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    जयराम ठाकुर

    24 दिसंबर को शिमला में हुई भाजपा विधायक दल की बैठक में हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में जयराम ठाकुर के नाम पर मुहर लग गई। हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और दिग्गज भाजपाई नेता प्रेम कुमार धूमल ने विधायक दल की बैठक में जयराम ठाकुर का नाम आगे किया था जिस पर सबकी सहमति रही। बैठक के दौरान रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण और केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर भी उपस्थित थे। हिमाचल प्रदेश के सभी लोकसभा और राज्यसभा सांसद भी बैठक में मौजूद थे। बैठक की अध्यक्षता हिमाचल भाजपा अध्यक्ष सतपाल सिंह सत्ती ने की थी। धूमल के चुनाव हारने के बाद मुख्यमंत्री पद की दावेदारों में जयराम ठाकुर का ही नाम सबसे आगे चल रहा था जिस पर अंतिम मुहर स्वयं धूमल ने लगाई थी।

    हिमाचल प्रदेश में लगभग दो तिहाई बहुमत मिलने के बावजूद भाजपा इस उलझन में थी कि मुख्यमंत्री किसे बनाया जाए। चुनाव पूर्व भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व में चुनाव लड़ने की घोषण की थी। भाजपा ने तो हिमाचल प्रदेश फतह कर लिया पर मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार प्रेम कुमार धूमल सुजानपुर से चुनाव हार गए थे। हिमाचल भाजपा के अन्य दिग्गज नेताओं को भी चुनाव में शिकस्त का सामना करना पड़ा था जिस वजह से भाजपा आलाकमान के लिए एक मजबूत और सशक्त चेहरे का चुनाव करना कठिन हो चला था। ऐसे में यह कयास उठने लगे थे कि भाजपा केंद्रीय मंत्री जे पी नड्डा को हिमाचल प्रदेश की कमान सौंप सकती है लेकिन आखिरकार सहमति लगातार 5 बार से विधायक रहे जयराम ठाकुर के नाम पर ही बनी।

    बता दें कि हालिया सम्पन्न हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनावों में भाजपा ने दो तिहाई के करीब सीटें जीतते हुए 5 सालों बाद सत्ता वापसी की थी। भाजपा ने हिमाचल प्रदेश विधानसभा की 68 में से 44 सीटों पर जीत हासिल की थी वहीं सत्ताधारी दल कांग्रेस 21 सीटों पर सिमट कर रह गई। 3 सीटें अन्य दलों के खाते में आई थी। भाजपा ने मुख्यमंत्री को लेकर जारी असमंजस की स्थिति को स्पष्ट करते हुए पूर्व भाजपा प्रदेशाध्यक्ष जयराम ठाकुर को हिमाचल प्रदेश का नया मुख्यमंत्री चुना है। जयराम ठाकुर 27 दिसंबर को हिमाचल प्रदेश के 13वें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेंगे।

    हिमाचल प्रदेश के मण्डी जिले के टाण्डी में जन्मे जयराम ठाकुर का झुकाव छात्र जीवन से ही राजनीति की तरफ था। चंडीगढ़ स्थित पंजाब विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर की पढ़ाई के दौरान जयराम ठाकुर एबीवीपी के सक्रिय कार्यकर्ता बन चुके थे। छात्र जीवन से ही जयराम ठाकुर आरएसएस से जुड़े हुए हैं और वह संघ के काफी करीबी माने जाते हैं। जयराम ठाकुर एक साधारण किसान परिवार से आते हैं और वह भाजपा के जमीनी कार्यकर्ता के रूप में काफी वर्षों तक काम कर चुके हैं। स्वाभाव से मृदुभाषी होने के कारण जनता में उनकी काफी अच्छी पकड़ है और उनका लगातार 5 बार विधायक बनना इस बात की बानगी पेश करता है।

    जयराम ठाकुर ना केवल जमीन से जुड़े नेता हैं वरन पार्टी संगठन में भी उनकी अच्छी पकड़ है। जयराम ठाकुर हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ भाजपा सांसद शांता कुमार के काफी करीबी माने जाते हैं। शांता कुमार हिमाचल प्रदेश के सियासी इतिहास में अहम स्थान रखते हैं और वह राज्य के पहले गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री हैं। शांता कुमार भले ही वृद्ध हो चले हो पर भाजपा संगठन में उनकी पकड़ आज भी कमजोर नहीं हुई है। शांता कुमार के समर्थन की वजह से ही जयराम ठाकुर की दावेदारी को और बल मिला। जयराम ठाकुर ने दशकों तक हिमाचल भाजपा के हर छोटे-बड़े नेता के साथ काम किया है और उनके मृदुल स्वभाव का ही परिणाम है कि आज हिमाचल प्रदेश में कोई भी नेता उनके खिलाफ खड़ा नहीं हुआ।

