उत्तर प्रदेश में निकाय चुनाव को लेकर राजनीतिक रूप-रंग सजने-सँवरने लगा है। यूपी के वाराणसी क्षेत्र में निकाय चुनाव के मद्देनजर राजनीतिक दल अपना अपना दाव-पेंच आजमाने में जुट गए है। उत्तर प्रदेश में वाराणसी ऐसा क्षेत्र है जहाँ सभी धर्मों के लोग रहते है। यही कारण है कि यहाँ की राजनीति का हाल मौजूदा ट्रैफिक जैसा हो जाता है। कौन किधर से आया, कौन किधर जा रहा है किसी को पता नहीं चलता है। वाराणसी का क्षेत्रफल बहुत कम है, लेकिन इसके बावजूद भी यहाँ की राजनीति का समीकरण सभी पार्टियों को संशय में डाल देता है।
बता दें कि वाराणसी की राजनीति बिना जाति, धर्म का चोला पहने मुमकिन नहीं है। 2014 के लोकसभा चुनाव में सभी पार्टियों ने वाराणसी में अपने अपने संकल्प पत्र के जरिये चुनाव जीतने की कोशिश की थी। जीतने लोकसभा चुनावों में विकास और प्रगति की बातें जरूर हुई, सभी पार्टियों ने बेहतर सरकारी सेवा की चाह भी दिखाई लेकिन जातिवाद का मुद्दा अत्यंत अहम रहा।
2014 लोकसभा चुनाव के नतीजे
भाजपा – नरेंद्र मोदी – 5,81,022
आप – अरविन्द केजरीवाल – 2,09,022
कांग्रेस – अजय राय – 75,614
बसपा – विजय प्रकाश जायसवाल – 60,579
इन नतीजों के मद्देनजर यह आंकलन लगाया जा सकता है कि वाराणसी की राजनीति ध्रुवीकरण से किस हद तक प्रभावित है। कुछ जानकारों का कहना है कि भाजपा ने हिंदुत्व के मुद्दे पर यह सीट हासिल की। यह स्पष्ट है कि वाराणसी की राजनीति जातिवाद आधारित राजनीति है।
कार्यकाल समाप्त होने के बाद अब वाराणसी में नगर निगम चुनाव की तैयारी तेज हो गई है। फिलहाल पुराने परिसीमन पर ही चुनाव कराने की तैयारी चल रही है। यहाँ कुल 90 वार्ड है। इस बार वाराणसी निकाय चुनाव रोचक होने वाला है क्योंकि मेयर की सीट पिछड़ी जाति के लिए आरक्षित हो चुकी है। वाराणसी में भाजपा ने मृदुला जायसवाल को मैदान में उतारा है वहीं कांग्रेस ने शालिनी यादव को अपना उम्मीदवार बनाया है। सपा ने साधना गुप्ता पर दांव खेला है वहीं बसपा ने सुधा चौरसिया को अपना चेहरा बनाया है।
इसको लेकर सभी पार्टियों में हड़कंप मचा हुआ है। यह ऐसा क्षेत्र है जहाँ सवर्णों की संख्या ज्यादा है। वाराणसी में कुल आबादी के 20% सवर्ण निवास करते है। इसलिए मेयर उम्मीदवार को लेकर पार्टी में ही नहीं बल्कि सवर्ण समुदाय के लोगों में भी सियासी ऊहापोह दिख रहा है।
दरअसल पूरे उत्तर प्रदेश की राजनीति को हमेशा से धार्मिक और जातीय आधार पर बँटी हुई राजनीति कहा जाता है। इसको देखते हुए वाराणसी की राजनीति हमेशा से जाति और धर्म से जोड़ कर देखी जाती है।
धर्म के आधार पर वाराणसी की जनसंख्या
हिन्दू – 8,40,280
मुस्लिम – 3,45,461
ईसाई – 4,034
सिख – 2,610
जैन – 1,417
वाराणसी की कुल आबादी 13,00,000 के करीब है लेकिन हिन्दुओं की संख्या अन्य धर्मों के लोगों से कहीं अधिक है। जिसका फायदा उस पार्टी को मिलता है जो हिन्दुओं के पक्ष में अपने विचार प्रकट करती है। वाराणसी की राजनीति में पिछले तीन दशक से भाजपा ने अपना कब्जा जमा रखा है लेकिन इस बार के निकाय चुनाव में प्रत्याशी को लेकर सभी दलों में मंथन शुरू है। निकाय चुनाव में भाजपा फिर से हिंदुत्व का मुद्दा बरकरार रखना चाहेगी। लेकिन वाराणसी की राजनीति ने इस बार अलग रुख अपना लिया है। मेयर उम्मीदवार को लेकर यहाँ के सियासी समीकरणों में बदलाव के असर दिख रहे है।
वाराणसी का कुल क्षेत्रफल 82 वर्ग किलोमीटर है। यहाँ की कुल आबादी करीब 13,00,000 है। बनारस की साक्षरता दर 77% है और लिंग अनुपात 913 है।
वाराणसी उत्तर प्रदेश का प्रसिद्द धर्मस्थल है और यहाँ की राजनीति में भी धार्मिकता झलकती है। इसका सबसे बड़ा कारण यहाँ के ब्राह्मण समुदाय है, जो की किसी भी पार्टी के लिए निर्णायक साबित होते है। चुनाव में धर्म की तरह जाति की भी हमेशा से भूमिका रही है और आज भी है। बीजेपी समेत सभी राजनीतिक दल अपने उम्मीदवार चुनते समय चुनाव क्षेत्र में किस धर्म और जाति की कितनी आबादी है, इसका हमेशा ध्यान रखते हैं। शासन के निर्देश पर नगर आयुक्त डॉ. नितिन बंसल ने पुराने परिसीमन 2012 की सूची शासन को भेज दी है। शासन स्तर से जो निर्देश होंगे उसी आधार पर आगे की तैयारी होगी। वाराणसी में निकाय चुनाव के दूसरे चरण में 26 नवंबर को मतदान होगा।