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    गुजरात विधानसभा चुनाव

    गुजरात विधानसभा चुनाव में पहले चरण का चुनाव संपन्न हो चुका है। चुनाव आयोग ने गुजरात विधानसभा चुनाव के पहले चरण में 67 फीसदी मतदान होने की बात कही है। पहले चरण में सौराष्ट्र, कच्छ और दक्षिण गुजरात के 19 जिलों की 89 विधानसभा सीटों पर मतदान हुआ था। कुल 977 प्रत्याशियों की किस्मत ईवीएम में बंद हो गई जिनमें मुख्यमंत्री विजय रुपाणी, भाजपा प्रदेशाध्यक्ष जीतू वाघाणी, दिग्गज कांग्रेसी नेता शक्ति सिंह गोहिल के नाम शामिल हैं।

    दूसरे चरण के चुनाव में 14 दिसंबर को मध्य और उत्तर गुजरात में मतदान होना है। भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दल अपनी-अपनी दावेदारी मजबूत बताने में जुटे हैं। दूसरे चरण के चुनाव के लिए प्रचार का शोर थम चुका है। कांग्रेस अब भी गुजरात की जमीनी हकीकत को झुठला रही है और सत्ता वापसी का ख्वाब संजोये है।

    गुजरात में भाजपा 22 सालों से सत्ता में हैं। ऐसे में गुजरात की जनता में सत्ताधारी भाजपा सरकार से कुछ शिकायतें होना आम बात है। अगर बतौर मुख्यमंत्री विजय रुपाणी के कार्यकाल की बात करें तो जनता उनकी तुलना नरेन्द्र मोदी के कार्यकाल से कर रही है। गुजरात की जनता को मुख्यमंत्री विजय रुपाणी से शिकायतें हैं और वह खुलकर सुनने को मिल रही हैं।

    कांग्रेस यह भ्रम पाले बैठी है कि गुजरात की सियासत में विजय रुपाणी की कमजोर होती पकड़ का फायदा उठाकर वह अपना 22 सालों का सियासी वनवास खत्म कर लेगी। दिल्ली में बैठे कांग्रेस के रणनीतिकार यह कहते हैं कि गुजरात में पाटीदार भाजपा से खार खाए बैठे हैं। उनका मानना है कि गुजरात के विकास में मुसलमानों की भागीदारी नहीं है और राज्य के मुसलमान आज भी असुरक्षा के माहौल में जीते हैं।

    अहमदाबाद में शाम को साबरमती रिवर फ्रंट पर इस सवाल का जवाब मिल जाता है। जिन मुसलमानों की गुजरात के विकास में भागीदारी नहीं है वो सपरिवार शाम को साबरमती रिवर फ्रंट पर वक्त बिताते नजर आते हैं। रिवर फ्रंट के किनारे स्टॉल लगाने वालों में बड़ी तादात मुस्लिमों की है। वे सैकड़ों किलोमीटर दूर से भी अहमदाबाद आते हैं और शाम को अपने स्टॉल से कमाई कर देर रात तक घर लौटते हैं। अब इससे ज्यादा सुरक्षा की भावना और विकास में भागीदारी तो सिर्फ कांग्रेस ही दे सकती है।

    गुजरात में जो एक दांव कांग्रेस के लिए फिट बैठा था वह था उसका जातीय कार्ड। कांग्रेस शुरुआत से गुजरात में सियासत का आधार तलाश रही थी। राज्यसभ चुनावों में अहमद पटेल को मिली जीत के बाद गुजरात कांग्रेस के हौसले बुलंद हो गए और उसने भाजपा के परंपरागत वोटबैंक पाटीदार समाज को अपनी ओर मिलाना शुरू कर दिया। यह पाटीदार समाज कभी कांग्रेस का वफादार हुआ करता था लेकिन 80 के दशक में कांग्रेस के खाम समीकरण से नाराज होकर भाजपा से आ मिला था।

    जिस पाटीदार आन्दोलन की वजह से कांग्रेस को गुजरात में उम्मीद दिखाई थी असल में वह भाजपा विरोधी नहीं था। पाटीदार समाज अपनी मांगों को लेकर आन्दोलनरत था और अगर गुजरात में कांग्रेस सरकार होती तो भी यह आन्दोलन होता। कांग्रेस ने सियासी दांव-पेंचों से इसे भाजपा विरोधी आन्दोलन का रंग देने का भरपूर प्रयत्न किया। कांग्रेस पाटीदार आन्दोलन के अगुआ हार्दिक पटेल को भी अपनी और मिलाने में सफल रही पर क्या असल में वह मतदाताओं को साध पाएगी?

