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    शांति पाठ या “शांति मंत्र” उपनिषदों में पाए जाने वाली शांति के लिए प्रार्थनाएं हैं। आम तौर पर उन्हें धार्मिक अनुष्ठानों और प्रवचनों की शुरुआत और अंत में सुनाया जाता है। इससे उच्चारण करने वाले व्यक्ति को शांति की अनुभूति होती है और उनके आस-पास का वातावरण सहज हो जाता है।

    ये विभिन्न उपनिषदों और अन्य स्रोतों से शांति मंत्र हैं।

    विभिन्न स्त्रोतों से शान्ति पाठ:

    वेदों में मौजूद शान्ति पाठ

    ॐ द्यौः शान्तिरन्तरिक्षं शान्तिः
    पृथिवी शान्तिरापः शान्तिरोषधयः शान्तिः ।
    वनस्पतयः शान्तिर्विश्वेदेवाः शान्तिर्ब्रह्म शान्तिः
    सर्वं शान्तिः शान्तिरेव शान्तिः सा मा शान्तिरेधि ॥
    ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
    — यजुर्वेद

    हिन्दी रूपांतरण:
    शान्ति: कीजिये, प्रभु त्रिभुवन में, जल में, थल में और गगन में,
    अन्तरिक्ष में, अग्नि पवन में, औषधि, वनस्पति, वन, उपवन में,
    सकल विश्व में अवचेतन में!
    शान्ति राष्ट्र-निर्माण सृजन, नगर, ग्राम और भवन में
    जीवमात्र के तन, मन और जगत के हो कण कण में,
    ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:॥

    यजुर्वेद के इस शांति पाठ मंत्र में सृष्टि के समस्त तत्वों व कारकों से शांति बनाये रखने की प्रार्थना करता है। इसमें यह गया है कि द्युलोक में शांति हो, अंतरिक्ष में शांति हो, पृथ्वी पर शांति हों, जल में शांति हो, औषध में शांति हो, वनस्पतियों में शांति हो, विश्व में शांति हो, सभी देवतागणों में शांति हो, ब्रह्म में शांति हो, सब में शांति हो, चारों और शांति हो, शांति हो, शांति हो, शांति हो।

    वैसे तो इस मंत्र के जरिये कुल मिलाकर जगत के समस्त जीवों, वनस्पतियों और प्रकृति में शांति बनी रहे इसकी प्रार्थना की गई है, परंतु विशेषकर हिंदू संप्रदाय के लोग अपने किसी भी प्रकार के धार्मिक कृत्य, संस्कार, यज्ञ आदि के आरंभ और अंत में इस शांति पाठ के मंत्रों का मंत्रोच्चारण करते हैं।

    ऐसे ही बृहदारण्यकोपनिषद् में मंत्र है, जिसे पवमान मन्त्र या पवमान अभयारोह मन्त्र कहा जाता है।

    ॐ असतो मा सद्गमय ।
    तमसो मा ज्योतिर्गमय ।
    मृत्योर्माऽमृतं गमय ॥
    ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥

    अर्थ:

    इसका अर्थ है, मुझे असत्य से सत्य की ओर ले चलो। मुझे अन्धकार से प्रकाश की ओर ले चलो। मुझे मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो॥

    यह मन्त्र मूलतः सोम यज्ञ की स्तुति में यजमान द्वारा गाया जाता था। आज यह सर्वाधिक लोकप्रिय मंत्रों में है, जिसे प्रार्थना की तरह दुहराया जाता है।

    ॐ सर्वेशां स्वस्तिर्भवतु ।
    सर्वेशां शान्तिर्भवतु ।
    सर्वेशां पुर्णंभवतु ।
    सर्वेशां मङ्गलंभवतु ।
    ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥

    बृहदारण्यक और ईशावास्य उपनिषद

    ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदम् पूर्णात् पूर्णमुदच्यते |
    पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ||
    ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ||

    तैत्तिरीय उपनिषद

    ॐ शं नो मित्रः शं वरुणः।
    शं नो भवत्वर्यमा।
    शं न इन्द्रो बृहस्पतिः।
    शं नो विष्णुरुरुक्रमः।
    नमो ब्रह्मणे।
    नमस्ते वायो।
    त्वमेव प्रत्यक्षं ब्रह्मासि।
    त्वामेव प्रत्यक्षम् ब्रह्म वदिष्यामि।
    ॠतं वदिष्यामि।
    सत्यं वदिष्यामि।
    तन्मामवतु।
    तद्वक्तारमवतु।
    अवतु माम्।
    अवतु वक्तारम्।
    ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥

    तैत्तिरीय, कथा उपनिषद और श्वेताश्वतर उपनिषद

    ॐ सह नाववतु |
    सह नौ भुनक्तु |
    सह वीर्यं करवावहै |
    तेजस्विनावधीतमस्तु मा विद्विषावहै॥
    ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥

    केना और चंदोग्य उपनिषद

    ॐ आप्यायन्तु ममाङ्गानि वाक्प्राणश्चक्षुः
    श्रोत्रमथो बलमिन्द्रियाणि च सर्वाणि।
    सर्वम् ब्रह्मोपनिषदम् माऽहं ब्रह्म
    निराकुर्यां मा मा ब्रह्म
    निराकरोदनिराकरणमस्त्वनिराकरणम् मेऽस्तु।
    तदात्मनि निरते य उपनिषत्सु धर्मास्ते
    मयि सन्तु ते मयि सन्तु।
    ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥

    ऐतरेय उपनिषद

    ॐ वाङ् मे मनसि प्रतिष्ठिता
    मनो मे वाचि प्रतिष्ठित-मावीरावीर्म एधि।
    वेदस्य म आणिस्थः श्रुतं मे मा प्रहासीरनेनाधीतेनाहोरात्रान्
    संदधाम्यृतम् वदिष्यामि सत्यं वदिष्यामि तन्मामवतु
    तद्वक्तारमवत्ववतु मामवतु वक्तारमवतु वक्तारम्।
    ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥

    मुंडका, मांडूक्य और प्राण उपनिषद

    ॐ भद्रं कर्णेभिः श्रुणुयाम देवाः।
    भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः
    स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवाग्ंसस्तनूभिः।
    व्यशेम देवहितम् यदायुः।
    स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः।
    स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः।
    स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः।
    स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु॥
    ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥

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    By विकास सिंह

    विकास नें वाणिज्य में स्नातक किया है और उन्हें भाषा और खेल-कूद में काफी शौक है. दा इंडियन वायर के लिए विकास हिंदी व्याकरण एवं अन्य भाषाओं के बारे में लिख रहे हैं.

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