Mon. Dec 23rd, 2024

    श्लोक :

    ।। येषां न विद्या न तपो न दानं, ज्ञानं न शीलं न गुणो न धर्मः । ते मृत्युलोके भुवि भारभूता, मनुष्यरूपेण मृगाश्चरन्ति।।

    अर्थ : जिसके पास विद्या, तप, ज्ञान, शील, गुण और धर्म में से कुछ नहीं वह मनुष्य ऐसा जीवन व्यतीत करते हैं जैसे एक मृग।

    भावार्थ 1:

    जिस मनुष्य ने किसी भी प्रकार से विद्या अध्ययन नहीं किया, न ही उसने व्रत और तप किया, थोड़ा बहुत अन्न-वस्त्र-धन या विद्या दान नहीं दिया, न उसमें किसी भी प्राकार का ज्ञान है, न शील है, न गुण है और न धर्म है। ऐसे मनुष्य इस धरती पर भार होते हैं। मनुष्य रूप में होते हुए भी पशु के समान जीवन व्यतीत करते हैं।

    भावार्थ 2:

    जिन लोगों के पास न तो विद्या है, न तप, न दान, न शील, न गुण और न धर्म।
    वे लोग इस पृथ्वी पर भार हैं और मनुष्य के रूप में मृग/जानवर की तरह से घूमते रहते हैं।

    भावार्थ 3:

    जिन लोगों ने न तो विद्या-अर्जन किया है,  न ही तपस्या में लीन रहे हैं, न ही दान के कार्यों में लगे हैं न ही ज्ञान अर्जित किया है, न ही अच्छा आचरण करते हैं, न ही गुणों को अर्जित किया है और न ही धार्मिक अनुष्ठान किये हैं, वैसे लोग इस मृत्युलोक में मनुष्य के रूप में मृगों की तरह भटकते रहते हैं और ऐसे लोग इस धरती पर भार की  तरह हैं।

    अंग्रेजी में अर्थ (Meaning in english):

    Those who have neither knowledge nor penance, nor liberty, nor knowledge, nor good conduct, nor virtue, nor the observance of duties, pass their life in this world of mortals like beasts in human form and are only a burden on the planet.

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    By विकास सिंह

    विकास नें वाणिज्य में स्नातक किया है और उन्हें भाषा और खेल-कूद में काफी शौक है. दा इंडियन वायर के लिए विकास हिंदी व्याकरण एवं अन्य भाषाओं के बारे में लिख रहे हैं.

    2 thoughts on ““येषां न विद्या न तपो न दानं” श्लोक का अर्थ”

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