Plastic Ban in India: पर्यावरणीय समस्याओं को देखते हुए बीते 01 जुलाई से भारत सरकार ने प्लास्टिक और थर्मोकोल से बने एकल इस्तेमाल (Single Use) उत्पादों पर प्रतिबंध लगा दिया। भारत सरकार के पर्यावरण, वन तथा जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) ने राजपत्र-अधिसूचना (Gazette Notification) जारी कर यह घोषणा किया।
𝐒𝐢𝐧𝐠𝐥𝐞-𝐔𝐬𝐞 𝐏𝐥𝐚𝐬𝐭𝐢𝐜 𝐁𝐚𝐧………….. 𝟏𝐬𝐭 𝐉𝐮𝐥𝐲 𝟐𝟎𝟐𝟐#SayNoToSingleUsePlastic pic.twitter.com/kzloEiKk9a
— MoEF&CC (@moefcc) July 1, 2022
क्या होता है सिंगल यूज प्लास्टिक?
एकल इस्तेमाल यानि सिंगल यूज प्लास्टिक उत्पाद प्लास्टिक से निर्मित वे वस्तुएं हैं जिनका एक बार इस्तेमाल होने के बाद फेंक दिया जाता है। जैसे- शैम्पू आदि के बोतलें, प्लास्टिक बैग, फेस मास्क, कॉफी कप, खाने आदि के समान पैक में इस्तेमाल होने वाले, सिगरेट का डब्बे आदि।
गौरतलब है कि तमाम प्लास्टिक-उत्पादों में एकल इस्तेमाल (Single Use) की मात्रा सर्वाधिक होती है। जाहिर है, घर से निकले कचरों में भी इनकी मात्रा सर्वाधिक होती है। यह कचरे शहरों में लैंड-फिल (Land fill) आदि में दबा दिए जाते हैं।
इंडियन एक्सप्रेस ने ऑस्ट्रेलियाई संस्था Minderoo Foundation के एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए लिखा है कि सिंगल यूज प्लास्टिक ना सिर्फ इस्तेमाल होने वाले, बल्कि कचरे में फेंके जाने वाले प्लास्टिक में भी सबसे ज्यादा मात्रा इसी का होता है।
इस रिपोर्ट के मुताबिक, 2019 में कुल 130 मिलियन मीट्रिक टन Single Use Plastic कचरे में फेंक दिया गया जिसमें से ज्यादातर को जला दिया गया या लैंडफिल में दबा दिया गया या सीधे पर्यावरण में छोड़ दिया गया।
यहाँ यह जानना जरूरी है कि प्लास्टिक के उत्पाद हमारे पर्यावरण में हज़ारों सालों तक चिरस्थायी होते हैं और पर्यावरण पर गहरा प्रभाव छोड़ते हैं। इसे महज सड़ने में ही 500-1000 साल लग जाते हैं, खत्म होना तो छोड़िए।
PwC और Assocham के एक रिपोर्ट के मुताबिक, शहरी निकायों से निकलने वाले कचरे दिन व दिन जिस रफ्तार से बढ़ रहे हैं, 2050 तक भारत में कुल लैंड-फिल क्षेत्र का आकार नई-दिल्ली जैसे बड़े शहर से भी बड़ा होगा।
इसलिए जाहिर है भविष्य में प्लास्टिक उत्पादों के कारण खतरा बड़ा है और ऐसे में यह निर्णय अति महत्वपूर्ण है कि इन उत्पादों पर रोक लगाई जाए।
प्लास्टिक और पर्यावरण
प्लास्टिक की वस्तुएं हमारे रोजमर्रा के जीवन मे इस तरह से शामिल है कि हम आप अपने घरों में या अपने आस पास कहीं भी नजर घुमाएं तो प्लास्टिक ही दिखेगा। इसके पीछे इसकी मजबूत रासायनिक संरचना व सस्ते दामों में सुगमता से उपलब्ध होना है।
यही वजह है कि यह जानते हुए भी कि प्लास्टिक का इस्तेमाल हमारे जीवन-चक्र और पर्यावरण के लिए कितना घातक है, हम धड़ल्ले से इसका इस्तेमाल करते रहे। आज के परिवेश में यह एक सर्वविदित सत्य है कि प्लास्टिक आसानी से नष्ट नहीं होते।
खतरा ना सिर्फ मनुष्यों बल्कि अन्य जीवों,खासकर समुद्री जीव जंतुओं, पर भी पड़ रहा है क्योंकि प्लास्टिक कचरे का अस्सी प्रतिशत हिस्सा समुद्र में जा रहा है। समुद्री जीव जैसे व्हेल, सील, कछुए आदि इसे भोजन समझकर खा जाते हैं और अकाल ही काल के गाल में समा रहे हैं।
