झंडेवाली देवी मंदिर दिल्ली के पहाड़गंज और झंडेवालान क्षेत्रों के बीच स्थित है। यह एक बड़ा और मान्यता वाला हिन्दू मंदिर है। यहां नवरात्रि के पर्व पर अत्यधिक श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है।
झंडेवाली देवी मंदिर का इतिहास (jhandewalan mandir history)
दिल्ली के मध्य में स्थित झंडेवाला देवी मंदिर का अपना एक ऐतिहासिक महत्व है। आज जहां पर यह ऐतिहासिक एवं प्राचीन मंदिर स्थित है वह अरावली पर्वत की श्रृंखलाओं में से एक श्रृंखला है। उस समय यह स्थान बड़ा मनमोहक था। शांत वातावरण एवं चारों ओर हरियाली ही हरियाली नजर आती थी और फल-फूलों से लदे वृक्ष इसकी सुंदरता को शोभित करते थे। प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर इस स्थान पर बहुत से लोग साधना करने आते थे। उनमें से एक कपड़ा व्यापारी श्री बद्री दास भी थे, जो वैष्णों माता के भक्त थे। एक दिन जब बद्री दास मां भगवती की साधना में लीन थे तो उन्हें अनुभूति हुई कि यहां पर एक प्राचीन मंदिर है जो कि जमीन में धंसा हुआ है। उन्होंने उस जमीन को खरीदकर उसकी खुदाई करवानी शुरू कर दी। थोड़ी ही खुदाई के पश्चात् मंदिर के अवशेष मिले। इसके पश्चात् खुदाई का कार्य तेज करवा दिया गया। वहां पर एक झंडा मिला जिससे इस स्थान का नाम झंडेवाला रख दिया गया। इस सफलता के बाद जब और खुदाई की गई तो भूमि में दबी हुई मां की मूर्ति मिली। परंतु दुर्भाग्य से खोदते समय मां के हाथ खंडित हो गये। हिन्दू शास्त्रों के अनुसार खंडित मूर्ति की पूजा वर्जित है। इसलिए मां की मूर्ति में चांदी के हाथ बनवाकर लगाये गये। मां की वह मूर्ति अभी भी मंदिर गुफा में सुरक्षित स्थापित है। प्रारंभ में यहां दोनों नवरात्रों में आस-पास के शहरों, गांवों और कस्बों से लोग आते थे। इस तरह यहां मेला शुरू हुआ। यह मेला पूरे नवरात्र तक चलता था। मां की भेटें, चौकी, जागरण इत्यादि होते रहते थे। यह कार्यक्रम आज भी चालू है। परंतु भक्त हजारों की संख्या के बजाय अब लाखों की संख्या में आते हैं। और मां से अपनी मनोकामना पूरी करने की प्रार्थना करते हैं।
झंडेवाली देवी मंदिर का स्वरूप
श्री बद्री भगत का शरीर शांत होने के पश्चात् भी मंदिर का विकास कार्य निरंतर अखण्ड रूप से चलता रहा। पहले उनके परिवार के श्री रामदास, श्री श्यामदास और श्री प्रेम कपूर एवं प्रबंध समिति के कुशल सदस्यों के सहयोग से मंदिर का विकास हुआ है। अब ये तीनों नहीं रहे। इन दिनों श्री प्रेम कपूर के सुपुत्र श्री नवीन कपूर एवं प्रबंध समिति के सदस्यों के सक्रिय सहयोग से विकास कार्य चल रहा है। देवी मंदिर का एक भव्य स्वरूप आज निखर कर सबके सामने आया है। विकास के विभिन्न लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए मंदिर प्रबंध समिति निरंतर प्रयासरत है।
झंडेवाला देवी मंदिर अष्टकोणीय मंदिर है। इसका शीर्ष कमल फलकों के आकार का बना है। सबसे नीचे गुफा में माता की प्राचीन मूर्ति है तथा ठीक इसके पीछे एक शिवलिंग है जो मूर्ति के साथ ही खुदायी में प्राप्त हुआ था। चूंकि माता की मूर्ति खुदायी के समय खण्डित हो गयी थी। अत: उसे उसी प्रकार छोड़ दिया गया ताकि उसकी और क्षति न हो। मूर्ति के नीचे का कुछ भाग आज भी उसी अवस्था में है। इसी प्रकार शिवलिंग की भी क्षति न हो इस कारण जितना भाग ऊपर था उतना छोड़कर बाकी नीचे के भाग को आधार प्रदान करते हुए उसे संरक्षित किया गया है।
मुख्य भवन में मां झंडेवाली की मूर्ति प्रतिष्ठापित है जो अत्यंत ही सुंदर है। जिसकी भव्यता का वर्णन शब्दों से नहीं, बल्कि देखकर स्वयं की अनुभूति से ही किया जा सकता है। भवन के दक्षिण दिशा में शीतला माता, संतोषी माता, वैष्णो माता, गणेश जी, लक्ष्मी जी तथा हनुमान जी आदि देवी-देवताओं की मूर्तियां स्थापित हैं। मंदिर में प्रत्येक मंगलवार एवं शनिवार को माता की चौकी आदि का आयोजन होता रहता है। मंदिर प्रांगण के उत्तर-पूर्व दिशा में एक मनोरम उद्यान है, जिसमें मंदिर के संस्थापक बद्री भगत की कांस्य प्रतिमा स्थापित है तथा उत्तर की ओर मण्डपों से बना हुआ विशाल द्वार है।
