महीनों से देश के सियासी फलक पर छाया रहने वाले गुजरात विधानसभा चुनाव पर सबकी नजरें टिकी हुई थी। सत्ताधारी भाजपा सरकार के खिलाफ राज्य में चल रहे जातीय आन्दोलनों और राहुल गाँधी के जबरदस्त चुनाव प्रचार से दशकों बाद गुजरात में बदलाव के आसार दिख रहे थे और कांग्रेस मजबूत स्थिति में खड़ी दिखाई दे रही थी। पर पहले चरण के चुनाव से एक दिन पहले वरिष्ठ कांग्रेसी नेता मणिशंकर अय्यर द्वारा पीएम मोदी को ‘नीच’ कहना भाजपा का ट्रम्प कार्ड साबित हो गया और आखिरी वक्त में सियासी समीकरण भाजपा के पक्ष में हो गए। कल शाम आए एग्जिट पोल के नतीजों के अनुसार गुजरात में कांग्रेस का सियासी वनवास खत्म होने के कोई आसार नहीं हैं और लगातार 6वीं बार भाजपा की सरकार बन रही है। वहीं कांग्रेस शासित हिमाचल प्रदेश में भी भाजपा को स्पष्ट बहुमत मिलने के आसार हैं।
एग्जिट पोल के नतीजों ने कांग्रेस के माथे पर शिकन ला दी है। कांग्रेस एग्जिट पोल के नतीजों को गलत बताने में जुटी है। वहीं गुजरात की सियासत में किंग मेकर होने का दावा करने वाले हार्दिक पटेल ने इसे भाजपा की पुरानी चाल बताया है और कहा है कि ईवीएम में की गई गड़बड़ी को छिपाने के लिए भाजपा ऐसे नतीजे प्रसारित करवा रही है। हालांकि अभी एग्जिट पोल के नतीजों पर पूरी तरह यकीन कर लेना सही नहीं होगा। पार्टी का पक्ष रखते हुए कांग्रेस प्रवक्ता शोभा ओझा ने कहा कि चुनाव परिणाम घोषित होने पर सभी आंकलन गलत साबित होंगे। उन्होंने कहा, ‘‘मुझे नहीं पता कि आप एक्जिट पोल पर कितना विश्वास करते हैं। हम बिहार, तमिलनाडु, पंजाब में एक्जिट पोल देख चुके हैं। ये सभी गलत साबित हुए इसलिए आप एक्जिट पोल पर कितना यकीन कर सकते हैं।’’
हालाँकि ध्यान देने योग्य एक और बात और है कि सभी मीडिया समूहों ने अपने एग्जिट पोल में भाजपा को ही जीतते हुए दिखाया है। सभी नतीजों में कांग्रेस का प्रदर्शन गुजरात में सुधरा हुआ दिख रहा है पर अब भी वह भाजपा से काफी पीछे है। हिमाचल प्रदेश में भाजपा को स्पष्ट बहुमत मिलता नजर आ रहा है और मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की विदाई तय नजर आ रही है। हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस में पड़ी आन्तरिक फूट पार्टी की कमजोर कड़ी साबित हुई। इसके अलावा मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह को कांग्रेस आलाकमान से भी अपेक्षित सहयोग नहीं मिल सका था। हिमाचल प्रदेश में चुनाव प्रचार के वक्त सोनिया गाँधी बीमार चल रही थी और राहुल गाँधी गुजरात में व्यस्त थे। राहुल गाँधी आखिरी दिनों में हिमाचल प्रदेश में चुनाव प्रचार करने पहुँचे थे।