    पाटीदार आन्दोलन के अगुआ 23 वर्षीय युवा हार्दिक पटेल हैं। हार्दिक पटेल की रैलियों में काफी भीड़ देखने को मिली है और पाटीदार समाज में उनकी लोकप्रियता से किसी को इंकार नहीं है। लेकिन आन्दोलन के लिए एकत्र भीड़ को मतदान स्थल तक लाना हर किसी के बूते की बात नहीं होती। अगर ऐसा होता तो शायद मेधा पाटेकर देश की सर्वाधिक मतों से जीतने वाली प्रत्याशी होती और वाराणसी से पीएम मोदी की जगह केजरीवाल सांसद होते। गुजरात की जमीनी हकीकत जाने बिना दिल्ली में बैठे-बैठे राजनीतिक विश्लेषक और सियासी पण्डित पाटीदार समाज के भाजपा के खिलाफ होने की बात कर रहे हैं।

    हार्दिक और कांग्रेस शायद यह बात भूल रहे हैं कि 2012 में भी एक अनुभवी पाटीदार नेता और राज्य के मुख्यमंत्री रह चुके सियासी दिग्गज केशुभाई पटेल ने पाटीदारों को भाजपा के खिलाफ करने की कोशिश की थी। नतीजन उनकी पार्टी महज 3 सीटों पर सिमट गई थी। केशुभाई गुजरात के जाने-माने पाटीदार नेता हैं और पाटीदार समाज को भाजपा की ओर मिलाने में उनकी मुख्य भूमिका रही थी। इसके बावजूद उनका हश्र सबने देखा और अब हार्दिक पटेल वही गलती दोहरा रहे हैं।

    गुजरात का पाटीदार समाज पिछले 2 दशकों से भाजपा के साथ है। पाटीदारों को भाजपा की ओर मिलाने का श्रेय भले ही केशुभाई पटेल को जाता हो पर पाटीदारों को बाँध कर रखने का काम नरेन्द्र मोदी ने किया। अपने 13 वर्षों के मुख्यमंत्री कार्यकाल में नरेन्द्र मोदी ने पाटीदारों को गुजरात सरकार में अहम पदों पर रखा और पाटीदार समाज में भाजपा की पकड़ मजबूत की। पाटीदार समाज आज भी नरेन्द्र मोदी के आह्वान पर भाजपा के साथ खड़ा नजर आएगा पर कांग्रेस और हार्दिक को यह नजर नहीं आ रहा है।

    गुजरात में ओबीसी समाज सबसे बड़ा मतदाता वर्ग है और इसकी भागीदारी 54 फीसदी है। गुजरात विधानसभा की तकरीबन 70 सीटों पर ओबीसी मतदाताओं का बड़ा जनाधार मौजूद है जो चुनाव परिणाम पलटने का माद्दा रखता है। ओबीसी नेता अल्पेश ठाकोर कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं और कांग्रेस इस वजह से काफी आशान्वित नजर आ रही है। यह बिल्कुल वैसी ही बात है जैसे रामू काका का बेटा छोटू घर का दरबान बन गया हो। अल्पेश ठाकोर के पिता खोड़ाजी ठाकोर कांग्रेस के पुराने शागिर्द रह चुके हैं और ऐसे में उनका कांग्रेस के साथ जाना स्वाभाविक था।

    गुजरात का किंग मेकर होने का दावा करने वाले अल्पेश ठाकोर को ओबीसी वर्ग की 146 जातियों का समर्थन हासिल है। अल्पेश कांग्रेस के स्टार प्रचारक बन चुके हैं और पाटण जिले की राधनपुर विधानसभा सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव भी लड़ रहे हैं। आज के दौर में जब एक ही घर में 4 पार्टियों के प्रचारक और मतदाता मिल जाते हैं ऐसे में जातीय नेताओं के आह्वान का गुजरात की जनता पर कितना असर होगा, यह कहना जरा मुश्किल है।

    दलित नेता जिग्नेश मेवानी ने कांग्रेस को प्रत्यक्ष रूप से समर्थन नहीं दिया है पर कांग्रेस उनका समर्थन कर रही है। जिग्नेश निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं और कांग्रेस ने उस सीट से अपना कोई उम्मीदवार नहीं उतारा है। गुजरात विधानसभा की 13 सीटों पर दलित मतदाताओं का जनाधार है। ऐसे में जिग्नेश मेवानी कितना फर्क डाल पाते हैं यह देखना दिलचस्प होगा।

