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    OPS vs NPS

    Politics Around Old Pension Scheme (OPS): पुरानी पेंशन योजना (OPS) की पुनर्बहाली का वायदा पिछले कुछ महीनों से राज्यों के चुनावों में बार-बार सुनाई दे रहा है।

    अभी हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव सम्पन्न हुए हैं। गुजरात मे एक चरण का चुनाव हो चुका है और दूसरे चरण का चुनाव बाकी है। इन दोनों राज्यों में भी चुनाव-प्रचार के दौरान कांग्रेस और आम आदमी पार्टी (AAP) ने OPS की बहाली के वादा किया है।

    ग़ौरतलब है कि, इन दोनों ही राज्यो में चुनावों के ठीक पहले (मई से सितंबर के बीच) हजारों की तादाद में सरकारी कर्मचारियों द्वारा वर्तमान में जारी नए पेंशन योजना (NPS) के जगह पुराने पेंशन योजना (OPS) की बहाली की माँग कर रहे थे।

    गुजरात मे जहाँ लगभग 7 लाख सरकारी कर्मचारी हैं वहीं हिमाचल में यह संख्या 2.5 लाख है। इस तरह दोनों राज्यों को मिलाकर OPS की पुनर्बहाली से कम से कम 4-5 लाख कर्मचारियों पर असर पड़ेगा।

    इन्हीं वोटरों और इनके परिवार के सदस्यों के मतों को अपने पक्ष में रिझाने के लिए कांग्रेस और AAP ने OPS की पुनर्बहाली के मुद्दे को अपने चुनावी घोषणा-पत्र का अहम हिस्सा बनाया है।

    इन सबके बीच अहम सवाल यह है कि क्या इस से राज्यों की आर्थिक हालात पर कोई अतिरिक्त बोझ नहीं पड़ेगा? क्या यह आर्थिक मापदंडों पर भी इतना आसान है जितना कि चुनावी भाषणों और घोषणा पत्र में लिख देना?

    इन सवालों को समझने के पहले हमें कुछ बिंदुओं को समझने की आवश्यकता है। मसलन आखिर क्यों NPS के जगह OPS का वादा कर रही हैं राजनीतिक पार्टियां? आखिर इसमें जनता का क्या फायदा है या उनपर इसका असर पड़ने वाला है?

    NPS बनाम OPS

    दरअसल पुराने पेंशन योजना (OPS) में किसी सरकारी नौकरी-धारक को सेवा-निवृत्ति (Retirement) के बाद पेंशन के रूप में जो रकम मिलती थी, वह उस व्यक्ति द्वारा सेवा के दौरान मिली आखिरी सैलरी का 50% होता था। इस पेंशन व्यवस्था में पेंशन की पूरी धनराशि अकेले सरकार वहन करती थी। साथ ही पेंशन फंड पर पूरा नियंत्रण उस कर्मचारी के हाँथ में रहता था।

    इस वजह से सरकार के कुल मद का एक बड़ा हिस्सा पेंशन के भुगतान में जाता था। इसी वजह से 1 अप्रैल 2004 को इस व्यवस्था (OPS) को समाप्त कर दिया गया और एक नई पेंशन व्यवस्था (NPS) को लाया गया।

    इस नए पेंशन योजना (NPS) के तहत हर सरकारी कर्मचारी को एक परमानेंट रिटायरमेंट एकाउंट नंबर देती है। हर सरकारी कर्मचारी कर्मचारी अपने सैलरी और DA (Dearness Allowance) का 10% हिस्सा पेंशन फंड में जमा करवाने को बाध्य होता है।

    सरकार के तरफ से भी उसके सैलरी और DA का 14% ( 2019 से पहले 10% ही था) उसी पेंशन फंड में जमा करवाया जाता है।यह पैसा उस पेंशन फंड के मैनेजर द्वारा कहीं भी निवेश (इन्वेस्टमेंट) के लिए सरकार के पास अप्रत्यक्ष रूप से उपलब्ध होता है।

    रिटायरमेंट के बाद वह व्यक्ति (कर्मचारी) अपने पेंशन फंड से कुल राशि का 60% निकाल सकता है जबकि शेष 40% राशि को वह किसी ऐसे इंश्योरेंस कंपनी, जो सरकार द्वारा संचालित और रजिस्टर्ड हैं, में निवेश (Invest) करेगा। इस निवेश से मिलने वाला ब्याज उसे आय कब रूप में मिलता रहेगा जो उसका मासिक पेंशन कहा जा सकता है।

