर्वक विदेशों में भेजे जाने की घटना पर इतिहासकारों और उपन्यासकारों ने तमाम किताबें लिखी है। गिरिराज किशोर जैसे लेखकों ने ‘पहला गिरमिटिया’ नामक उपन्यास लिखा है जिसमें इन घटनाओं का बेहतरीन वर्णन मिलता है कि कैसे एक बेहतर जिंदगी के वादे के साथ विदेश ले जाये गए भारतीय वहाँ गुलाम बना लिए गए।
फिर 1970s और 1980s में भारतीय मज़दूरों को अच्छी तनख्वाह और बेहतर जिंदगी के सपने दिखाकर पश्चिमी एशिया और खाड़ी देशों (West Asia & Gulf Countries) में ले जाये गए जहाँ उन्हें अमानवीय हालातों में रहने पर मज़बूर किया गया। ये तमाम देश अलोकतांत्रिक थे और वहाँ राजशाही व्यवस्था के कारण मानव-अधिकारों से वंचित रहना पड़ा।
हालांकि, यह एक अज़ीब विडंबना है कि पलायन (Out Migration) के शिकार और तमाम विपरीत परिस्थितियों में जीने को मज़बूर भारतीयों ने कभी भी भारत वापस आने का रास्ता नहीं चुना। 1947 में जब देश आज़ाद हुआ तो ऐसे तमाम भारतीयों को वापस अपने देश लौटकर भारत की नागरिकता पुनः हासिल करने का विकल्प भी दिया गया, लेकिन अपवादों को छोड़कर किसी ने भी भारत वापस आना मुनासिब नहीं समझा।
वक़्त के साथ हालात बदले, विश्व राजनीति का स्वरूप बदला और इसका फायदा इन भारतीयों को मिला। आज वे लोग यहाँ भारत मे रहने वाले अपने रिश्तेदारों आदि से बेहतर हालात में जी रहे हैं और शायद यही वजह है कि आज भी पढ़ा लिखा भारतीय भी विदेशों में जाकर दोयम दर्जे के काम करने को वरीयता देते हैं।
आज लगभग 20 लाख भारतीय हर साल देश छोड़कर जा रहे हैं और इस से हुआ यह कि दुनिया भर में अप्रवासी भारतीयों (NRIs) की संख्या अप्रवासी चीनी लोगों से ज्यादा हो गई है। इसका एक फायदा तो हुआ है कि भारत मे आने वाली विदेशी धनराशि भी सर्वकालिक उच्चतम यानी 125 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया है।
भारत की सरकार इन प्रवासी भारतीयों की बढ़ती संख्या को एक सकारात्मक संपत्ति (Positive Assets) मानते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन्हें “ब्रेन बैंक (Brain Bank)” का नाम दिया है। पर क्या तस्वीर इसके उलट नहीं है कि हम अपने देश मे अपने ही नागरिकों को उनकी योग्यता के मुताबिक़ रोजगार के अवसर प्रदान करने में असक्षम हैं? क्या यह वाक़ई में ‘ब्रेन-बैंक (Brain Bank)’ है या फिर ‘ब्रेन ड्रेन (Brain Drain)’ और ‘लेबर ड्रेन (Labor Drain) ‘…. जिसकी आवश्यकता हमें शायद हमेशा से ज्यादा आज के अमृत-काल मे थी?
इस मामले को भारत के राजनेताओं और सरकारों ने अभी तक हल्के में लिया है। सच तो यह भी है कि ज्यादातर नेताओं के बच्चे पहले ही उच्च शिक्षा और नौकरियों के लिए भारत से बाहर चले जाते हैं। परन्तु आम जनता जो ग़रीब है या मध्यम आय श्रेणी वाली है- उसे रोजगार के उपयुक्त संभावना नहीं मिल पाती और इस वजह से वे भी भारत छोड़कर विदेशों में जाकर दोयम दर्जे के जीवन जीना ज्यादा बेहतर समझते हैं बजाए कि भारत मे ही रहकर संघर्ष और गुणवत्ताहीन जीवन जियें।
यह सच है कि दुनिया भर में भारत के सस्ते मज़दूरों की माँग तेजी से बढ़ रही हैं और यह एक बड़ी वजह भी है कि लोगों को विदेश पलायन करने का रास्ता चुनने में मदद करती है। लेकिन देश के आंतरिक हालात भी कहीं न कहीं इस पलायन (Out Migration) के लिए जिम्मेदार हैं। आज देश मे युवाओं की एक बड़ी आबादी ऐसी है जिसके पास डिग्री तो इंजीनियरिंग और MBA जैसी है लेकिन उनके क्षमता के मुताबिक़ रोजगार की संभावना न होने के कारण निम्न स्तर के कामों में उलझकर रह गए हैं।
यह सवाल उठना तो लाज़िमी है कि यह कैसा ‘न्यू इंडिया” है-जिसका जिक्र प्रधानमंत्री मोदी अक्सर करते है, कि लोग बेहतर संभावनाओं और जीवन के नए अवसर के तलाश में विदेशों में बस रहे हैं और भारत की नागरिकता तेजी से छोड़ रहे हैं? बीते 10 सालों में लगातार बढ़े धार्मिक खटास और उन्माद ने भी लोगों को पलायन करने पर मज़बूर किया है।
फिर विदेशों में पलायन की चुनौती न सिर्फ ब्रेन ड्रेन या लेबर ड्रेन तक सीमित है, बल्कि इसके कारण एक सामाजिक चुनौती भी उभरकर सामने आने लगी है। तेज़ी से विदेशों में जाकर अपना ठिकाना खोजने वाले लोग अपने पीछे बूढ़े माँ-बाप को अक्सर भारत मे ही छोड़ देते हैं। बाद में ये माता-पिता वृद्धाश्रम आदि में भटकने पर मज़बूर होते हैं।
जबकि सरकार द्वारा लोकसभा में ही दिए गए आंकड़ों की मानें तो वर्तमान में देश मे कुल 551 वृद्धाश्रम ही रजिस्टर्ड हैं। ऐसे में जाहिर है आगामी भविष्य में उन बुजुर्गों के देखभाल जिनके बच्चे विदेशों में जा बसे है, एक सामाजिक चुनौती भी बन सकता है।
कुल-मिलाकर यह कि तेजी से हो रहे विदेशी-पलायन (Out-Migration)और भारत की नागरिकता का त्याग किया जाना एक गंभीर चुनौती है लेकर सरकार को कोई गंभीर नीति बनाने की आवश्यकता है। कागजों और भाषणों से इतर जमीनी स्तर पर लोगों को देश मे ही रोजगार के बेहतर संभावनायें उपलब्ध करवाने होंगे।
आने वाले कुछ दशक भारत और भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए सबसे सुनहरा बताया जा रहा है। भारत की युवा आबादी देश को तरक्की के नई बुलंदियों पर पहुंचा सकता है। लेकिन अगर प्रोफेशनल लोग और धनाढ्य लोग विदेशों में जाकर बसने लगेंगे तो जाहिर है तरक्की और निवेश की संभावनाएं छिन्न होंगी और ऐसे में यह युवा आबादी भारत के लिए गले की हड्डी बनकर रह जायेगी।