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    Freebies VS Votes in India

    Freebies in Indian Politics: माननीय सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और चुनाव आयोग से 1 हफ्ते का समय देते हुए सुझाव मांगा है कि चुनावी जीत के लिए तमाम राजनीतिक पार्टियों द्वारा जनता को फ्री की सुविधाएं (Freebies) और राजनीतिक रेवड़ियां बांटने के चलन पर नियंत्रण कैसे किया जाए।

    माननीय कोर्ट ने कहा कि चुनाव प्रचार के दौरान राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त में दी जाने वाली सुविधाओं के बदले देश के अर्थतंत्र तथा अन्य व्यवस्थाओं पर अतिरिक्त दवाब बनता है।

    इसलिए इसको नियंत्रण में कैसे किया जाए, इस पर सुझाव देने के लिए नीति आयोग, वित्त आयोग, चुनाव आयोग, सत्तारूढ़ दल, विपक्षी पार्टियां, RBI तथा अन्य संबंधित पक्षों को साथ आकर एक निकाय बनाने की आवश्यकता है।

    आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने ऐसी ही याचिका पर सुनवाई करते हुए जनवरी के महीने में भी केंद्र सरकार और चुनाव आयोग को मुफ्त की घोषणाओं यानी Freebies के मुद्दे पर पर नोटिस भेजा था।

    Freebies बाँटने वाली पार्टियों का निरस्त हो रेजिस्ट्रेशन

    माननीय कोर्ट के आगे दाखिल एक जनहित याचिका में यह मांग की गई है कि मुफ्त में सुविधाएं (freebies) बाँटने वाली पार्टियों का रेजिस्ट्रेशन खत्म किया जाए। इस से पहले सुप्रीम कोर्ट ने मुफ्त चुनावी घोषणाएं करने वाले सियासी दलों के मुद्दे को गंभीर रूप से चिन्हित किया है।

    मुख्य न्यायाधीश एन वी रमन्ना की अध्यक्षता वाली 3 जजों की पीठ ने केंद्र व वित्त आयोग को यह पता लगाने को कहा था कि राज्य सरकारों और राजनीतिक दलों द्वारा मतदाताओं को प्रभावित करने वाली मुफ्त के “रेवड़ी कल्चर” (Freebies) को रोकने की क्या सम्भावना है।

    देश और राज्यों की अर्थव्यवस्था पर असर

    “मुफ्त की रेवड़ी कल्चर (Freebies)” की घोषणा राजनीतिक दल चुनावों में मतददाताओं को रिझाने के लिए कर देते हैं लेकिन जब सत्ता में आते हैं तो उस वादे को निभाने के चक्कर मे राज्य की अर्थव्यवस्था पर भारी बोझ लाद दिया जाता है।

    उदाहरण के लिए, मुफ्त बिजली या मुफ्त पानी आदि जैसी घोषणाएं अभी पंजाब  विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने की थी। सत्ता में आने के बाद सरकार इन घोषणाओं को पूरा करने में जाहिर है पंजाब के राजकीय कोष पर बोझ लादेगी।

    अब इस मुफ्त की घोषणा को पूरा करने के लिए खर्च होने वाले मद की भरपाई कहीं ना कहीं से करना ही होगा। पंजाब राज्य पहले ही केंद्र व अन्य स्रोतों से भारी कर्ज तले डूबी हुई है।

    ऐसे में एक फ्री की सुविधा (Freebies) के लिये जनता को कहीं ना कहीं और आर्थिक मार झेलनी पड़ेगी। इसका दूसरा रास्ता यह है कि पहले ही घाटे में चल रहे राजकीय कोष पर और कर्ज बढ़ाया जाए। जाहिर है दोनों की स्थिति अर्थव्यवस्था के लिहाज़ से सही नहीं है।

    इतना ही नहीं, सरकारें मुफ्त बिजली देने के वादे को पूरा करने के दवाब में बिजली वितरण और उत्पादक कंपनियों को सही वक़्त पर बकाया नहीं चुका पाती हैं। नतीजतन सरप्लस प्रोडक्शन वाले भारत मे देश का अलग अलग हिस्सा  गर्मी के दिनों में भीषण बिजली सकंट से जूझ रहा होता है।

    यह तो बिजली पानी आदि जैसी मूलभूत सुविधाओं की बात है जिसे लोकतंत्र के समाजवादी प्रकृति के सिद्धांतों के अधीन कई लोग न्यायोचित साबित भी कर दें। लेकिन राजनीतिक दलों द्वारा “फ्री-फण्ड” में तमाम सुविधाओं (freebies) को मुहैया कराने की कवायद सिर्फ बिजली पानी तक सीमित नहीं है।

    उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी द्वारा लैपटॉप और टैबलेट बाँटने वाली स्कीम से राज्य के युवाओं को कितना फायदा हुआ है, यह Freebies के असर और नफा-नुकसान के आँकलन के लिए एक केस-स्टडी का उत्तम उदाहरण हो सकता है। मेरे निजी अनुभवों के आधार पर तो यही निष्कर्ष है कि इस योजना से छात्रों को कोई वृहद फायदा नहीं हुआ। हाँ, प्रदेश के अर्थव्यवस्था पर जरूर बुरा असर पड़ा।

    अभी हाल में सम्पन्न हुए इसी उत्तर प्रदेश के चुनावों में “बेटी हूँ, लड़ सकती हूँ” का नारा बुलंद करने वाली प्रियंका गांधी की अगुवाई वाली कांग्रेस ने तो लड़कियों को स्कूटी तक देने की घोषणा कर दी थी। यह अलग बात है कि प्रियंका और कांग्रेस दोनों को पता था कि ना वो चुनाव जीतेंगे, न ही स्कूटी देना पड़ेगा।

    इस साल के अंत मे और अगले साल की शुरुआत में गुजरात, हिमाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़ आदि कई राज्यो में चुनाव हैं। और निःसंदेह यह उम्मीद की जा सकती है कि मुफ्त में राजनीतिक रेवड़ियां (Freebies) बाँटने के चलन को और बढ़ावा ही मिलेगा। और अगर कोर्ट के आदेश पर रोक लगी या कुछ नए नियम बने तो ये राजनीतिक दल भी कुछ नए स्वरूप में रेवड़ियां बांटेंगे।

    कुल मिलाकर सत्ता के लालच में मुफ्त सुविधाओं (Freebies) की ये घोषणाएं जनता के ऊपर बोझ ही बनती हैं, कोई मदद नहीं। हाँ यह जरूर है कि चुनाव में किसी दल विशेष को एक फायदा जरूर मिल जाता है।

    इसलिए इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट का यह कदम स्वागतयोग्य है। पर जरूरी है कि तमाम राजनीतिक दल अपने दलगत राजनीति से ऊपर उठकर जनता के हित मे एकजुट होकर कोई निष्कर्ष निकालें।

    By Saurav Sangam

    | For me, Writing is a Passion more than the Profession! | | Crazy Traveler; It Gives me a chance to interact New People, New Ideas, New Culture, New Experience and New Memories! ||सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल ज़िंदगानी फिर कहाँ; | ||ज़िंदगी गर कुछ रही तो ये जवानी फिर कहाँ !||

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