आये दिन सड़को पर भटकती गायें और आवारा पशुओं को भी प्लास्टिक खाने के कारण असमय मौत का शिकार होना पड़ता है। दूसरे शब्दों में कहें तो मनुष्य के वैज्ञानिक खोज का शिकार ये निरीह समुद्री जीव बन रहे हैं।
एक अनुमान के मुताबिक दुनिया के सभी प्लास्टिक उत्पादों को इकट्ठा किया जाए तो माउंट एवरेस्ट जैसे आकार के तीन विशालकाय पहाड़ बनाये जा सकते हैं। इसके मद्देनजर दुनिया भर के पर्यावरणविदों ने कहा है कि हमें इसके उपयोग को नियंत्रित करने की आवश्यकता है।
अर्थव्यवस्था पर असर
प्लास्टिक उद्योग से जुड़ी कंपनियों को जो नुकसान होगा, वह होगा। इसके अलावे तमाम अन्य उत्पाद -खासकर बड़े और भारी सामान-जिनकी पैकेजिंग के लिए प्लास्टिक का इस्तेमाल होता है, अब उसके जगह कोई अन्य विकल्प के कारण लागत-मूल्यों में इज़ाफ़ा हो सकता है।
हालांकि इसके कारण अर्थव्यवस्था को खासकर ग्रामीण कुटीर उद्योगों को बढ़ावा भी मिल सकता है। जैसे- पेड़ के पत्तों से बने दोने, थाली या कागज के थैले या मिट्टी के बर्तन आदि।
सरकार ने पहले ही कई बार चेतावनी दी थी, उसके बाद ही यह प्रतिबंध लगाने का निर्णय लिया गया है। इसलिये प्लास्टिक उद्योग से जुड़े कपनियों को अपना नफा-नुकसान तथा नए विकल्प को अपनाने का पर्याप्त समय दिया गया है।
प्लास्टिक के विकल्प
प्लास्टिक के प्रचलन में आ जाने से ग्रामीण अर्थव्यवस्था के महत्वपूर्ण हिस्सा रहे कई उद्योग- मिट्टी के बर्तन का निर्माण, कागज के थैले, कपड़े से बने झोले, दोने-पत्ता आदि- का व्यापार लगभग चौपट सा हो गया था।
केंद्र सरकार के आंकड़ों के मुताबिक देशभर में 65 लाख घर आज भी कुम्हारी कला (मिट्टी के बर्तन आदि का निर्माण) पर निर्भर हैं। तकरीबन एक लाख मुसहर परिवार आज भी दोने-पत्तल बनाने के परंपरागत काम मे लगे हैं।
प्लास्टिक का आसानी से सस्ते भाव पर उपलब्ध होना एक बड़ी वजह रही है कि मिट्टी, कागज, कपड़े या पत्ते आदि से बने उत्पादों से बचने लगे। जबकि ये सभी विकल्प पर्यावरण को न के बराबर प्रदूषित करते हैं।
प्लास्टिक के उत्पादों के कारण कस्बों और गाँव के जलस्रोत प्रदूषित हो रहे हैं। धीरे-धीरे यह हमारे आहार श्रृंखला में शामिल होकर कई बीमारियों के कारण बन गए हैं।
ऐसे में इन विकल्पों को बढ़ावा देने की जरूरत है साथ ही शोध संस्थाओं को भी इस तरफ़ और जी जान से मेहनत करना होगा ताकि अन्य विकल्प खोजा जा सके जो वातावरण को प्रदूषित ना करे। संकट विकल्पों के नहीं है, बल्कि वह इच्छाशक्ति की है कि हम कैसे इस से छुटकारा पाएं।
दूसरा सबसे महत्वपूर्ण चुनौती है- प्लास्टिक पर लगाये प्रतिबंध को सख्ती से पालन करवाना। सरकार द्वारा प्रतिबंध लगाने के बावजूद देश के विभिन्न हिस्सों में आज 1 हफ्ते बाद भी इसका प्रयोग देखा जा सकता है।
इसमें एक पक्ष यह भी है कि सिर्फ सरकार अकेले जिम्मेदार नहीं है बल्कि सिविल सोसाइटी को भी आगे आना होगा ताकि लोगों को इन विकल्पों को अपनाने के लिए और जागरूक किया जाए।