Tipu Sultan Contested legacy: इस साल के अंत मे कर्नाटक राज्य में विधानसभा चुनाव प्रस्तावित है लेकिन राज्य में राजनीतिक माहौल अभी से बनना शुरू हो गया है। पिछले साल कर्नाटक में एक के बाद एक कई ऐसे मुद्दे उठाए गए जिस से धार्मिक ध्रुवीकरण की राजनीति का माहौल तैयार हो सके।
इसी क्रम में इस साल एक बार फिर से टीपू सुल्तान (Tipu Sultan) की एंट्री हो गई है। इस बार मोर्चा संभाला कर्नाटक बीजेपी के प्रेसिडेंट नलिन कुमार ने जब उन्होंने टीपू सुल्तान और उनके समर्थकों को लेकर एक विवादित बयान दिया है।
बीजेपी नेता नलिन कुमार ने बीते 15 फरबरी कोप्पल जिले के येलबर्गा (Yelburga) में आयोजित एक जनसभा में लोगों से आह्वाहन करते हुए कहा था कि टीपू (Tipu Sultan) के समर्थकों को जंगल मे खदेड़ देना चाहिए क्योंकि इस धरती पर बस वही रह सकते हैं जो भगवान राम का भजन करते हैं।
इस से पहले भी नलिन कुमार ने पिछले हफ्ते एक ऐसा ही बयान दिया था कि आगामी विधानसभा चुनाव हिंदुत्वादी विनायक सावरकर के विचारों और टीपू सुल्तान के समर्थकों के बीच होगा।
बीजेपी के पास दक्षिण में एक मात्र राज्य जहाँ उसकी सत्ता है, उसे बचाने का दवाब है। राज्य में नेतृत्व को लेकर भी येदियुरप्पा को हटाकर बोम्मई को मुख्यमंत्री बनाने से पार्टी के भीतर भी रस्साकशी चल रही थी। सरकार के मंत्रियों पर “कट-मनी” के रूप में पैसा लेने के आरोप पूरे कार्यकाल में राज्य के ठेकेदारों द्वारा लगता रहा है।
5 साल की सरकार के बाद निश्चित तौर पर सत्ता-विरोधी कारक (Anti Incumbency Factor) भी विद्यमान होगा। साथ ही, इस बार राज्य में कांग्रेस और जनता दल (सेक्युलर) पिछले चुनावों से भी बेहतर स्थिति में दिख रहे हैं।
ऐसे में भारतीय जनता पार्टी और उसके नेता अपनी पूरी कोशिश कर रहे हैं कि आगामी विधानसभा चुनाव विकास, शासन-प्रशासन आदि के साथ साथ मुख्य तौर पर हिंदुत्व के मुद्दे पर लड़ा जाए तो शायद फायदा मिल सकता है। इसी के मद्देनजर, इस साल के दूसरे महीने में ही “टीपू (Tipu Sultan)” की चुनावी एंट्री करवा दी गयी है।
हालांकि ऐसा कोई पहली बार हुआ है, ऐसा नही है। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर टीपू सुल्तान में ऐसी कौन सी बात है कि चुनाव आते ही बीजेपी को “टीपू” की याद आ जाती है?
