चीन और रयूस्रुस का अमेरिका और सुरक्षा परिषद् के अन्य सदस्यो के साथ मतभेद हो गए है क्योंकि अफगानिस्तान में यूएन के राजनीतिक अभियान पर अपनी वैश्विक परियोजना बीआरआई को प्रस्ताव में शामिल किया है। इस अभियान का छह माह की समयसीमा मंगलवार को समाप्त हो गयी और परिषद् के सदस्यों ने सोमवार को 2 घंटे की गुप्त बैठक आयोजित की थी।
हालाँकि चीन की मांग के कारण इस पर सहमती नहीं बन पायी है। रूस के राजदूत और परिषद् के मौजूदा अध्यक्ष बस्सिली नेबेंजिया ने कहा कि “राजनयिक नए सिरे से प्रस्ताव पर कार्य कर रहे हैं और हम समझौते पर पंहुचने की प्रक्रिया में हैं।”
इस समझौते पर पंहुचने के लिए परिषद् मंगलवार को दोबारा मुलाकात करेगी। यह छह महीने में दूसरी दफा है कि इस प्रस्ताव को अफगानिस्तान के यूएन राजनीतिक मिशन पर रखने से बवाल हो गया है। अफगान मिशन के लिए इस प्रस्ताव को साल 2016, 2017 और 2018 में विस्तार किया गया था।
साथ ही अफगानिस्तान को शामिल कर बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के जरिये चीन को एशिया, यूरोप और अफ्रीका के अन्य भागो से जोड़ना था। लेकिन मार्च में जब यह रिन्यूवल के लिए आया था तब अमेरिका के उप राजदूत जोनाथन कोहेन ने इसका विरोध किया था और कहा कि बीजिंग इस प्रस्ताव को अफगानिस्तान की जनता की बजये अपनी राजनीतिक हितो को प्राथमिकता देने के लिए दबाव बनाता है।
चीन के उप राजदूत ने इसका जवाब दिया कि परिषद् के सदस्य माहौल को दूषित करने की कोशिश कर रहे हैं। इस परियोजना को अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण और आथिक विकास के लिए लागू किया गया है। छह वर्ष पहले लागू होने पर 123 देशो और 29 अंतरराष्ट्रीय संगठनो ने चीन के साथ संयुक्त विकास कार्यक्रमों के समझौतों पर दस्तखत किये थे।
अफगान नियंत्रित और अफगान स्वामित्व शान्ति प्रक्रिया को ध्यान में रखते हुए इंडोनेशिया और जर्मनी ने एक मसौदा तैयार किया था। अफगानिस्तान में 28 सितम्बर को आयोजित चुनावो और अफगान सेना का समर्थन किया गया है। इसमें चीन की परियोजना का कोई जिक्र नहीं था।
परिषद् के राजनयिकों ने कहा कि “सोमवार की मुलाकात के बाद चीन और रूस जर्मन-इंडोनेशिया के मसौदा प्रस्ताव पर वीटो का इस्तेमाल करेंगे और चीन-रूस समझौता नौ हाँ के मत हासिल नहीं कर सकेगा। इसलिए एक नए प्रस्ताव के लिए राजनयिकों ने सोमवार को बैठक की थी।”