गुजरात में कांग्रेस जिस युवा तिकड़ी के भरोसे बाजी पलटने का ख्वाब संजोए थी वह उसकी उम्मीदों पर खरी नहीं उतर सकी। कांग्रेस को सबसे ज्यादा नुकसान अल्पेश ठाकोर पर निर्भरता से होता दिख रहा है। कांग्रेस ने अल्पेश ठाकोर के 12 वफादारों को भी चुनाव मैदान में उतारा था। कांग्रेस को उम्मीद थी कि वह 8 से 10 सीटों पर जीत दर्ज कर लेंगे। पर अल्पेश के समर्थक 2 से 3 सीटों पर ही मजबूत स्थिति में नजर आ रहे हैं। यह खुलासा गुजरात कांग्रेस द्वारा कराए गए आन्तरिक सर्वे से हुआ है। पाटीदार नेता हार्दिक पटेल भी पाटीदार मतदाताओं को साधने में विफल दिख रहे हैं और पाटीदारों की नाराजगी से भाजपा को कोई खास सियासी नुकसान होता नहीं दिख रहा है। दलित नेता जिग्नेश मेवानी भी दलित मतदाताओं को साधने में कामयाब नजर नहीं आ रहे हैं और बमुश्किल अपनी सीट बचाते नजर आ रहे हैं।
एक नजर डालते हैं विभिन्न मीडिया समूहों द्वारा कराए गए एग्जिट पोल के नतीजों पर :
हिमाचल प्रदेश :
अगर हिमाचल प्रदेश के एग्जिट पोल पर नजर डालें तो भाजपा को स्पष्ट बहुमत मिलता नजर आ रहा है। मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की विदाई तय है। ऐन वक्त में प्रेम कुमार धूमल को चेहरा बनाकर भाजपा ने जो दांव खेला था वह सफल होता दिख रहा है। राजपूत बनाम राजपूत की इस लड़ाई में भाजपा को राज्य में अपने ब्राह्मण चेहरे जे पी नड्डा का फायदा मिलता दिख रहा है। हिमाचल प्रदेश के मतदाता वर्ग में राजपूत और ब्राह्मण मतदाताओं की सम्मिलित भागेदारी 55 फीसदी है। यह सवर्ण वोटबैंक ही राज्य में भाजपा की सत्ता वापसी का आधार बन रहा है। गिने-चुने राज्यों की सत्ता पर काबिज कांग्रेस के हाथ से एक और राज्य का निकलना तय है।
गुजरात :
गुजरात विधानसभा चुनाव से पूर्व राज्य में सत्ताधारी दल भाजपा सत्ता विरोधी लहर से जूझ रहा था और जातीय आन्दोलनों ने उसे और बैकफुट पर धकेल दिया था। भाजपा का परंपरागत वोटबैंक रहा पाटीदार समाज भाजपा से कट चुका था और ओबीसी, दलित समाज के विरोध की वजह से भाजपा मुश्किल में पड़ गई थी। कांग्रेस ने इन सभी आन्दोलनरत जातियों को साध लिया था और गुजरात में सियासी उलटफेर के आसार नजर आने लगे थे। वरिष्ठ कांग्रेसी नेता मणिशंकर अय्यर द्वारा पीएम मोदी को ‘नीच’ कहे जाने के बाद भाजपा को जैसे संजीवनी ही मिल गई और चुनाव प्रचारों में मोदी इसका जोर-शोर से जिक्र करने लगे। उन्होंने इसे गुजरात के बेटे और गुजरात का अपमान बताया और देखते ही देखते बाजी पलट गई।
एग्जिट पोल के नतीजों से स्पष्ट हो गया है कि गुजरात में 22 सालों बाद भी कांग्रेस का सियासी वनवास खत्म नहीं हो रहा है। कांग्रेस के नवनिर्वाचित अध्यक्ष राहुल गाँधी की कड़ी मेहनत का पार्टी को कुछ फायदा जरूर हुआ है और उसके प्रदर्शन में पहले से सुधार नजर आ रहा है। पर जातीय आन्दोलन से निकली युवा तिकड़ी के भरोसे कांग्रेस गुजरात में जिस करिश्मे की उम्मीद कर रही थी, फिलहाल वह कहीं से भी संभव नजर नहीं आ रहा है। कांग्रेस के जातीय कार्ड का दांव उल्टा पड़ गया है और इससे भाजपा को कोई खास सियासी नुकसान नहीं हुआ है। सिर्फ कांग्रेस ही नहीं वरन आन्दोलनरत जातीय नेताओं की छवि भी इससे धूमिल होगी और उनका सियासी करियर शुरू होने से पहले ही समाप्त हो सकता है।