Global Gender Gap Report 2022: भारत द्वारा लिंग-समानता के विभिन्न मापदंडों पर लगातार लाख कोशिशों के बावजूद प्रदर्शन में कोई बदलाव नहीं दिख रहा है।
विश्व आर्थिक मंच (World Economic Forum – WEF) द्वारा जारी हालिया Global Gender Gap Report 2022 के मुताबिक लिंग समानता प्राप्त करने में भारत का स्थान 135वां (146 देशों में) है। पिछले साल भारत का स्थान इस रिपोर्ट में 140वां (156 देशों में) था।
इस तरह कहने को तो भारत के रैंक में 5 स्थान का सुधार हुआ है पर हक़ीक़त यही है कि इस बार कुल देशों की संख्या पिछले साल की तुलना में 11 कम है।
Global Gender Gap Report और भारत
विश्व लिंग-अंतर रिपोर्ट (Global Gender Gap Report) विभिन्न देशों में पुरुषों और महिलाओं के बीच के अंतर को निम्न चार मापदंडों पर बताता है:- आर्थिक गतिविधियों में हिस्सेदारी और उपलब्ध मौके (Economic Participation & Opportunity); शैक्षणिक भागीदारी (Educational Attainment); स्वास्थ्य व उत्तरजीविता (Health & Survival) और राजनीतिक सशक्तिकरण (Political Empowerment)।
Global Gender Gap Report 2022 भारत का स्थान उपरोक्त चार मापदंडों पर क्रमशः 143वां (0.350)*, 107वां (0.961)*, 146वां (0.937)* तथा 48वां (0.267)* रहा है।
भारत का इस रिपोर्ट के मुताबिक राजनीतिक सशक्तिकरण (Political Empowerment) में 48वां जबकि स्वास्थ्य व उत्तरजीविता (Health & Survival) में 146वां स्थान यह बताता है कि भारत मे महिलाओं का ठीक-ठाक राजनैतिक सशक्तिकरण के बावजूद अन्य सभी मापदंडों पर महिलाएं पुरुषों के तुलना में काफ़ी पिछड़ रही हैं।
स्वास्थ और उत्तरजीविता (Health & Survival) के मामले में भारत की महिलाएं पुरुषों के मुकाबले दुनिया भर के सभी देशों के तुलना में सबसे निचले पायदान पर है। वजह साफ है कि महिलाएं चुनावो में जीतकर सदन तक तो पहुँच रही हैं लेकिन नीति-निर्धारण और क्रियान्वयन में उनका प्रभाव निम्नतम है।
भारत का प्रदर्शन अपने पड़ोसी मुल्कों के तुलना में भी खराब ही रहा है। बांग्लादेश, मालदीव, नेपाल, श्रीलंका, भूटान आदि सभी देशों ने भारत से बेहतर स्थान हासिल किया है। पड़ोसी मुल्कों में सिर्फ पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और ईरान ही भारत से नीचे हैं।
इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि युद्ध और महामारी संक्रमण के कारण 2022 का रिपोर्ट के अनुसार वैश्विक लिंग-अंतर लगभग 68% के आस पास है। जिसका मतलब यह है कि 2022 के आंकड़ो के आधार पर दुनिया भर में पूर्ण लिंग समानता हासिल करने में अभी 132 साल लग जाएंगे।
The world can’t wait 132 years to close the gender gap. @zahidi talks #GenderGap22 on the #RadioDavos podcast.https://t.co/IVUWGBDqHX
— World Economic Forum (@wef) July 13, 2022
क्यों इतना पीछे है भारत?