Tipu Sultan: एक संक्षिप्त परिचय
टीपू सुल्तान का जन्म 10 नवंबर 1750 को तत्कालीन मैसूर राज्य के देवनाहल्ली (वर्तमान में बैंगलोर का इलाका) में हुआ था। उनके पिता हैदर अली ने मैसूर के हिन्दू राजा कृष्णराजा वोडेयार द्वितीय (Wodeyars) की सेना में दलवई (Commander in Chief) के पद पर तैनात थे।
1761 ईस्वी में टीपू (Tipu Sultan) के पिता हैदर अली ने मैसूर की सत्ता वोडेयार राजा के हाँथ से छीनकर खुद मैसूर का शासक बन गया और लगभग 20 वर्षों तक राज किया।
इस दौरान हैदर अली ने अपने बेटे टीपू की युद्ध-विद्या (Warcraft) और शासन-प्रशासन (Statecraft) दोनों में प्रशिक्षण दिलवाता रहा। टीपू सुल्तान ने अपने जीवन की पहली लड़ाई में मात्र 15 वर्ष की अवस्था मे भाग लिया था।
1782 में जब हैदर अली की मृत्यु हुई तो टीपू (Tipu Sultan) के सामने पहली चुनौती अपने पिता से विरासत में मिली राज्य-सत्ता को एकजुट रखना था। विशेष तौर पर मालाबार, कोडागु (Kodagu), और बदनूर (Bednur) आदि क्षेत्र जहाँ हैदर अली की शाशन के ख़िलाफ़ विरोध के स्वर उभर रहे थे।
राज्य के लिए आर्थिक और कूटनीतिक तौर पर बेहद महत्वपूर्ण इन इलाकों को जोड़े रखने के लिए टीपू सुल्तान ने हर तरह के हथकंडों का इस्तेमाल किया था जिसे समय-समय पर टीपू के कट्टरता (Bigotry) और अधिनायकवाद (Authoritarianism) के प्रमाण के तौर पर पेश किया जाता है।
क्या टीपू वाकई धार्मिक कट्टरवादी (Religious Bigotry) था?
टीपू (Tipu Sultan) को कर्नाटक विधानसभा चुनाव के पहले याद किया जाने का मक़सद सिर्फ यह है कि भारतीय जनता पार्टी उसे मुस्लिम कट्टरपंथी शासक के तौर पर पेश कर के हिन्दू-मुस्लिम कार्ड को चुनावी समीकरण का हिस्सा बनाना चाहती है।
ऐसे में असल सवाल है कि क्या टीपू वाकई इस्लाम को लेकर कट्टरवादी था? दरअसल इतिहास पर उठे सवालों के जवाब उस दौर के मापदंडों पर समझना चाहिए।
टीपू (Tipu Sultan) जब मैसूर पर शासन कर रहा था तो इतिहास के उस दौर में लगभग हर जगह युद्ध की नीतियां काफ़ी भयावह होती थी। विरोधियों का दमन काफ़ी मजबूती से किया जाता था जिससे अन्य संभावित विरोधियों को भी एक संदेश दिया जा सके कि विरोध का अंजाम क्या हो सकता है।
टीपू ने भी अपने विरोधियों से निपटने के लिए शांति-समझौते से लेकर युद्ध तक, बलपूर्वक जन-विस्थापन से लेकर धर्मांतरण तक – हर तरह की साम-दाम-दंड-भेद की नीतियां अपनाई थी।
हिन्दूत्व वाली दक्षिणपंथी विचारधारा के लिए टीपू की कट्टरता वाला तर्क इन्हीं बातों से बल पाता है कि टीपू ने हिन्दू राजाओं के ख़िलाफ़ लगातार आक्रमण किये तथा लोगों को बलपूर्वक धर्म-परिवर्तन करवाया।
लेकिन टीपू (Tipu Sultan) के शासन को एक दूसरे दृष्टिकोण से देखें तो इन बातों में कोई दम नही मिलता। क्योंकि उस दौर में टीपू सुल्तान ही नहीं बल्कि हर प्रभावशाली शासक एक दूसरे के ख़िलाफ़ लड़ आक्रमण कर रहे थे। उदाहरण के लिए मराठों का शासन देखें तो वे भी न सिर्फ मुस्लिम शाशक बल्कि हिन्दू राजाओं के ख़िलाफ़ भी आक्रामक थे।
दूसरा इतिहास में कई ऐसे वाकया भी दर्ज हैं जब टीपू सुल्तान ने हिन्दू मंदिरों की रक्षा और निर्माण करवाया। जैसे- श्रीरंगपट्टनम में स्थित श्री रंगनाथ मंदिर और श्रृंगेरी मठ को टीपू सुल्तान द्वारा संरक्षण दिया गया था।