    हिमाचल प्रदेश में जयराम ठाकुर की पहचान एक कर्मठ और जमीन से जुड़े नेता के तौर पर है। बतौर भाजपा प्रदेशाध्यक्ष उन्होंने हिमाचल प्रदेश में पार्टी की जड़ें तो मजबूत की ही हैं पर उससे पूर्व बतौर एबीवीपी कार्यकर्ता भी उनका काम कम सराहनीय नहीं था। जयराम ठाकुर ने अपने सियासी सफर का आगाज अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ता के तौर पर किया। अपनी स्नातक की पढ़ाई के दौरान जयराम ठाकुर एबीवीपी से जुड़े थे। वर्ष 1986 में जयराम ठाकुर एबीवीपी के प्रदेश संयुक्त सचिव बने। वर्ष 1989-93 के दौरान वह जम्मू-कश्मीर एबीवीपी के संगठन सचिव रहे। वर्ष 1993-95 तक जयराम ठाकुर हिमाचल प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी युवा मोर्चा के प्रदेश सचिव रहे।

    जयराम ठाकुर ने अपने सक्रिय राजनीतिक जीवन का आगाज वर्ष 1993 में किया था जब वह हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनावों में मण्डी जिले की चाचिओट विधानसभा सीट से चुनावी मैदान में उतरे थे। इस चुनाव में जयराम ठाकुर को 800 मतों से शिकस्त झेलनी पड़ी थी। हालाँकि अपने प्रदर्शन से उन्होंने पार्टी नेताओं को प्रभावित किया था और सबका ध्यान अपनी ओर खींचा था। इसके बाद वर्ष 1998 में ठाकुर ने इसी सीट से दोबारा चुनाव लड़ा और वह विजयी रहे। इसके बाद तो जैसे यह सीट उनका अभेद्य दुर्ग बन गई और उन्होंने लगातार 5 बार इसी सीट से विधानसभा चुनावों में जीत दर्ज की। उन्होंने मण्डी जिले को भाजपा का मजबूत गढ़ बनाने के काफी प्रयास जिसके नतीजन हालिया संपन्न विधानसभा चुनावों में भाजपा जिले की 10 में से 9 विधानसभा सीटों पर जीतने में कामयाब रही।

    जयराम ठाकुर वर्तमान में मण्डी जिले की सेराज विधानसभा सीट से विधायक हैं जो वर्ष 2010 में नए परिसीमन के बाद बनी थी। जयराम ठाकुर प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के कार्यकाल के दौरान कैबिनेट मंत्री रह चुके हैं। उनके जिम्मे ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज मंत्रालय था। भाजपा ने जब 2007 में हिमाचल प्रदेश में सरकार बनाई थी उस वक्त हिमाचल भाजपा की कमान जयराम ठाकुर के हाथों में ही थी। वह वर्ष 2006-09 तक हिमाचल प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष बने रहे। बतौर भाजपा प्रदेशाध्यक्ष उनका कार्यकाल गैर-विवादास्पद रहा और उनके नेतृत्व में भाजपा हिमाचल प्रदेश में सत्ता वापसी करने में सफल रही थी।

    जयराम ठाकुर की लोकप्रियता कार्यकर्ताओं में इसलिए भी अधिक है क्योंकि वह वातानुकूलित कमरों में बैठकर राजनीति नहीं करते हैं। वह स्वयं जमीनी स्तर की राजनीति करते हैं। जयराम ठाकुर हिमाचल प्रदेश के उन सुदूर क्षेत्रों में भी बतौर संगठन कार्यकर्ता काम कर चुके हैं जहाँ ठण्ड की वजह से कोई नेता जाना नहीं चाहता है। जयराम ठाकुर एक निम्न मध्यम वर्ग के परिवार से आते हैं लिहाजा एक बड़े तबके का उनसे भावनात्मक जुड़ाव भी है। यह सभी बिंदु बतौर मुख्यमंत्री उनकी जनता में स्वीकार्यता को और भी बढ़ाते हैं। उम्मीद है कि जमीनी नेता रहे जयराम ठाकुर हिमाचल प्रदेश में आम जनता के मुख्यमंत्री बनकर उभरेंगे।

