पश्चिम मेदिनीपुर के संबंग विधानसभा उपचुनाव इस बार कई कारणों से महत्वपूर्ण है। इसके पहले विधानसभा चुनाव कांग्रेस और वाममोर्चा साथ मिलकर चुनाव लड़े थे। लेकिन उसके बाद पश्चिम बंगाल की राजनीती में आये बदलाव से कांग्रेस और वाममोर्चा का गठबंधन टूट गया। दोनों में दलों में नाराजगी दिखने लगी।
नगर निकाय और कई उप चुनाव में कांग्रेस और वाममोर्चा ने अपने अपने प्रत्याशियों को उतारना शुरू कर दिया। लेकिन इस बार सबंग विधानसभा उपचुनाव में वाममोर्चा ने सबसे पहले अपना उम्मीदवार उतारा है। माकपा की रीता मंडल वाममोर्चा की सबंग उपचुनाव की उम्मीदवार है। इन्होने शुरू से ही वाममोर्चा को समय दिया है। वह पश्चिम मेदिनीपुर माकपा जिला की तेज-तर्रार नेत्री है और जिला परिषद में भी पार्टी का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं। पिछले चुनाव में वाममोर्चा की मदद से कांग्रेस प्रत्याशी मानस भुइयां ने चुनाव जीता था। लेकिन बाद में वह ममता बनर्जी के पार्टी में शामिल हो गए है। विधायक पद से इस्तीफा देकर तृणमूल नेता के रूप में मानस के राज्यसभा में चले जाने से यह सीट रिक्त हुई है। मानस लगातार सबंग सीट से जीतते आ रहे है। मानस की लोकप्रियता देखते हुए सबंग सीट से पार्टी ने उनकी पत्नी गीतारानी भियाँ को उम्मीदवार बनाया है।
वहीं राजनीती जानकारों का कहना है कि इस उपचुनाव में मुकुल फैक्टर भी काम करेगा। कभी तृणमूल कांग्रेस के दूसरे स्थान पर विराजमान रहने वाले मुकुल की पश्चिम मेदिनीपुर में सांगठनिक पकड़ थी। लेकिन अब मुकुल भाजपा का दामन थामे हुए है। इससे उन्हें मेदिनीपुर उपचुनाव में अपने आप को साबित करना होगा। वैसे तो मुकुल की कोशिश तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवार को हराने की होगी। अगर इस कार्य में सफल नहीं होते है तो उन्हें भाजपा की झोली में थोड़ा कुछ वोट डालना पड़ेगा। इसके लिए कोई भी हथकंडा अपना सकते है। अधीर चौधरी से मुकुल की निकटता है। वह मानस के कांग्रेस के साथ विश्वासघात का बदला लेने के लिए अधीर को विश्वास में लेना चाहेंगे।
इसलिए मुकुल को सबंग उप चुनाव में अहम् बताया जा रहा है। विधानसभा उपचुनाव में मुकुल राजनीतिक के शतरंज पर कौन सी चाल चलते हैं कि भाजपा को कुछ राजनीतिक फायदा मिल सकता है।