    सत्ताधारी दल भाजपा को गुजरात की सत्ता से बेदखल करने के लिए कांग्रेस हर मुमकिन कोशिश कर रही है। कांग्रेस ने भाजपा सरकार के खिलाफ आन्दोलनरत जातियों को साधकर अपनी ओर मिला लिया है। दशकों बाद कांग्रेस पहली बार गुजरात में मजबूत नजर आ रही है और मुकाबला बराबरी का लग रहा है।

    इसके बावजूद भी किसी को यकीन नहीं है कि कांग्रेस भाजपा के दुर्ग गुजरात में सेंधमारी कर सकेगी। इसकी वजह है गुजरात की जनता का भाजपा में दशकों का अटूट भरोसा। यह भरोसा इतना मजबूत है कि इसे डिगा पाना कांग्रेस और जातीय आन्दोलन के बूते की बात नहीं लगती। ऐसे में गुजरात की आन्दोलनरत युवा तिकड़ी चुनावी परिणाम पर कितना असर डाल पाएगी यह आने वाल वक्त ही बताएगा।

    किसी भी देश, प्रदेश या क्षेत्र की प्रगति का अंदाजा इस बात से लगाया जाता है कि वहाँ औद्योगिक ढांचों, मानवीय सूचकांक, कानून व्यवस्था, इंफ्रास्ट्रक्चर और मूलभूत सुविधाओं का क्या स्तर है। इन सभी बिंदुओं पर खरा उतरने वाला दल या नेता ही जनता का प्रिय होता है। अब अगर बात गुजरात की करें तो यह राज्य देशभर के अन्य राज्यों की तुलना में इन सभी बिंदुओं में अव्वल पायदान पर खड़ा है।

    गुजरात की जनता भाजपा के कार्यकाल और उसके द्वारा किए गए विकास कार्यों से खुश है। कुछ छोटे-मोटे बिंदु हैं जहाँ जनता का रुख सरकार से अलग नजर आता है। हालाँकि ऐसे लोगों की आबादी भी 10-15 फीसदी ही हैं। इनमें अधिकतर वो लोग शामिल है जो किसी बिंदु विशेष पर गुजरात सरकार या भाजपा से अलग राय रखते हैं और शेष बिंदुओं पर सरकार का समर्थन करते हैं।

    इन सब बिंदुओं पर गौर किए बगैर कांग्रेस गुजरात में सत्ता का ख्वाब संजोए बैठी है। कांग्रेस शायद यह भूल चुकी है कि गुजरात में संगठन शक्ति के मामले में भी वह भाजपा के आगे कहीं नहीं टिकती। हालाँकि बीते कुछ दिनों में राज्य की जनता में कांग्रेस की पकड़ बढ़ी है पर वह इतनी भी नहीं बढ़ी कि नरेंद्र मोदी का सामना कर सके। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी की सियासी समझ एक बार फिर सवालों के घेरे में हैं।

    गुजरात में भाजपा सिर्फ एक मुद्दे पर पिछड़ रही है और वह है एक सशक्त चेहरा। मुख्यमंत्री विजय रुपाणी की तुलना नरेंद्र मोदी के कद से की जा रही है जो कदापि उचित नहीं है। गुजरात की जनता आज भी नरेंद्र मोदी के साथ खड़ी है। कांग्रेस के युवराज राहुल गाँधी गुजरात में विकास के पागल होने की बात कर रहे हैं। इसके बाद से ही यह सवाल उठने लगा है कि क्या कांग्रेस गुजरात विधानसभा चुनाव को गंभीरता से भी ले रही है?

    अगर गुजरात के कानून व्यवस्था की बात करें तो यह राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से भी कोसों आगे है। अहमदाबाद में कानून व्यवस्था चुस्त-दुरुस्त तो है ही साथ ही सुदूर क्षेत्रों में भी मध्यरात्रि के समय महिलाओं को स्कूटी चलाते और बाहर घूमते देखा जा सकता है। यह राज्य के लोगों का प्रशासन पर भरोसा दर्शाता है। गुजरात में माँ-बाप को अपने बच्चों के घर देर से लौटने पर चिंता नहीं होती क्योंकि उन्हें सूबे की कानून व्यवस्था पर भरोसा है। अब अगर बिहार, झारखण्ड, हरियाणा, दिल्ली जैसे राज्यों से तुलना करेंगे तो गुजरात के भाजपा राज को रामराज ही कहेंगे।

