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    कोरोनावायरस के कई प्रभावों में से एक प्रभाव यह भी है कि इस महामारी ने अधिक से अधिक लोगों को डिजिटल अर्थव्यवस्था में भाग लेने के लिए मजबूर किया है। मौजूदा केंद्र सरकार ने अपने पिछले कार्यकाल से ही डिजिटल अर्थव्यवश्ता को बढ़ावा देने का काम किया है। मोदी सरकार ने डिजिटल इंडिया नामक कार्यक्रम के मध्यम से देश में ऐसी व्यवश्था को स्थापित करने की प्रत्यक्ष कोशिश की। साथ में नोटेबंदी जैसा कदम अप्रत्यक्ष तौर पर देश में डिजिटल अर्थव्यवस्था के बढ़ावे के लिए एक बड़ा कदम साबित हुआ।

    सस्ते मोबाइल डेटा ने भी भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था में क्रांति को प्रेरित किया है और अनुमानित रूप से 70 करोड़ भारतीयों को इंटरनेट से जोड़ा है। देश में अभी भी 50 करोड़ से अधिक लोग हैं जो ऑफ़लाइन रहते हैं। इन “नेक्स्ट-जेन नेटिज़न्स” का उदय एक प्रमुख कारण है कि प्रमुख वैश्विक टेक कंपनियां भारत में निवेश कर रही हैं। सरकार द्वारा यूपीआई के प्रोत्साहन से भी डिजिटल लेन-देन बढे हैं।

    ऐसे में जानकार मान रहे हैं कि यदि भारत 21वीं सदी के डिजिटल परिदृश्य को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाना चाहता है तो उसे डेटा तथा उसकी सुरक्षा के संबंध में एक कानूनी ढाँचा तैयार करना होगा, क्योंकि डेटा की सुरक्षा ही सशक्तीकरण, प्रगति और नवीनीकरण की कुंजी है।

    क्या है डेटा?

    सामान्य बोलचाल की भाषा में प्रायः मैसेज, सोशल मीडिया पोस्ट, ऑनलाइन ट्रांसफर और सर्च हिस्ट्री आदि के लिये डेटा शब्द का उपयोग किया जाता है। तकनीकी रूप से डेटा को किसी ऐसी जानकारी के समूह के रूप में परिभाषित किया जाता है, जिसे कंप्यूटर आसानी से पढ़ सकता है। गौरलतब है कि यह जानकारी दस्तावेज़, चित्र, ऑडियो क्लिप, सॉफ़्टवेयर प्रोग्राम या किसी अन्य प्रारूप में हो सकती है।

    आज के समय में व्यक्तिगत जानकारी का यह भंडार मुनाफे का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत बन गया है और विभिन्न कंपनियाँ अपने उपयोगकर्त्ताओं के अनुभव को सुखद बनाने के उद्देश्य से इसे संग्रहीत कर इसका प्रयोग कर रही हैं। सरकार एवं राजनीतिक दल भी नीति निर्माण एवं चुनावों में लाभ प्राप्त करने के लिये सूचनाओं के भंडार का उपयोग करते हैं। इस परिप्रेक्ष्य में डेटा का महत्त्व और अधिक बढ़ जाता है। हालाँकि यह काफी जोखिमपूर्ण भी होता है क्योंकि हमारे द्वारा दी गई सूचना एक आभासी पहचान निर्मित करती है जिसका प्रयोग हमें नुकसान पहुँचाने के लिये भी किया जा सकता है।

    क्या हैं डेटा सुरक्षा के मौजूदा नियम

    वर्तमान में भारत के पास व्यक्तिगत जानकारी के उपयोग और दुरुपयोग को रोकने के लिये कोई विशेष कानून नहीं हैं। हालाँकि भारत के पास इस संदर्भ में कुछ प्रासंगिक कानून ज़रूर मौजूद हैं, जिसमें सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 और भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872 शामिल हैं। सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 के तहत व्यक्तिगत डेटा के गलत तरीके से प्रकटीकरण और दुरुपयोग के मामले में मुआवज़े के भुगतान और सजा का प्रावधान किया गया है।