यहां एक कुंआ था जिसका पानी इतना मीठा तथा पवित्र था कि आस-पास के लोग यहां से पानी भरकर ले जाते थे।
सांस्कृतिक कार्यक्रम
नवरात्र मेले के समय मां के दर्शन के लिए लाखों की संख्या में भक्त प्रतिदिन आते हैं। मंदिर की तरफ से उन श्रद्धालुओं के दर्शन की पूरी व्यवस्था रहती है। उनको किसी भी प्रकार की असुविधा न हो इसका पूरा ध्यान रखा जाता है। नवरात्र में यहां नौ दिवसीय मेला लगता है तथा साथ ही साथ ‘बद्री भगत झंडेवाला टेम्पल सोसायटी’ एक विशाल भण्डारे का आयोजन भी करती है।
झंडेवाला मंदिर सामाजिक चेतना का एक केन्द्र बन चुका है। सन् १९४४ में श्री बद्री भगत के पौत्र श्री श्याम सुंदर द्वारा ‘बद्री भगत झंडेवाला टेम्पल सोसायटी’ स्थापित की गयी। आज भी मंदिर की सारी व्यवस्था व अन्य सभी कार्य इसी सोसायटी द्वारा किये जाते हैं। यह मां का आशीर्वाद है कि उनके भक्तों द्वारा अर्पण किया हुआ धन का एक बड़ा भाग समाज की उन्नति के लिए खर्च किया जाता है। नवरात्र में लगभग १० लाख भक्त माता के दर्शनों के लिए दूर-दूर से आते हैं। मंदिर की स्थापना के साथ ही संस्कृत के प्रसार के लिए संस्कृत पाठशाला की नींव भी रखी गयी है, जो वर्तमान में मंडोली (दिल्ली) में ‘बद्री भगत वेद विद्यालय’ के रूप में विद्यमान है।
संस्कृत के प्रचार-प्रसार के लिए वेद विद्यालय में संवादशाला चलती है। इस संवादशाला में देशभर से आए संस्कृत-साधकों को संस्कृत बोलने का प्रशिक्षण दिया जाता है। शिक्षार्थियों के निवास एवं भोजन आदि की सुविधा मंदिर के द्वारा की जाती है।
बद्री भगत झंडेवाला मंदिर द्वारा आयुर्वेद, एलोपैथिक, होम्योपैथिक एवं पाश्चात्य प्रणाली के नि:शुल्क औषधालय स्थापित किये गये हैं।
प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित लोगों को यथासंभव मदद देने का कार्य यह मन्दिर करता है। गरीबी उन्मूलन को ध्यान में रखकर मंडोली वेद विद्यालय परिसर में एक नि:शुल्क सिलाई केन्द्र भी चलता है, जिसमें समाज की गरीब लड़कियों व महिलाओं को प्रशिक्षण दिया जाता है, जिससे वे आत्मनिर्भर बन सकें।
अन्य शिक्षण कार्यों तथा भारतीय संस्कृति के उत्थान के लिए भी बद्री भगत झंडेवाला मंदिर हर संभव प्रयत्नशील है।
परिवारों में आपसी झगड़ों को परस्पर निपटाने के लिए एक परिवार केन्द्र की स्थापना की गई है, जिसे एक अनुभवी महिला कार्यकर्ता के द्वारा नि:शुल्क चलाया जा रहा है।
मंदिर में एक अन्न क्षेत्र भी है जहां प्रात:- दोपहर भण्डारा चलता है। गर्मियों में ठण्डे पानी की व्यवस्था भक्तों के लिए की जाती है।
यहां मकर संक्रांति उत्सव सामाजिक समरसता के रूप में मनाया जाता है, जिसमें समाज के सभी जाति, बिरादरी के लोग सम्मिलित होते हैं और सभी लोग खिचड़ी को प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं। मंदिर में समय-समय पर धार्मिक कार्यक्रम श्रीमद्भागवत कथा, श्री हनुमान जयंती, शिवरात्रि पर शिव तांडव नृत्य नाटिका, अन्नकूट का विशाल भण्डारा एवं सामाजिक कार्यक्रमों में प्रत्येक वर्ष रक्तदान शिविर एवं स्वास्थ्य परीक्षण शिविर का आयोजन किया जाता है। मां झंडेवाली की कृपा से भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होने के कारण मंदिर की महिमा एवं ख्याति सर्वत्र फैल रही है। इस कारण हिन्दू धर्म के अतिरिक्त अन्य संप्रदायों के लोग भी मां के दर्शन हेतु मंदिर में आते हैं, जिनमें विदेशी भक्त भी सम्मिलित हैं।
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