    अगर कोई भाजपाई यह कहे कि गुजरात में गरीबी नहीं है तो यह गलत होगा। व्यवस्था और अव्यवस्था समाज का हिस्सा है और सफल सरकार वही होती है जो इनमें संतुलन स्थापित कर सके। नरेंद्र मोदी के बतौर मुख्यमंत्री 13 सालों के कार्यकाल के दौरान गुजरात में किसानों के हित में कई कार्य हुए हैं। इनमें सौराष्ट्र क्षेत्र के किसानों के हित के लिए सरदार सरोवर बाँध की ऊँचाई बढ़ाना भी शामिल है। नर्मदा नहर का निर्माण भाजपा सरकार की प्रमुख उपलब्धियों में से एक है।

    आर्थिक रूप से पिछड़े किसानों को मुख्यधारा में शामिल करने के लिए भाजपा सरकार ने जमीनी स्तर पर काफी मेहनत की है और गुजरात में यह नजर भी आता है। अपने कार्यकाल के दौरान भाजपा सरकार ने बिजली, सिंचाई जैसी मूलभूत कृषि सुविधाएं किसानों को मुहैया कराने की हरसंभव कोशिश की है। गुजरात अक्सर बाढ़ और भूकंप जैसे प्राकृतिक आपदाओं से जूझता रहता है और यहाँ की जनता इनसे लड़कर जीना सीख रही है। व्यवस्था के बदलाव में वक्त लगता है और भाजपा सरकार इसकी शुरुआत कर चुकी है।

    गुजरात में निवास करने वाला आदिवासी समाज कांग्रेस का पुराना साथी है। गुजरात में तकरीबन 26 सीटें आदिवासी बाहुल्य हैं और भाजपा के लिए यहाँ जीत हासिल करना हमेशा से ही मुश्किल रहा है। भाजपा आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों के विकास के लिए काफी कार्य कर रही है पर आदिवासी अपनी पारम्परिक जीवनशैली छोड़ने को तैयार नहीं है। इस वजह से इन क्षेत्रों में विकास की रफ्तार थोड़ी सुस्त है। इन्हें मुख्यधारा में लाने में थोड़ा वक्त लग सकता है जिसे कम करने के लिए भाजपा सरकार लगातार प्रयत्न कर रही है।

    गुजरात में कांग्रेस सत्ताधारी दल भाजपा को घेरने के लिए विकास का मुद्दा उठा रही है। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी समेत गुजरात कांग्रेस के सभी नेता अपनी चुनावी जनसभाओं में यह कहते फिर रहे हैं कि विकास पागल हो गया है। कांग्रेस के तुरुप के इक्के बने हार्दिक पटेल भी विकास को पागल बताकर खूब तालियां बटोर रहे हैं। इन सभी को शायद यह नहीं पता कि विकास के अमूमन हर पैमाने पर गुजरात आज भी देश के बाकी राज्यों से मीलों आगे हैं। ऐसे में उनका यह दांव उल्टा पड़ता नजर आ रहा है।

    बेशक पिछले दो दशकों की तुलना में गुजरात में कांग्रेस का पलड़ा इस बार भारी नजर आ रहा हो पर जातीय कार्ड खेलकर कांग्रेस भाजपा को बहुत हल्के में ले रही है। गुजरात की जनता को अच्छी तरह पता है कि राज्य में जो भी विकास कार्य हुआ वह पिछले 22 सालों के दौरान ही हुआ है। नरेन्द्र मोदी के मुख्यमंत्री कार्यकाल के 13 वर्षों के दौरान गुजरात ने अभूतपूर्व तरक्की की है।

    अगर नरेन्द्र मोदी के कद से तुलना करें तो निश्चित रूप से विजय रुपाणी बतौर मुख्यमंत्री कमजोर नजर आते हैं पर गुजरात की जनता में आज भी भाजपा की पकड़ मजबूत है। कांग्रेस कुछ बिंदुओं पर जनता की नाराजगी को सरकार विरोधी लहर समझ बैठी है। अब सबको 18 दिसंबर का इंतजार है जब गुजरात विधानसभा चुनाव के परिणाम घोषित होंगे और कांग्रेस को जमीनी हकीकत दिखाई देगी।

    By हिमांशु पांडेय

    हिमांशु पाण्डेय दा इंडियन वायर के हिंदी संस्करण पर राजनीति संपादक की भूमिका में कार्यरत है। भारत की राजनीति के केंद्र बिंदु माने जाने वाले उत्तर प्रदेश से ताल्लुक रखने वाले हिमांशु भारत की राजनीतिक उठापटक से पूर्णतया वाकिफ है।मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक करने के बाद, राजनीति और लेखन में उनके रुझान ने उन्हें पत्रकारिता की तरफ आकर्षित किया। हिमांशु दा इंडियन वायर के माध्यम से ताजातरीन राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर अपने विचारों को आम जन तक पहुंचाते हैं।