इसलिए टीपू (Tipu Sultan) को धार्मिक कट्टर कहना या हिंदुओं के खिलाफ बताना महज अपनी सुविधा के लिए इतिहास की घटना को बेहद सरलीकरण कर के वर्तमान के चश्मे से देखने की कोशिश मात्र है।
Tipu Sultan : एक कुशल शासक
टीपू के शासन काल मे हुए राजनीतिक सुधारों को देखें तो टीपू सुल्तान को एक प्रशासक के रूप में अपने दौर के राजाओं से कहीं अधिक आधुनिक और वैज्ञानिक सोच वाला राजा के रूप में याद किया जाना चाहिए।
टीपू (Tipu Sultan) ने अपने विश्वस्त आधिकारिक प्रतिनिधियों को भेजकर फ्रांस से घड़ी बनाने वाले, बंदूक बनाने वाले, कांच से निर्मित वस्तुओं को बनाने वाले, तथा कई अन्य आधुनिक कारीगरो के जत्थे को बुलवाया था। इस जत्थे में एक इंजीनियर व एक डॉक्टर को भी बुलाया था जो यूरोपीय पद्धति में निपुण थे।
टीपू का मानना था कि अगर हमें यूरोपीय देशों को जो भारत पर सत्ता स्थापित कर चुके थे, उनसे अगर मुक़ाबला करना है हमें भी यूरोपीय तकनीकों को समझने की आवश्यकता है। यहाँ तक कि उसने कई यूरोपीय फलों और फूलों के बीज को भी मंगवाया।
सबसे महत्वपूर्ण यह कि टीपू (Tipu Sultan) ने प्रथम एंग्लो-मैसूर युद्ध मे लोहे के आवरण वाला रॉकेट (Iron Cased Rocket) का इस्तेमाल किया जिसने अंग्रेजो को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया था। कई इतिहासकार इस तरह के रॉकेट का भारत के किसी युद्ध मे प्रथम इस्तेमाल का श्रेय भी टीपू सुल्तान को देते हैं, हालांकि इसे लेकर इतिहासकारों के बीच मतभेद भी है।
टीपू (Tipu Sultan) ने कई आर्थिक सुधारों को भी अमल में लाया। अपने राज्य में उसने रेशम के कीड़ों का पालन व उस से संबंधित उद्योग (Sericulture industry) को भी वृहत तौर पर बढ़ावा दिया था जो आज भी वहाँ के स्थानीय लोगों को एक रोजगार का साधन मुहैया करवाता है।
टीपू सुल्तान के बारे में एक और वाक़या जो उसे एक आम जनता का प्रशासक बताता है वह ये कि तत्कालीन समाज में मैसूर के कुछ हिस्सों में नीची जाति की औरतों को कुर्ती (Blouse) पहनने की आज़ादी नहीं थी। टीपू (Tipu Sultan) ने इसका संज्ञान लेते हुए खुद अपने हाँथो से इन महिलाओं को ब्लाउज दिया और इस प्रथा को आड़े हाँथो लिया।
टीपू सुल्तान (Tipu Sultan) अपने पूरे जीवनकाल में अंग्रेजों के ख़िलाफ़ भारतीयों के संघर्ष का एक बड़ा उदाहरण बनकर लड़ता रहा। कुलमिलाकर टीपू सुल्तान ने अपने शासनकाल में एक कुशल प्रशासक होने के वह सारे गुणों का प्रदर्शन किया जो अन्य राजाओं के लिए एक आदर्श हो सकता था।
स्पष्ट है कि जब कोई राजनीतिक पार्टी या उसके किसी नेता द्वारा टीपू (Tipu Sultan) के समर्थकों को लेकर ऐसी बात की जाती है तो यह सिर्फ इतिहास के एक पन्ने को अपनी सहूलियत और राजनीतिक फायदे के लिए सामने लाता है।
सच्चाई यह है टीपू सुल्तान एक महान योद्धा, एक कुशल प्रशासक तथा आधुनिक वैज्ञानिक विचारधाराओं को समर्थन करने वाला भारतीय इतिहास का वह नायक है जिसने जीते-जी विदेशी ताकतों खासकर अंग्रेजों को नाको चने चबाने पर मज़बूर कर रखा था।