अर्थव्यवस्था: भारत में जून के महीना यूँ तो तपिश के लिए जाना जाता है और सबको उम्मीद होती है कि कब आये मानसून और हलक को थोड़ी राहत मिले। इस बार का जून भारत मे राजनीतिक तपिश में कुछ यूं गुजरा कि अर्थव्यवस्था के लगातार बिगड़ते सेहत पर किसी की नज़र ना गई।
नुपुर शर्मा का बयान, दुनिया भर में भारत की हीला-हवाली, फिर देश भर में प्रदर्शन, बुलडोजर तंत्र वाला न्याय, धर्मान्धता का प्रमाण देता उदयपुर हत्याकांड और महाराष्ट्र में राजनीतिक उथल पुथल…. और न जाने क्या-क्या… इन सब के बीच जून में अर्थव्यवस्था की सेहत लगातार बिगड़ती रही।
जून के महीने में डॉलर के मुक़ाबले रुपये की कीमत लगातार गिरती रही और 30 जून के 78.90₹/डॉलर से गिरकरआज (06 जुलाई, बुधवार) को रिकॉर्ड 79.36₹ प्रति डॉलर पहुँच गयी। जून में रुपये की कीमत में लगभग 2% की गिरावट दर्ज हुई।
भारत पर बढ़ते विदेशी कर्ज, विदेशी बाजारों में डॉलर का लगातार मजबूत होना और रूस युक्रेन युद्ध के कारण इसकी कीमत और नीचे जाने की उम्मीद है। ऐसे में भारतीय अर्थव्यवस्था पर व्यापार घाटे (Trade Deficit) का दवाब साफ झलक रहा है। जून के महीने में भारत के व्यापार घाटा रिकॉर्ड 25.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा है जो आज तक का सर्वाधिक है।
आर्थिक मामलों से जुड़ी प्रसिद्ध कंपनी नोमुरा(Nomura) के मुताबिक 2022 के तीसरेतिमाही में रुपये की कीमत 82 डॉलर तक जा सकती है जिसका साफ अर्थ है कि अभी अर्थव्यवस्था के और “बुरे दिन” आ सकते हैं।
रुपये की गिरावट की मार झेल रही अर्थव्यवस्था में जाहिर सी बात है कि सरकार अपने आमदनी बढ़ाने की कोशिश करेगी।
इसी के मद्देनजर बीते दिनों GST के नियमों में बदलाव करते हुए कई नए वस्तुओं व सेवाओ को टैक्स के दायरे में लाया गया तो कई चीजों पर टैक्स के दरों में इज़ाफ़ा हुआ है।
जून महीने के मुद्रास्फीति दरों से जुड़े रिपोर्ट अभी जारी नहीं हुए हैं पर उम्मीद यही है कि मई के महीने में खुदरा महंगाई दर में जो मामूली गिरावट दर्ज हुई थी, उसकी खुशियाँ शायद कम हो जाये। दूसरे शब्दों में, इस बार महंगाई दर मई के महीने की तुलना में बढ़ सकती है हालांकि अभी मूल-रिपोर्ट का आना बाकी है।
महंगाई के ताबूत में एक कील आज 04 जुलाई को फिर ठोका गया जब घरेलू इस्तेमाल की गैस सिलेंडर की कीमतों में 50₹/सिलिंडर का इज़ाफ़ा कर दिया गया।
दिल्ली में अब एक घरेलू इस्तेमाल की गैस सिलेंडर की कीमत 1053₹/सिलेंडर हो गई तथा देश के ज्यादातर हिस्सों में उपभोक्ता को 1 सिलेंडर के लिए लगभग इतना ही या इस से भी ज्यादा कीमत अब देना होगा।
हालांकि कमर्शियल सिलेंडर के दामो में आज 8.50₹/सिलिंडर की मामूली कमी भी की गई है। आपको बता दें कि अप्रैल के महीने में इसकी कीमत में भी 250₹/- का इज़ाफ़ा किया गया था। अब जबकि गैस सिलेंडर के दामों में इज़ाफ़ा हुआ है तो जाहिर है, इसका असर भारत के वृहत अर्थव्यवस्था के साथ साथ घर-घर में पड़ने वाला है।
इसलिए इसपर राजनीति ना हो, भला विपक्ष यह मौका कैसे जाने दे। मुख्य विपक्ष कांग्रेस पार्टी ने देश भर में अलग अलग जगहों पर LPG सिलिंडर के बढ़े दामों के विरोध में केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी के फोटो लगा पोस्टर लगाया है।
सिलिंडर लेकर स्मृति ईरानी जी से मिलने पहुंचे कार्यकर्ताओं से तो उन्होंने मुलाकात नही की,
लेकिन दिल्ली पुलिस ने ‘सिलिंडर’ और हमारे कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया…!