    निजता का अधिकार

    2017 में सुप्रीम कोर्ट ने न्यायमूर्ति के.एस. पुट्टास्वामी (सेवानिवृत्त) बनाम भारतीय संघ में निजता के अधिकार को एक मौलिक अधिकार के रूप में स्थापित किया। फैसले में, न्यायालय ने एक डेटा संरक्षण कानून बनाने का आह्वान किया, जो अपने व्यक्तिगत डेटा पर उपयोगकर्ताओं की गोपनीयता को प्रभावी ढंग से संरक्षित कर सके। नतीजतन, इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) बी.एन. श्रीकृष्ण की अध्यक्षता में विशेषज्ञों की एक समिति का गठन किया। सनीति ने कानून का एक मसौदा सर्कार को 2018 में सौंप दिया था।

    व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक, 2019

    व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक, 2019 को केंद्रीय इलेक्ट्राॅनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री द्वारा दिसंबर 2019 में लोकसभा में प्रस्तुत किया गया था जिसके बाद लोकसभा द्वारा इसे स्थायी समिति के पास भेज दिया गया था। इस विधेयक का उद्देश्य नागरिकों के व्यक्तिगत डेटा को सुरक्षा प्रदान करने के साथ इसके लिये एक डेटा सुरक्षा प्राधिकरण की स्थापना करना है। यह विधेयक सरकार, भारत की निजी कंपनियों और विदेशी कंपनियों द्वारा व्यक्तिगत डेटा को एकत्र करने, स्थानांतरित करने तथा इसके प्रसंस्करण की प्रक्रिया को विनियमित करने की रूपरेखा प्रस्तुत करता है।

    यह विधेयक सरकार को कुछ विशेष प्रकार के व्यक्तिगत डेटा को विदेशों में स्थानांतरित करने की अनुमति देने का अधिकार प्रदान करता है, साथ ही यह सरकारी एजेंसियों को नागरिकों के व्यक्तिगत डेटा एकत्र करने की छूट प्रदान करता है। यह विधेयक सरकार के नेतृत्त्व में बने तकनीकी आधारित समाधानों को भी बढ़ावा देता है, उदाहरण के लिये इस विधेयक के तहत केंद्र सरकार को यह शक्ति प्रदान की गई है कि वह सेवाओं की आपूर्ति के बेहतर लक्ष्यीकरण और साक्ष्य आधारित नीतियों के निर्माण के लिये किसी भी इकाई या कंपनी को गैर-व्यक्तिगत या अज्ञात डेटा प्रदान करने के लिये निर्देश दे सकती है।

    क्या है चुनौतियाँ

    कई सामाजिक कार्यकर्त्ता समूहों ने इस विधेयक के तहत सरकार को नागरिकों के डेटा के संदर्भ में दी गई छूट की आलोचना की है। उनके अनुसार, सरकार द्वारा इसका उपयोग लोगों की निगरानी और दमन के लिये किया जा सकता है। गौरतलब है कि श्रीकृष्णन समिति द्वारा तैयार किये गए मसौदे में सभी प्रकार के व्यक्तिगत डेटा को देश के अंदर ही संरक्षित किये जाने पर बल दिया गया था, जबकि वर्तमान विधेयक में सिर्फ महत्त्वपूर्ण व्यक्तिगत डेटा के संदर्भ में ही इसकी अनिवार्यता निर्धारित की गई है।

    क्या है आगे का रास्ता

    भारत के लिए एक मजबूत डेटा संरक्षण शासन का समय परिपक्व है। बिल की जांच कर रही संयुक्त संसदीय समिति ने 86 संशोधनों और एक नए खंड का प्रस्ताव किया है – हालांकि सटीक बदलाव सार्वजनिक क्षेत्र में नहीं हैं। समिति को 2021 में संसद के मानसून सत्र में अपनी अंतिम रिपोर्ट प्रस्तुत करने की उम्मीद है। इस बार विधेयक में कुछ बदलाव करने के लिए लक्षित करने से इसमें विभिन्न चिंताओं को दूर करने के लिए एक मजबूत और अधिक प्रभावी डेटा संरक्षण व्यवस्था हो सकती है।

    By आदित्य सिंह

    दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास का छात्र। खासतौर पर इतिहास, साहित्य और राजनीति में रुचि।

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