    जयराम ठाकुर राजपूत समाज से आते हैं जो हिमाचल प्रदेश में ‘किंग मेकर’ की भूमिका निभाता है। हिमाचल प्रदेश के मतदाता वर्ग में राजपूत समाज की भागीदारी 37 फीसदी है। राजपूत समाज के बाद ब्राह्मण समाज हिमाचल प्रदेश का दूसरा बड़ा मतदाता वर्ग है। हिमाचल प्रदेश के मतदाता वर्ग में ब्राह्मणों की भागीदारी 18 फीसदी है। जयराम ठाकुर को हिमाचल प्रदेश की सत्ता सौंपने के पीछे यह भी एक अहम वजह हो सकती है। निश्चित तौर पर जे पी नड्डा हिमाचल प्रदेश के लिए मोदी-शाह की पहली पसंद थे पर राज्य के सियासी समीकरणों को देखते हुए भाजपा ने राजपूत चेहरे को ही मुख्यमंत्री बनाने का दांव खेला। नड्डा ब्राह्मण समाज से आते हैं और उनको उनको मुख्यमंत्री बनाने पर राजपूत खेमा नाराज हो सकता था। राजपूतों की यह नाराजगी भाजपा को 2019 लोकसभा चुनावों के वक्त भारी पड़ सकती थी इस वजह से उसने अग्रिम बचाव की रणनीति अपनाई है।

    हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनावों में भाजपा के मुख्यमंत्री उम्मीदवार प्रेम कुमार धूमल की हतप्रभ करने वाली हार के बाद मुख्यमंत्री पद के दावेदारों में जयराम ठाकुर का नाम सबसे आगे चल रहा था। इस बाबत पूछने पर जयराम ठाकुर ने कहा था कि राज्य में मुख्यमंत्री चुनने का काम पार्टी का है और पार्टी उन्हें जो भी जिम्मेदारी देगी वह उसे बखूबी निभाएंगे। जयराम ठाकुर ने कहा था कि पार्टी जो निर्णय लेगी मैं उसका पालन करूँगा। मुझे बहुत खुशी है कि राज्य में भाजपा की सरकार बनने जा रही है। भाजपा को चुनने के लिए मैं हिमाचल प्रदेश की जनता का धन्यवाद देता हूँ। हिमाचल भाजपा प्रदेशाध्यक्ष सतपाल सिंह सत्ती, पूर्व मंत्री रविंद्र सिंह रवि, प्रेम कुमार धूमल के समधी गुलाब सिंह ठाकुर, इन्दु गोस्वामी और रनधीर शर्मा सरीखे दिग्गज नेताओं के चुनाव हारने के बाद भाजपा के पास जयराम ठाकुर से उपयुक्त कोई अन्य विकल्प नहीं था।

    जयराम ठाकुर की उम्र भले ही 52 वर्ष हैं पर सियासी अनुभव के लिहाज से वो किसी से कम नहीं हैं। तकरीबन 3 दशकों से जयराम ठाकुर भाजपा संगठन के लिए कम कर रहे हैं और बीते दो दशक से लगातार 5 बार विधायक चुने जा चुके हैं। जयराम ठाकुर के पास प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के कार्यकाल में बतौर कैबिनेट मंत्री 5 वर्षों का अनुभव है। भाजपा आलाकमान ने हिमाचल प्रदेश के सियासी समीकरण को देखते हुए एक योग्य और कर्मठ मुख्यमंत्री का चुनाव किया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को जयराम ठाकुर पर काफी भरोसा है। अब यह देखना है कि क्या जयराम ठाकुर इन सभी लोगों की उम्मीदों पर खरा उतर पाते हैं और हिमाचल प्रदेश को विकास की नई परिभाषा दे पाते हैं।

    By हिमांशु पांडेय

    हिमांशु पाण्डेय दा इंडियन वायर के हिंदी संस्करण पर राजनीति संपादक की भूमिका में कार्यरत है। भारत की राजनीति के केंद्र बिंदु माने जाने वाले उत्तर प्रदेश से ताल्लुक रखने वाले हिमांशु भारत की राजनीतिक उठापटक से पूर्णतया वाकिफ है।मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक करने के बाद, राजनीति और लेखन में उनके रुझान ने उन्हें पत्रकारिता की तरफ आकर्षित किया। हिमांशु दा इंडियन वायर के माध्यम से ताजातरीन राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर अपने विचारों को आम जन तक पहुंचाते हैं।