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    Nupur Sharma Case

    नूपुर शर्मा का विवादित बयान: कबीर दास का एक दोहा है : “अति का भला ना बोलना, अति की भली ना चुप…” भारतीय समाज में बड़े बुजुर्ग नई पीढ़ी को यह दोहा गाँव के चौपाल या मंडली मे समय-समय पर समझाते रहते हैं पर ऐसा लगता है TV डिबेट में बैठे पत्रकार और प्रवक्ता इस दोहे को या तो पढ़े नहीं है या पढ़े होंगे भी तो समझे नहीं।

    भारतीय जनता पार्टी ने अपनी ही पार्टी के दो प्रवक्ताओं को TV डिबेट में कथित तौर पर एक धर्म विशेष के बारे में विवादित बयान देने के कारण निलंबित कर दिया है।

    राष्ट्रीय प्रवक्ता नूपुर शर्मा को पैगम्बर मोहम्मद के बारे में आपत्तिजनक टिप्पणी करने के लिए पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से निलंबित किया; वहीं दिल्ली बीजेपी ने भी अपने प्रवक्ता नवीन जिंदल को ऐसे ही मामले में पार्टी से निष्कासित कर दिया।

    अंतरराष्ट्रीय विरोध के कारण नुपुर शर्मा के खिलाफ लिया एक्शन

    बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता नूपुर शर्मा विवादित बयान के बाद मुस्लिम देश लगातार आपत्ति जता रहे हैं। रविवार को कुवैत, सऊदी अरब, अफ़ग़ानिस्तान, ईरान, पाकिस्तान जैसे देश सहित OIC (ऑर्गनाइजेशन ऑफ इस्लामिक को-ऑपरेशन) ने भी अपनी आपत्ति दर्ज करवाई।

    चौतरफा निंदा व कई देशों द्वारा भारतीय राजदूतों को तलब किये जाने के बाद केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा ने अपने प्रवक्ताओं पर अनुशासनात्मक कार्रवाई करते हुए निलंबित किया।

    नूपुर शर्मा की विवादास्पद टिप्पणी के बाद नाराज़ कतर ने भारत को इसके लिए माफ़ी माँगने को कहा है। इसी बयान के संदर्भ में विरोध का आलम यह है कि कुवैत के सुपर मार्केट विरोध दर्ज कराते हुए भारतीय उत्पादों को बाजार से हटा रहे हैं।

    हालाँकि उनके बयान को लेकर यूपी के कानपुर में उसी दिन दंगे भड़के जब प्रधानमंत्री मोदी व राष्ट्रपति कोविंद कानपुर में ही थे। परंतु तब तक इन प्रवक्ताओं पर कार्रवाई नहीं की गयी।

    लेकिन जब अरब देशों व मुस्लिम देशों द्वारा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विरोध दर्ज करवाया गया और भारत के क्षवि की ठीक-ठाक फजीहत हो गयी, तब जाकर सरकार व बीजेपी ने इन प्रवक्ताओं पर कार्रवाई की।

    एक नूपुर शर्मा या जिंदल पर कार्रवाई काफ़ी है?

    दरअसल TV डिबेट्स में खासकर हिंदी चैनलों पर- अपवादस्वरूप कुछ प्राइम टाइम बहसों को छोड़ दिया जाए तो लगभग सभी न्यूज चैनल पर पत्रकारिता धर्म के सभी बुनियादों को मिट्टी में मिलाकर बहस होती है। इन डिबेट्स में जान बूझकर ऐसे मुद्दे उठाए जा रहे हैं जिस से सांप्रदायिक सौहार्द बिगड़ सके।

    इस वक़्त जब देश मे महंगाई, बेरोजगारी,  गरीबी आदि जैसी समस्याएं चरम पर हैं, उंस समय ज्यादातर चैनलों पर शिवलिंग बनाम मस्जिद, हिजाब बनाम भगवा, या इतिहास के नाम पर चालाकी से चयनित घटनाओं पर बनी फिल्मों पर चर्चा जोरों पर है।

    इन चर्चाओं में रोज कोई मौलाना या कोई प्रवक्ता ऐसे व्यक्तव्य देते हैं जैसा एक नूपुर शर्मा या एक नवीन जिंदल ने दिया है। और यह समस्या सिर्फ घोषित प्रवक्ताओं तक ही सीमित नहीं है जबकि कुछ चैनलों पर खुलेआम चर्चा-संचालक (एंकर) एक पार्टी विशेष या धर्म विशेष का अघोषित या स्वघोषित प्रवक्ता बन जाते हैं।

    आपको याद दिला दें इस देश मे एक सूचना व प्रसारण मंत्रालय भी होता है जिसका काम इन्ही दकियानूसी व भड़काऊ चर्चा पर निगरानी व कार्रवाई करना है। चाहे कोई भी पार्टी सत्ता में हो, बीते कुछ दशकों से इस मंत्रालय के कार्यप्रणाली पर सवाल उठते रहे हैं।

    ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह है कि नूपुर शर्मा व नवीन जिंदल को अपने किये का परिणाम तो मिल गया।  पर क्या सिर एक नूपुर शर्मा या एक जिंदल पर की गई कार्रवाई काफी है? क्या उंस TV चैनल पर कार्रवाई नहीं होनी चाहिए जिसने यह व्यक्तव्य के बाद भी ना तो प्रवक्ता को रोका टोका, ना ही कोई आपत्ति जताई?

    फिर क्या ऐसे बहस या ऐसी बयानबाजी कोई एक अमुक चैनल तक ही सीमित है या कुछेक को छोड़कर ज्यादातर प्रेस की स्वतंत्रता के नाम पर इन्हीं भड़काऊ प्रोग्राम में सम्मिलित है? TV डिबेट्स का स्तर पहले ही काफी गिर गया है और अगर समय रहते हम नहीं चेते तो सवाल और गहरा हो जाएगा।

    इन टीवी चैनलों पर होने वाली बहसों के तौर तरीकों पर हिंदी के प्रख्यात व्यंग्यकार श्री संपत सरल कहते हैं :-

    इन चैनलों को बहस गरीबी की रेखा पर करनी होती है लेकिन पूरा बहस रेखा की गरीबी पर की जाती है। इन बहस का तरीका भी ऐसा होता है कि 2 पार्टियों के प्रवक्ताओं को बुला लिया जाता है, एक तथाकथित बुद्धिजीवी दो धर्म के जानकार और फिर एक एंकर… बहस ऐसे होती है जैसे पुराने जमाने मे लखनऊ के नवाब मुर्गे लड़ाते थे…

    By Saurav Sangam

    | For me, Writing is a Passion more than the Profession! | | Crazy Traveler; It Gives me a chance to interact New People, New Ideas, New Culture, New Experience and New Memories! ||सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल ज़िंदगानी फिर कहाँ; | ||ज़िंदगी गर कुछ रही तो ये जवानी फिर कहाँ !||

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