आत्महत्या के मामले (NCRB रिपोर्ट): बीते हफ़्ते में दो बड़ी खबरें जिसे पढ़कर भारत की दो तस्वीर गढ़ी जा सकती है। जहाँ एक तरफ गौतम अडानी दुनिया के तीसरे सबसे अमीर व्यक्ति बन गए हैं वहीं दूसरी तरफ राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) द्वारा जारी खुदकुशी से जुड़े ताजा रिपोर्ट के मुताबिक भारत मे आत्महत्या करने वालों में दिहाड़ी मजदूरों की संख्या तेजी से बढ़ी है।
जी हाँ, यह आपस मे विरोधाभास जरूर हैं लेकिन आज के भारत की यही सच्चाई है। अमीर और गरीब के बीच का खाई बढ़ता जा रहा है और यही आर्थिक विषमता आम आदमी के लिए हताशा और निराशा का सबब बन रहा है।
बढ़े हैं आत्महत्या के मामले
NGO ऑक्सफैम इंडिया के एक रिपोर्ट के अनुसार 2021 में भारत मे अरबपतियों की संख्या 102 से बढ़कर 142 हो गई है। वही हालिया NCRB रिपोर्ट के अनुसार 2021 में भारत मे आत्महत्या करने वाला हर चौथा व्यक्ति एक दिहाड़ी मजदूर है।
NCRB के 2021 के रिपोर्ट के आंकड़े बता रहे हैं कि गरीब और निम्न मध्यम वर्गीय लोगों के बीच खुदकुशी की घटनाएं 2019 से 2021 के बीच बढ़ी हैं। दिहाड़ी मजदूरों के साथ साथ छात्रों, स्वरोजगार से जुड़े लोगों, सेवानिवृत्त आदि वर्गों के बीच भी खुदकुशी या आत्महत्या की प्रवृत्ति का प्रसार हुआ है।
इसी रिपोर्ट के अनुसार साल 2021 में आत्महत्या करने वालों की संख्या प्रति दस लाख की आबादी पर 120 तक पहुँच गया है जो 2020 कि तुलना में 6.1% ज्यादा है। साल 2021 में कुल एक लाख चौंसठ हज़ार तैतीस लोगों ने आत्महत्या की जिसमें 42 हज़ार लोग दिहाड़ी मजदूर तबके से थे।
सुस्त अर्थव्यवस्था है सबसे बड़ी वजह
कोरोना महामारी के बाद देश मे पूर्ण व आंशिक लॉक डाउन के कारण लोगों के हाँथ से रोज़गार छीन गया है। 2019 में एक साथ करोड़ो प्रवासी मजदूरों को घर वापिस लौटने का मंजर इस देश के इतिहास में अद्वितीय था और इसमें सबसे ज्यादा दिहाड़ी मजदूर थे। निजी और असंगठित क्षेत्र के भी लाखों लोगों की नौकरियां इस दौरान चली गई जबकि लाखों लोगों की मासिक वेतन में कटौती की गई जिस से लोगों को घर चलाना बहुत मुश्किल हो गया।
एक झटके में इतनी बड़ी संख्या में लोगों का रोजगार का छीन जाना लोगों के जीवनचर्या में हर मुद्दे पर कई कठिनाई का कारण बन गया है। शिक्षा, भोजन, स्वास्थ्य, आदि के मोर्चे पर आम आदमी रोज हार रहा है और आत्महत्या जैसे कदम उठाने पर मजबूर है।
इन सबके साथ बेतहाशा महँगाई ने संकट को दुगना कर दिया है। कुल मिलाकर हालात वही है : “एक तो करेला दूजे नीम चढा”। भले ही केंद्र और राज्य सरकारें दावे करती हैं कि गरीबों को बचाने के लिए हद्द से आगे जाकर मदद कर रही हैं, 80 करोड़ लोगों को महीनों तक मुफ्त राशन या खाना आदि दिया; लेकिन जमीनी हालात जुदा है।
महंगाई और बेरोजगारी ने गरीब और मध्यम वर्ग का जीना दुश्वार कर दिया है। नतीजतन NCRB के रिपोर्ट में जो आँकड़े हैं वह जमीनी हकीकत को दिखा रहा है। आंकड़े बता रहे हैं, कि इन आत्महत्या करने वालों के बीच दो-तिहाई लोग ऐसे हैं जिनका सालाना आय एक लाख से कम या आसपास है।
कुल मिलाकर सरकारों के तमाम दावे और वायदे खोखले साबित हो रहे हैं। बेरोजगारी और महँगाई लगातार आम आदमी को लगातार निराशा और हताशा में डुबाये जा रहे हैं। नतीजतन लोग आत्महत्या को चुनने पर मजबूर रहे हैं।
भारत एक अर्थव्यवस्था के तौर पर दुनिया में पाँचवे स्थान पर आ गया है। सोशल मिडिया और मेनस्ट्रीम मीडिया द्वारा पर यह खबर खूब प्रमुखता से प्रसारित हो रही है लेकिन दूसरी तरफ़ NCRB के आंकड़े इस पूरे चमक-दमक को मुँह चिढ़ा रहे हैं।