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    दिल्ली में वायु प्रदुषण खतरनाक स्तर पर

    दिल्ली वायु-प्रदूषण (Delhi Pollution): बीते कुछ सालों से दीपावली के आस पास ठंड शुरू होते ही दिल्ली और उसके आस पास के इलाकों में हवा में सांस लेना दूभर हो जाता है; और इसके साथ ही शुरू होता है एक सालाना आरोप-प्रत्यारोप महोत्सव!

    हर साल इन दिनों में दिल्ली और आस-पास के इलाकों में वायु प्रदूषण के कारण हवा का जहरीला होना कोई नई बात नहीं है लेकिन बीते एक दशक में हमारे सियासती लोगों ने एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप के अलावे सिर्फ यही उपाय खोजा है कि किसकी कमीज किस से ज्यादा सफेद है।

    दिल्ली की गद्दी पर बैठी सरकार हर साल अपनी समस्याओं के लिए पंजाब और हरियाणा के किसानों पर पराली जलाने का आरोप लगाकर सारा ठीकरा इन राज्यों की सरकारों पर फोड़ देती थी; लेकिन इस बार यह भी हज़म नहीं हो रहा है क्योंकि दिल्ली और पंजाब दोनों राज्यों में आम आदमी पार्टी की ही सरकार है। लिहाज़ा अरविंद केजरीवाल की पार्टी इस बार खुलकर कुछ बोल भी नहीं रही है।

    दूसरी तरफ़ भारतीय जनता पार्टी के दिल्ली इकाई के कुछ नेता खुलेआम सोशल मीडिया पर इस दीपावली सुप्रीम कोर्ट के प्रतिबंधों के बावजूद आम लोगों से पटाखें जलाने की अपील प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर करते रहे। इसे हिन्दू संस्कृति और हिन्दू त्योहार विरोधी फैसला साबित करने की हरसंभव कोशिश की गई।

    दीपावली के ठीक अगले दिन जैसे ही हवा में प्रदूषण का स्तर खतरनाक हो गया, वही बीजेपी के लोग (बस चेहरा बदल कर) इस पूरे वायु-प्रदूषण का ठीकरा आम आदमी पार्टी की सरकार पर फोड़ने लगे।

    इस राजनीतिक नफा-नुकसान और आरोप प्रत्यारोप के बीच सबसे ज्यादा नुकसान दिल्ली की आम जनता को उठाना पड़ रहा है। प्रदूषण पर नियंत्रण पाने की कवायद वाले सरकारी दावे हर साल और भारी-भरकम होते जा रहे हैं; लेकिन देश की राष्ट्रीय राजधानी की हालत हर अगले साल पुराना इतिहास ही दुहराता नज़र आता है।

    वैसे तो दिल्ली की हवा के बेहद प्रदूषित होने की ख़बर इस मौसम में कोई नया नहीं है लेकिन इस बार हालात थोड़े ज्यादा गंभीर है। क्योंकि आम तौर पर इन दिनों में पश्चिम से जब हवा चलती है तो प्रदूषण के स्तर मे कमी आती है लेकिन इस बार हवा की रफ्तार थोड़ी कम है जिसके कारण दिल्ली में हवा की गुणवत्ता (AQI) कहीं “बेहद खतरनाक” तो कहीं “गंभीर” श्रेणी में दर्ज की गई है।

    जाहिर है, कई जगहों पर लोगों को सांस लेने में तकलीफ होने लगी है और इसी के मद्देनजर बच्चों के स्कूलों को भी बंद करने का आदेश जारी किया गया है। दिल्ली की हवा में जिस तरह से गुणवत्ता में गिरावट दर्ज हो रही है, यह सरकारी व्यवस्था और दिल्ली हरियाणा व पंजाब की सरकारों के प्रयासों पर सवालिया निशान भी खड़े कर रही है।

    दिल्ली वायु प्रदूषण
    CSE के अनुसार दिल्ली के वायु प्रदूषण में सबसे बड़ा योगदान वहाँ के प्राइवेट वाहनों से उत्सर्जित अपशिष्टों (51% of PM 2.5 Level Pollutant) का है। (Image: India TV News)

    अगर राजनीतिक आरोप प्रत्यारोप से इतर देखा जाए तो दिल्ली की हवा को इस खतरनाक स्तर तक पहुंचाने में सबसे ज्यादा जिम्मेदार हैं दिल्ली के ही नागरिक!