भारत के खराब प्रदर्शन के पीछे कई वजहें हैं जो देश के 66 करोड़ आबादी (कुल महिलाएं) को पुरुषों के बराबर आने के रास्ते मे रोड़ा बने हैं। कोरोना संक्रमण में आर्थिक गतिविधियों का रुक जाना और अब बेलगाम महंगाई ने महिलाओं के लिए हर क्षेत्र में चुनौतियां पैदा की हैं।
एक तो सामाजिक दवाब और पारिवारिक जिम्मेदारियों के कारण पहले ही महिला श्रम बल (Female Labor-Force) भागीदारी तमाम क्षेत्रो में कम थी। CMIE के मुताबिक 2021-22 में भारत के कुल श्रम-बल (Labor-Force) में महिलाओं की भागीदारी महज 9.2% रह गयी है।
महंगाई और कोरोना के कारण उनके परिवार के औसत कमाई और औसत खर्च के बीच का अंतर बहुत कम हो गया है।
नतीजतन महिलाएं- खासकर मध्यमवर्गीय परिवारों में- पौष्टिक आहार, शिक्षा, स्वास्थ-सुविधाओं आदि में कटौती या अनुपलब्धता की शिकार हुई है।
भारतीय समाज जिसका 65-70% हिस्सा ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करता है, पितृसत्तात्मक प्रवृत्ति का है। जाहिर है, जब बात शिक्षा या पौष्टिक आहार या किसी तरह की सामाजिक आजादी जैसी सुविधाओं की आती है तो परिवार में पुरुषों या लड़कों को तवज्जो दी जाती है।
गृहणी महिलाओं की बात करें तो खाना खाने से लेकर रात को बिस्तर में आराम करने तक- हर तरह की सुविधाओं में स्वयं ही पुरुष-सदस्यों को प्रथम अधिकार देती हैं। लिहाजा कभी आधे पेट खाकर या कभी बस पेट भर लेने के उद्देश्य से खाने के कारण इन गृहणियों के स्वास्थ पर बुरा असर पड़ता है।
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 2022 (NFHS 2022) के मुताबिक भारत मे 55% महिलाएं अनीमिया से (लगभग हर दूसरी महिला) पीड़ित है। अतएव इस Global Gender Gap Report 2022 में स्वास्थ्य व उत्तरजीविता के मापदंड पर भारत का सबसे निचले पायदान पर होना स्वाभाविक है।
बीते कई सालों से भारत सरकार उन तमाम रिपोर्ट को नकारती रही है जिसमें भारत का प्रदर्शन बेहद ख़राब रहा है। चाहे अमेरिकी कमीशन द्वारा जारी अंतरराष्ट्रीय धार्मिक आजादी (USCIRF Report) रिपोर्ट हो या पर्यावरण परफॉर्मेंस रिपोर्ट या WHO द्वारा कोविड के कारण हुई मृत्यु से जुड़ा रिपोर्ट या फिर ग्लोबल हंगर इंडेक्स आदि- ऐसे कई वैश्विक रिपोर्टों की सूची है जिसे भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालयों ने नकारा है।
Global Gender Gap Report 2022 की बातें भारत सरकार नकार नहीं सकती। अगर इसे नकारा गया तो यही बात होगी जैसे रेत की आँधी में शुतुरमुर्ग आँख बंद कर के माथे को रेत में छुपा दे और मान ले कि आँधी है ही नही।
भारत ने 5 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था या विश्वगुरु बनने जैसी महत्वाकांक्षाएं पाल रखी है और इसमें कोई खामी नहीं है अगर एक राष्ट्र के तौर पर भारत का यह लक्ष्य है।
लेकिन उसे हासिल करने के लिए भारत को आधारभूत समस्याओं का निदान जल्दी ही करना होगा। अगर महिलाओं के आधी आबादी का श्रमबल में 10% से भी कम भागीदारी है तो GDP और GNP में भारत को बड़ा नुकसान उठाना पड़ रहा है।
पुरुषों के तुलना में महिलाओं के साथ शिक्षा रोजगार स्वास्थ आदि मापदंडों पर पिछड़ना इन महत्वाकांक्षाओं को हासिल करने के राह का सबसे बड़ा रोड़ा है। इसलिये Global Gender Report 2022 को भारत एक अलार्म के तरह ले और उसे दुरुस्त करने के उपाय खोजे।
*India’s Score on respective Parameters