    स्पष्ट है कि, NPS के तहत मिलने वाला पेंशन अकेले सरकार वहन नहीं कर रही है, बल्कि कर्मचारियों को भी योगदान देना पड़ रहा है। दूसरा इसका नियंत्रण भी सरकारी व्यवस्था के हाँथ में चला गया है जबकि OPS में ऐसा नहीं था।

    यही वजह है कि इन राज्यों के चुनावों में सरकारी कर्मचारियों द्वारा भी OPS की मांग हो रही हैं, वहीं राजनीतिक दल भी NPS बनाम OPS की बुनियाद पर एक बड़े वोट बैंक को साधने की कोशिश कर रहे हैं।

    राज्य जहाँ OPS लागू है

    कांग्रेस शाषित राज्यों राजस्थान और छत्तीसगढ़ में क्रमशः अशोक गहलोत और भूपेश बघेल की सरकारों ने पुरानी पेंशन योजना (OPS) की व्यवस्था पहले ही कर चुकी है। झारखंड में भी NPS के जगह OPS को पुनर्बहाल कर दिया गया है। यहाँ भी कांग्रेस और झामुमो की गठबंधन की सरकार है।

    कांग्रेस शाषित राज्यों के अलावे पंजाब, जहाँ AAP की सरकार है, में भी पुरानी पेंशन योजना (OPS) को लागू कर दिया गया है।
    यही वजह है कि ये दोनों पार्टियां हिमाचल प्रदेश और गुजरात के चुनावों में भी इस मुद्दे को अपने चुनावी राजनीति का अहम हिस्सा बनाया है।

    राज्यों के राज्य-कोष पर पड़ेगा अतिरिक्त आर्थिक बोझ

    पुरानी पेंशन व्यवस्था (OPS) के इर्द गिर्द हो रही राजनीति से हटकर एक हक़ीक़त यह भी जाहिर है कि इस व्यवस्था के पुनर्बहाली से राज्यों के आर्थिक कोष पर अतिरिक दवाब बनेगा।

    जिन राज्यों में अभी पुरानी पेंशन व्यवस्था को बहाल कर दिया गया है, उनमें से ज्यादातर राज्यों के ऊपर पहले से ही भारी कर्ज है। RBI के हालिया रिपोर्ट के मुताबिक पंजाब, राजस्थान और झारखंड राज्यों के ऊपर कुल कर्ज वाली सूची में क्रमशः पहले (53.3% of GSDP), दूसरे (39.8 % of GSDP) और सातवें  स्थान पर हैं।

    पंजाब की आर्थिक हालात तो यह है कि अगर राज्य सरकार की कमाई 100₹ है तो वह 21.3₹ सिर्फ कर्ज के ब्याज चुकाने में खर्च करता है, जबकि कर्ज का मूलधन ज्यों का त्यों बना रहता है।

    ऐसे में इन राज्यों द्वारा पुरानी पेंशन व्यवस्था (Old Pension Scheme) को लागू करने का सीधा सा मतलब है – पहले से घाटे में चल रहे राज्य-कोष पर और भी आर्थिक बोझ लादना।

    इसे लेकर हाल ही में नीति आयोग के उपाध्यक्ष सुमन बेरी ने चिंता भी जताई है। उन्होंने कहा कि OPS के कारण इन राज्यों के करदाताओं पर अतिरिक्त बोझ पड़ेगा जबकि इस वक़्त भारत को राज्यकोशीय घाटे को कम करने और सतत विकास को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।

    कुल मिलाकर, OPS बनाम NPS की राजनीति में राजनीतिक दलों को यथार्थ से विमुख नहीं होना चाहिए। एक तरफ़ को राज्य सरकार भारी कर्ज तले दबे हैं, दूसरी तरफ़ अतिरिक्त आर्थिक बोझ भी खरीद रहे हैं।

    दूसरा पक्ष यह भी कि हो सकता है कि आज वर्तमान में यह व्यवस्था बहुत बोझ ना डाले लेकिन अरसे के बाद भविष्य में जब भारत की आबादी में बूढों की संख्या बढ़ जायेगी, तब सामाजिक सुरक्षा के लिहाज़ से यही योजनाएं गले की हड्डी ना बन जाये।

    By Saurav Sangam

    | For me, Writing is a Passion more than the Profession! | | Crazy Traveler; It Gives me a chance to interact New People, New Ideas, New Culture, New Experience and New Memories! ||सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल ज़िंदगानी फिर कहाँ; | ||ज़िंदगी गर कुछ रही तो ये जवानी फिर कहाँ !||

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