देश के 5 महत्वपूर्ण राज्यों पंजाब, उत्तर प्रदेश, गोवा, उत्तराखंड और मणिपुर में चुनावों का दौर है। केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा का हर नेता अपने भाषण में कम से कम एक बार तो निश्चित ही “डबल इंजन की सरकार” (Double Engine ki Sarkar) बनाने के लिए जनता से आह्वान तो करता ही है। इन नेताओं द्वारा जनता से आग्रह किया जाता है कि अगर केंद्र और राज्य दोनों में एक ही पार्टी की सरकार बनेगी तो विकास की रफ्तार दोगुनी हो जाती है।
इन्ही बातों को लेकर CSDS लोकनीति ने सर्वे किया कि डबल इंजन सरकार का पैतरा राज्यों के चुनाव में जनता के दिल-ओ-दिमाग़-दिमाग़ पर कितना असर करता है।
CSDS लोकनीति सर्वे (Lokniti CSDS Survey) की प्रमुख बातें:-
2014 के बाद से देश 40 विधानसभा चुनाव हुए जिसमें से 31 चुनावों को इस सर्वे में आंकलित किया गया। सर्वे के दौरान CSDS लोकनीति ने इन राज्यों के वोटर्स के समक्ष यह सवाल किया कि- “क्या उन्हें लगता है कि उनके राज्यों के विकास के लिए जरूरी है कि राज्य में उसी पार्टी की सरकार हो जिस पार्टी की सरकार केंद्र में है?”
2014 में भाजपा और उसके गठबंधन वाली पार्टियों की सरकार सिर्फ 4 राज्यों में थी। उसके बाद 2014 में जब चुनाव के नतीजे आये उसके बाद भाजपा और सहयोगी पार्टियों (NDA) ने मिलकर 12 राज्यों में सत्ता हासिल किया।
2014:-
सर्वे के मुताबिक 2014 में हरियाणा झारखंड और महाराष्ट्र के चुनावों में जनता के बीच डबल इंजन की सरकार बनाने के पक्ष में ज्यादातर लोगों की राय थी और इन राज्यों में बीजेपी की सरकार बनी भी।
2015:-
2015 के दिल्ली चुनाव के नतीजों ने डबल इंजन वाली सरकार के पैतरे को नकार दिया जिसके बाद आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में सरकार बनाई। सर्वे के मुताबिक उस समय दिल्ली की 29% जनता डबल इंजन की सरकार बनाने के पक्ष में थी जबकि 37% विपक्ष में थी।
2016:-
2016 में पश्चिम बंगाल, असम, तमिलनाडु, और केरल के चुनाव में सर्वे के मुताबिक डबल इंजन की सरकार बनाने को लेकर सहमति ज्यादा थी। मसलन असम में 46% जनता सहमत थी जबकि 07% लोग ही सहमत थे। यहाँ असम में बीजेपी की जीत भी हुई।वहीं दूसरी ओर, बंगाल, तमिलनाडु और केरल (20% सहमति) के बावजूद बीजेपी की सरकार नहीं बन पाई।
2017:-
2017 में हुए विधानसभा चुनावों के नतीजे थोड़े चौंकाने वाले थे। पंजाब, मेघालय, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, त्रिपुरा और हिमाचल प्रदेश में हुए चुनावों में लगभग सभी राज्यों में डबल इंजन के सरकार बनाने के पक्ष में लोगों की संख्या ज्यादा थी। परन्तु यह सहमति चुनाव के नतीजों में ज्यादा असर नहीं डाल पाया।उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, त्रिपुरा में सरकार बन गयी परंतु पंजाब में बीजेपी की हार होती है।
यहाँ हिमाचल प्रदेश का जिक्र करना जरूरी है। सर्वे के अनुसार यहाँ महज 10% लोग ही डबल इंजन की सरकार के पक्ष में रहे जबकि 31% लोग इस मत के खिलाफ थे। फिर भी यहाँ सरकार बीजेपी की ही बनती है जो दिलचस्प है।
2021:-
अगर एकदम ताजा-तरीन उदाहरण की बात करें तो असम, केरल, पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु के 2021 के चुनावों के मद्देनजर तो देखें तो इस सर्वे के अनुसार डबल इंजन की सरकार वाले जुमले से असहमत थे। मसलन केरल में 20% लोग पक्ष में थे जबकि 54% लोग विपक्ष में थे वहीं पश्चिम बंगाल में यह प्रतिशत क्रमशः 26% पक्ष और 33% विपक्ष में थे। असम को छोडकर अन्य राज्यों में बीजेपी की करारी हार होती है।
…तो इस सर्वे का सार क्या है??
इन तमाम आंकड़ों के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि नेताजी मंचों पर चढ़कर जनता के बीच अपने भाषणों में चाहे जितना भी डबल इंजन की सरकार को विकास के दुगनी रफ्तार का परिचायक बता लें लेकिन जनता के बीच डबल इंजन की सरकार वाली बात विकास की गारंटी नहीं है। यूँ कहें कि विकास की रफ्तार का डबल इंजन की सरकार वाले पैतरे से कोई सीधा जुड़ाव नहीं है।
दूसरा निष्कर्ष यह भी निकाला जा सकता है कि आखिर क्यों हर राज्य में बीजेपी नरेंद्र मोदी के नाम पर ही चुनाव लड़ती है जबकि राज्यों में उनके अपने मुख्यमंत्री अपना पूरा कार्यकाल तय कर के चुनाव में जाते है?? दरअसल,राज्यों के चुनाव जो अपने लोकल मुद्दों पर होते हैं, उसको किसी भी तरह नरेंद्र मोदी के नाम पर लड़कर डबल इंजन के सरकार बनवाने की कोशिश होती है ताकि राज्यों के लोकल मुद्दे पृष्ठविहीन हो जाये।
फ़िलहाल, इस वक़्त देश के 5 राज्यों में चुनावी गहमागहमी अपने चरम पर है। “डबल इंजन की सरकार” वाली बात बीजेपी के नेताओं के हर भाषण में कॉमन है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या इन राज्यों में इसका कोई असर हो पायेगा कि नहीं।
हिंदी में इस रिपोर्ट को बहुत कम अखबारों ने जगह दी है। क्रमवार तरीके से इस रिपोर्ट के तमाम बिंदुओं को हम पाठकों के आगे रखने का शुक्रिया।😊