    यह सच है कि निकटवर्ती राज्यों के किसानों द्वारा फसलों के अवशेषों को जलाए जाने व दीपावली के पटाखेबाजी के बाद इस मौसम में वायु प्रदूषण की यह समस्या गंभीर हो जाती है लेकिन क्या दिल्ली की हवा आम दिनों में स्वच्छ और साफ रहती है? जवाब है-नहीं।

    इस प्रदूषण की सबसे बड़ी वजह है दिल्ली वासियों की जीवन-शैली! साल भर चलने वाले AC, अनियंत्रित संख्या में प्राइवेट वाहन और उनसे निकले धुएँ, तथा आस पास के इलाकों में लगाये गए औद्योगिक इकाई से निकले अपशिष्ट पूरे साल यहां की हवा में ज़हर घोलते हैं। फिर दिल्ली की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि यहाँ हवा की रफ्तार इन प्रदूषकों को शहर से दूर ले जाने में असक्षम होती है।

    दिल्ली स्थित संस्था सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) के अनुसार 21 अक्टूबर से 26 अक्टूबर के बीच यानि दीपावली वाले हफ्ते में शहर के भीतर के प्रदूषण में सबसे बड़ा योगदान (51% of PM2.5 level प्रदूषक) वाहनों से निकले अपशिष्टों का रहा है। उसके बाद दूसरे व तीसरे स्थान पर क्रमशः 13% योगदान घरों से निकले तथा 11% उद्योग-धंधों से निकले प्रदुषण-स्रोतों का रहा है।

    स्पष्ट है कि, दीपावली के मौके पर होने वाले पटाखेबाजी और आसपास के राज्यों में पराली जलाए जाने के कारण ही दिल्ली की हवा इतनी जहरीली है, ऐसा कतई नहीं है। यह जरूर है कि इन दो कारणों से इस मौसम में वायु प्रदूषण की यह समस्या बस और गंभीर हो जाती है जिसके बाद देश के सियासतदां जाग उठते हैं। वरना देश की संसद और राज्य के विधानसभाओं में कितनी ही गंभीरता से इन मुद्दों पर चर्चाएं हुईं है, या होती है; यह कोई छुपा रहस्य नहीं है।

    फिर क्या दिल्ली की समस्या कोई ऐसी समस्या है जिसका निदान नहीं हो सकता है, तो ऐसा नहीं है। इसके लिए दिल्ली की दोनों सरकारों- केंद्र व राज्य (असल मे UT) को इस समस्या के प्रति राजनीति से ऊपर उठकर गंभीर होना होगा।

    लंदन और लॉस एंजिल्स जैसे शहर इस समस्या से 1950 और 60 के दशक में इसी समस्या से जूझ रहे थे परंतु आज स्थिति बिल्कुल उलट है। इन शहरों में ऐसा तभी संभव हुआ जब वहां की सरकारों ने नीति-निर्धारण के हर मोर्चे पर पर्यावरण को प्राथमिकता दी। जनता के बीच जागरूकता और ओछी राजनीति से दूरी बनाई जाने की कवायद की गई।

    अब सवाल है कि क्या भारत मे भी यह सब संभव है? क्या हम दीपावली के मौके पर एक तरफ जनता को भड़का कर और पटाखे जलाने को उकसाकर दूसरी तरफ पर्यावरण को जन-सरोकार का मुद्दा बना पाएंगे? क्या केंद्र और राज्य की सरकारें आरोप प्रत्यारोप के बजाए अपनी जिम्मेदारी खुद से तय कर पाएंगे?

    ऐसे सवाल अनेकों है जिनका जवाब तलाशना होगा। वरना पहले ही काफी देर हो चुकी है, अब और कुछ साल इन्ही सब मे गुजरे तो वह दिन दूर नही कि दिल्ली के अस्पताल प्रदूषण-जनित बीमारियों से ग्रसित लोगों से पटा पड़ा होगा।

    By Saurav Sangam

    | For me, Writing is a Passion more than the Profession! | | Crazy Traveler; It Gives me a chance to interact New People, New Ideas, New Culture, New Experience and New Memories! ||सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल ज़िंदगानी फिर कहाँ; | ||ज़िंदगी गर कुछ रही तो ये जवानी फिर कहाँ !||

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