बिलकिस बानो केस (Bilkis Bano Case): क्या सामूहिक बलात्कर एक जघन्य अपराध है? क्या किसी तीन साल के किसी बच्ची को चट्टान के ऊपर पटक कर मार देना राक्षसी करतूत नहीं है? क्या एक ही परिवार के 14 सदस्यों की हत्या निर्ममता की परिकाष्ठा नहीं है? क्या ऐसे अपराधों के दोषियों को समाज मे माल्यार्पण और मिठाई खिलाकर स्वागत करना समाज की दकियानूसी को नहीं दर्शाता है?
अगर उपरोक्त सवालों के जवाब आपकी नज़र में भी हाँ है तो फिर यह समाज जिसमें हम आप सब हैं, बिलकिस बानो को लेकर इतना खामोश क्यों है? इस तरह की खामोशी तब तो नहीं थी जब दिल्ली में निर्भया कांड हुआ था?
बलात्कर तो बलात्कर ही होता है लेकिन एक 5 महीने की गर्भवती महिला के साथ बलात्कर इस अपराध को और भी जघन्य बनाता है लेकिन फिर भी हमारी आत्मा क्यों नहीं कहती कि चलो फिर से कैंडल और पोस्टर लेकर उसी रायसीना हिल्स पर बने राष्ट्रपति भवन के तरफ…. जैसे निकले थे लाखों लोग दिल्ली के सड़कों पर गुस्से की उबाल में निकल आये थे एक बेटी की अस्मिता से खिलवाड़ करने वालों को सजा दिलवाने के लिए?
क्या इसकी वजह यह तो नहीं कि इस बाद पीड़िता का नाम “बिलकिस” है? क्या इसकी वजह यह तो नहीं कि मामला उसी गुजरात का है जहाँ से प्रधानमंत्री और गृहमंत्री आते हैं और वहाँ उन्हीं की पार्टी ने इन बलात्कारियों को रिहा करने का आदेश दिया है? क्या गुजरात चुनावों के मद्देनजर यह सब तो नहीं किया है बीजेपी ने?
15 अगस्त को बीते आज 11 दिन हो गए हैं जब गुजरात के गोधरा कांड के दौरान एक गर्भवती महिला से बलात्कर और उसके परिवार के 14 सदस्यों की निर्मम हत्या के आरोप में आजीवन कारावास की सजा काट रहे 11 अपराधियों को गुजरात की बीजेपी सरकार ने सजा माफ़ कर रिहाई दे दी।
अब इसे संयोग कहें या विरोधाभास या ढीठता कि इधर जिस वक़्त देश के प्रधानमंत्री और बीजेपी के सबसे बड़े नेता प्रधानमंत्री लालकिला की प्राचीर से महिला सम्मान और महिला सशक्तिकरण का आह्वाहन देश की जनता से कर रहे थे; लगभग उसी समय उन्हीं की पार्टी द्वारा शाषित उनके ही गृहराज्य में बिलकिस बानो के गुनाहगारों को, जो आजीवन कारावास का सजा काट रहे थे, रिहा किया जा रहा था।
याद करिये दिसंबर 2012 की वह ठंड रातें जब दिल्ली में हुई एक बेटी के साथ हुए जघन्य बलात्कर को लेकर लगभग पूरा भारत सड़कों पर था… पुलिस की लाठियाँ और पानी की बौछारें उस ठंड की रातों में भी प्रदर्शनकारियों के हौसले को ना डिगा सका था… फिर सरकार झुकी, कोर्ट खुले और दोषियों को सजा भी हुई।
देश शुक्रगुजार है इस मामले से जुड़े जस्टिस वर्मा की कमिटी के जिसने बलात्कर जैसे मामलों में कानून को और पैनापन दिया जिसके बाद कई अन्य निर्भया जैसी बेटियों को इंसाफ मिला।
बिलकिस बनो केस में सज़ायाफ्ता दरिदों की रिहाई के बावजूद समाज के एक हिस्से में खामोशी क्यों है; इसको समझने के लिए पहले यह समझना जरूरी है कि आखिर निर्भया के वक़्त लोग इतने गुस्से में क्यों थे?
