चीन ने मालदीव के साथ संबंध का फायदा उठाकर भारत को शिकस्त देने की कोशिश की है। दरअसल मालदीव ने चीन के साथ मुक्त व्यापार क्षेत्र (एफटीए) समझौते पर हस्ताक्षर किए है। मालदीव ने ऐसा करके भारत के साथ वादाखिलाफी की है।
एक साल पहले नवंबर 2016 में मालदीव ने भारत में एक निवेश मंच पर कहा था कि वह भारत के साथ जल्द ही अपने पहले मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर करेंगे। मालदीव ने एफटीए पर हस्ताक्षर तो किए है लेकिन चीन के साथ। इसका असर भारत व मालदीव के संबंधों पर भी पड़ सकता है।
हिंद महासागर में चीन की उपस्थिति व प्रभाव इस समझौते के बाद अधिक हो जाएगा। जहां पर एक तरफ भारत, चीन के प्रभाव को कम करना चाहता है वहीं चीन व मालदीव के बीच में एफटीए पर हस्ताक्षर किए गए है।
इससे हिंद महासागर में मालदीव व चीन के बीच में व्यापारिक गतिविधियां व भू-राजनीतिक प्रभाव बढ़ेगा। मालदीव की संसद ने 1000 पृष्ठ के एफटीए समझौते को केवल 30 मिनट में 30 सदस्यों के साथ ही पारित कर दिया।
मालदीव के राष्ट्रपति यमीन का चीन व पाक के प्रति अधिक लगाव
वर्तमान में मालदीव के राष्ट्रपति अब्दुल्ला यमीन है। यमीन चीन व पाकिस्तान जैसे देशों के साथ संबंध मजबूत करने में लगा हुआ है। चीन के लिए दक्षिण एशिया क्षेत्र में ये दूसरा एफटीए समझौता है। इससे पहले चीन ने पाकिस्तान के साथ एफटीए पर हस्ताक्षर किए थे। दरअसल चीन व पाकिस्तान के प्रति यमीन का झुकाव काफी ज्यादा है।
इस समझौते के मुताबिक दोनों देशों ने माल के 95% से अधिक की कीमत सीमा को शून्य तक घटा दिया है। चीन ने एक बयान में कहा वे वित्त, स्वास्थ्य सेवा और पर्यटन जैसे सेवा बाजार खोलने के लिए भी प्रतिबद्ध है और मुख्य क्षेत्रों में व्यावहारिक रूप से सहयोग करने के सहमत भी है।
मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद थे भारत के सहयोगी
अब्दुल्ला यमीन से पहले मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद को भारतीय हित के रूप में देखा जाता था। साल 2012 में नशीद को सत्ता में से हटा दिया गया था। जिसके बाद से ही भारत व मालदीव के बीच में संबंध बिगड़ने लगे थे।
मोहम्मद नशीद के कार्यकाल के तहत भारत के जीएमआर द्वारा हस्ताक्षरित एक समझौता अचानक उनके उत्तराधिकारी ने बंद कर दिया। बाद में ये समझौता साल 2014 में चीनी कंपनी के पास चला गया।
मालदीव में बढ़ते चीनी निवेश से भारत चिंतित
मालदीव ने भारत को दरकिनार करके चीन के साथ एफटीए समझौते पर हस्ताक्षर किए है। हिंद महासागर में बढ़ते चीनी निवेश से सबसे बड़ी चिंता भारत को है। भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के मुताबिक दुनिया में सबसे व्यस्त और सबसे महत्वपूर्ण समुद्री परिवहन संबंधों में से ये एक है।
दुनिया के कंटेनर शिपमेंट्स का लगभग आधा हिस्सा लेते हुए लगभग एक हजार जहाज़ इस रास्ते से गुजरते है। एक विशेषज्ञ के मुताबिक मालदीव एक छोटी सी अर्थव्यवस्था जरूर है लेकिन रणनीतिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण है।
यहां बढ़ते चीनी निवेश के साथ भारत को खतरा पहुंच सकता है। भारत वित्त और बैंकिंग, रियल एस्टेट, पर्यटन, सूचना और संचार प्रौद्योगिकी और अक्षय ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में कई निवेश-तैयार परियोजनाओं में मालदीव में अग्रणी निवेशकों में से एक है।