स्मृति जी जब तक चुप्पी नही तोड़ती, सड़कों पर ये संघर्ष यूँ ही जारी रहेगा। pic.twitter.com/rit1LRJLgo
— Srinivas BV (@srinivasiyc) July 6, 2022
मनमोहन सिंह की सरकार के खिलाफ गैस सिलेंडर लेकर स्मृति ईरानी तथा राजनाथ सिंह के नेतृत्व में तत्कालीन विपक्ष BJP का प्रदर्शन और ट्वीट आज-कल के मुख्य विपक्ष कांग्रेस को खूब याद आ रहे हैं।
गिरता रुपया और बढ़ती महंगाई के बीच देश की एक बड़ी आबादी बेरोजगारी से दो-चार हो रही है। आलम यह कि जिनके पास कोई रोजगार नही था, वे सड़कों पर थे ही; जिनके पास प्राइवेट सेक्टर में रोजगार था, उनको भी कंपनियां तरह तरह के समस्याओं का हवाला देकर छँटनी कर रहे हैं।
अर्थव्यवस्था मामलों (Economic Issues) से जुड़े थिंक-टैंक CMIE (Centre For Monitoring Indian Economy) के मुताबिक जून के महीने में बेरोजगारी की दर (मई के 7.12% से बढ़कर ) 7.8% तक पहुँच गयी है।
State of the Economy | Employment falls in June, unemployment rate ticks up, shows @_CMIE data.
Centre for Monitoring Indian Economy’s MD & CEO Mahesh Vyas speaks to BQPrime. @dugalira #BQLive https://t.co/m041ml2Rqv
— BQ Prime (@bqprime) July 6, 2022
इसका मतलब यह है कि जून के महीने में कुल वर्कफोर्स आबादी (40.4 करोड़) में से 1.3 करोड़ लोग नए बेरोजगार बन गए। यह बिना लॉक-डाउन वाले किसी महीने (Non-Lockdown Months) में रोजगार के संदर्भ में सबसे भीषण गिरावट है।
स्टार्ट-अप इंडिया और मुद्रा लोन जैसी योजनाएं भी इस अर्थव्यवस्था में जॉब उत्पन्न करने के बजाए धरातल पर अब फुस्स साबित हो रही है। एडु-टेक कंपनियों व ई-कॉमर्स के स्टार्ट-अप कंपनियों द्वारा 60,000 से भी ज्यादा नौकरियों में छँटनी होने की संभावना इस साल जताई गई है।
जब हम धर्म और द्वेष की लड़ाई में उलझे थे; देश के नीति निर्धारकों की पूरी मंडली महाराष्ट्र में सत्ता पलटने और कुर्सी पर बैठने की कवायद में लगी थी, इन सब के बीच स्विस बैंकों में भारत के बढ़ते काला धन वाला रिपोर्ट भी आया लेकिन धर्म और भावनाओं के आहत होने की विलाप के बीच यह कहीं दब कर रह गया।
इंडियन फन्ड इन स्विस बैंक (Indian Fund in Swiss banks) के ताजा रिपोर्ट के मुताबिक स्विस बैंकों में भारतीय काले धन इस समय पिछले 14 साल के उच्चतम स्तर पर है। लेकिन अब यह भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए कोई बड़ा मुद्दा नहीं मालूम पड़ता है जैसा अन्ना आंदोलन के समय लोगों को गुस्सा आता रहा।
जब बात काला धन की हो तो प्रधानमंत्री मोदी और बीजेपी द्वारा दिये गए 15 लाख वाला जुमला क्यों ना हवा में तैरता। सोशल मीडिया पर इसे लेकर भी खूब तंज कसे गए।
कुल मिलाकर लब्बोलुआब यह है कि भारत जिसे प्रगति के रास्ते पर चलने के लिए अर्थव्यवस्था से जुड़े मुद्दों को ज्यादा तरजीह देनी चाहिए थी; आज “धर्म”, “अपमान”, “भावनाएं”, “आहत”, “सर का धड़ से अलग करना” आदि उल्टे-सीधे मामलों में उलझा है।
देश के सत्ता में बैठे लोग भी इस बहती गंगा में हाँथ धुलने का मौका नहीं चूक रहे हैं तो विपक्ष भी इन्ही भावनात्मक मुद्दों पर सरकार को घेरने की कोशिश कर रही है। लोकतंत्र का चौथा खंभा मीडिया प्लेटफॉर्म जिसे बेरोजगारी, गरीबी, महंगाई जैसे मुद्दों पर सरकार से सवाल करना था, वह इन सामाजिक द्वेष फैलाने वाले मुद्दों का जरिया बन गया है।
ट्विटर पर देश के युवा रोज ही कोई ना कोई नया हैशटैग जैसे #ModiGoBack #ModiRojgarDo #ByeByeModi आदि ट्रेंड करवाते हैं। अग्निपथ हो या रेलवे रिक्रूटमेंट में विलम्ब या फिर अन्य सरकारी भर्ती परीक्षा इसे लेकर युवाओं का आक्रोश ना तो देश के भविष्य के लिए ठीक है ना वर्तमान अर्थव्यवस्था के लिए।
अब आम जनता के बीच से भी सरकार से सवाल किए जाने लगे हैं कि “आखिर अच्छे दिन कब आएंगे”? मशहूर कवि दुष्यंत कुमार की एक पंक्ति है जो आज के मोदी सरकार के लिए माकूल लगती है :
“कहाँ तो तय था चिराग़ाँ हरेक घर के लिए, कहाँ चिराग़ मयस्सर नहीं शहर के लिए।”