असल मे तब मीडिया ने एक बड़ा रोल निभाया था। मीडिया ने निर्भया कांड पर सरकार से कड़े सवाल पूछे, सड़क पर प्रदर्शन को आवाज दी। बड़ा कवरेज दिया गया जिससे दिल्ली छोड़िये, सुदूर किसी कोने में बैठा भारतवासी भी निर्भया के लिए आवाज उठाना चाहता था।
अब बिलकिस बानो के मामले में अभी मीडिया का एक हिस्सा ने इस खबर को या तो तूल नहीं दी या फिर किसी ने औपचारिक तौर पर एक एपिसोड कर दिया। इन प्रमुख मीडिया संस्थानों पर बीजेपी समर्थित होने का आरोप भी लगता रहा है।अब अगर इन दोनों बातों को समानांतर में रख कर देखेंगे तो लगता है कि यह आरोप बेबुनियादी नहीं है।
शायद ये खामोशी इसलिए है क्योंकि अगर इस मामले को हवा दी गई तो पहले तो मामला बीजेपी शासित राज्य से है और फिर नरेंद्र मोदी की क्षवि का सवाल है। शायद यह एक वजह है कि मीडिया के इस धड़े में बिलकिस बानो मामला में आया नया मोड़ वह हलचल नहीं पैदा कर पाया, जो करना चाहिए था।
विपक्षी दल भी एकजुटता से आवाज नही दे पा रहे हैं। दिल्ली की सत्ता में बैठी आम आदमी पार्टी ED /CBI से अभी अपना दामन बचाने में लगी है, इसलिए बिलकिस बानो के मुद्दे पर खामोश है।
बाकि दलों के छिटपुट प्रेस कॉन्फ्रेंस या भाषणों को दे तो अकेले कांग्रेस ने लगातार आवाज उठाई है पर जमीन पर वह भी उंस विरोध को नहीं दर्ज करवा पाई है कि एक जनांदोलन खड़ा हो। सोशल मीडिया पर इस मुद्दे को लेकर कांग्रेस लगातार हमलावर रही है।
‘बेटी बचाओ’ जैसे खोखले नारे देने वाले, बलात्कारियों को बचा रहे हैं।
आज सवाल देश की महिलाओं के सम्मान और हक़ का है।
बिलकिस बानो को न्याय दो।
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) August 25, 2022
हालांकि अब जाकर मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा है और इस पर सुनवाई की जा रही है। कोर्ट, कानून आदि सब अपनी जगह ठीक है लेकिन समाज के तौर पर क्या यह जायज है कि हम बिलकिस बानो को न्याय नहीं दिला पा रहे?
Bilkis Bano case | SC says – question is, under Gujarat rules, are the convicts entitled to remission or not? We’ve to see whether there was application of mind in this case while granting remission, SC says.
SC directs petitioners to make 11 convicts party in the case here. pic.twitter.com/sMTa4ZxruS
— ANI (@ANI) August 25, 2022
एक महिला जिसके आबरू के साथ खेला गया; जिसका पूरा परिवार मार दिया गया; जिसके आवाज को शुरुआत में गुजरात पुलिस दबाती रही; फिर भी वह लड़ी और अपने गुनाहगारों को उस अंजाम तक पहुंचाया जिसके वह हकदार थे…
लेकिन फिर इन वहशी दरिंदो को राज्य की सरकार द्वारा गठित एक कमिटी रिहा करने का फैसला देती है वह भी सजा के दौरान उनके व्यवहार और अपराध की प्रवृत्ति को आधार मानकर… क्या इसे कोर्ट द्वारा दिये गए न्याय की हत्या ना माना जाए?
फिर हद्द तो यह कि इन हैवानियत भरे कारनामे को अंजाम देने वाले अपराधियों को समाज मे माल्यार्पण कर के स्वागत किया गया, मिठाईयां बांटी गई… वह भी औरतों के द्वारा ही?
राज्य सरकार का एक विधायक इनको बेगुनाह इसलिए कहता है कि ब्राह्मण है, और इनके संस्कार अच्छे हैं! क्या समाज की निष्ठुरता का इस से बड़ा प्रमाण कहीं और मिलेगा?
एक बात याद रखिये, अगर इनको सजा से बाहर लाना भी था तो माफ करने का अधिकार सिर्फ और सिर्फ बिलकिस बानो के पास होना चाहिए, किसी सरकार या किसी कमिटी या किसी कोर्ट के पास भी नहीं।
फिलहाल बिलकिस बानो से जुड़ा यह मामला सुप्रीम कोर्ट के संज्ञान में है और माननीय कोर्ट से यह उम्मीद है कि उचित कार्रवाई करे। वरना लालकिले से प्रधानमंत्री के तमाम दावे, या फिर देश के सर्वोच्च पद पर एक महिला का राष्ट्रपति के रूप में होना या फिर आजादी का अमृत महोत्सव… सब महिला न्याय और अधिकारों के संदर्भ में बस छलावा ही साबित होगा।