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    सीरिया में प्रदर्शन

    सीरिया के हज़ारों लोग विभिन्न शहरों से मंगलवार को एकजुट हुआ और अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के खिलाफ व्यापक प्रदर्शन किया था। डोनाल्ड ट्रम्प ने सोमवार को गोलन को इजराइल के क्षेत्र के रूप में मान्यता दे दी थी। राष्ट्रपति बेंजामिन नेतन्याहू और डोनाल्ड ट्रम्प ने आधिकारिक दस्तावेजों पर दस्तखत किये थे।

    अल जज़ीरा के मुताबिक, प्रद्रर्शनकारियों ने सीरिया और फिलिस्तीन के ध्वजों को लेकर अमेरिकी राष्ट्रपति के खिलाफ प्रदर्शन किया था। सोमवार को डोनाल्ड ट्रम्प के इस निर्णय को वैश्विक जगत में काफी आलोचनाएं हुई थी। सीरिया ने इस कदम को ‘जबरदस्त आक्रमकता’ करार दिया था।

    हिज़बुल्लाह के नेता हस्सान नस्राल्लाह ने इस आदेश की आलोचना की थी। मंगलवार को एक टेलीविज़न स्पीच के दौरान उन्होंने कहा कि “डोनाल्ड ट्रम्प का फैसला अरब-इजराइल विवाद के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ है, क्षेत्र की शान्ति को प्रभावित करेगा।”

    syria protest
    सीरिया में डोनाल्ड ट्रम्प के खिलाफ प्रदर्शन (स्त्रोत: अल जजीरा)

    इजराइल ने साल 1967 में सीरिया से गोलन क्षेत्र को छीन लिया था और साल 1981 में आधिकारिक तौर पर इस क्षेत्र मे अपना कब्ज़ा बना लिया था। अलबत्ता, अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने इजराइल के अवैध कब्जे को कभी स्वीकृति नहीं दी थी। इस क्षेत्र में इजराइल की उपस्थिति अंतर्राष्ट्रीय नियमों के तहत गैर कानूनी है।

    सीरिया नें तुरंत इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि ट्रम्प का यह फैसला सीरिया की संप्रभुता पर एक बड़ा हमला है और सीरिया गोलन हाइट्स पर फिर से अधिकार जमा सकता है। सीरिया के विदेश मंत्री नें कहा कि अमेरिका का यह फैसला उसे ‘अलग-थलग’ कर देगा।

    सुरक्षा परिषद् में वीटो का अधिकार प्राप्त ब्रिटेन और फ्रांस ने कहा कि “वह यूएन परिषद् के प्रस्तावों में गोलन हाइट्स को इजराइल द्वारा कब्ज़ा किये हुए क्षेत्र के रूप में ही विचार करेंगे।”

    डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि “इस पुरे कार्य में काफी वक्त लग गया। इसे मैं इजराइल की जनता को सौंपता हूँ।” इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने डोनाल्ड ट्रम्प के इस कदम की सराहना की। इजराइल का कद जो साल 1967 में था, जो साल 1973 में हैं वही आज है। हम इससे कभी पीछे नहीं हटेंगे।”

    अन्य देशों की प्रतिक्रिया

    डोनाल्ड ट्रम्प के इस फैसले को कई देशों से प्रतिक्रिया मिली है:

    1. तुर्की: तुर्की के विदेश मंत्रालय नें कहा, “यह फैसला अंतराष्ट्रीय नियमों का घोर उल्लंघन है। अमेरिका को यह समझना चाहिए कि वह समस्या को सुलझाने के बजाय, खुद समस्या बन रहा है।”
    2. सीरिया: सीरिया में हिज़बुल्लाह के नेता हस्सान नस्राल्लाह ने इस आदेश की आलोचना की थी। मंगलवार को एक टेलीविज़न स्पीच के दौरान उन्होंने कहा कि “डोनाल्ड ट्रम्प का फैसला अरब-इजराइल विवाद के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ है, क्षेत्र की शान्ति को प्रभावित करेगा।”
    3. फिलिस्तीन: फिलिस्तीन के राष्ट्रपति महमूद अब्बास नें इसपर कहा कि कोई भी फैसला संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् और अरब शांति स्थापना का उल्लंघन नहीं कर सकता है।
    4. हमास: गाजा में हमास के नेता इस्मेल हानिया नें कहा कि गोलन हमेशा सीरिया का आंतरिक अंग रहेगा।
    5. सऊदी अरब: सऊदी अरब ने अमेरिका के इस फैसले को खारिज करते हुए इसकी निंदा की और कहा कि यह सरासर अंतर्राष्ट्रीय कानून का उल्लंघन है।
    6. क़तरक़तर नें कहा है कि वह डोनाल्ड ट्रम्प के इस फैसले को पूरी तरह से निरस्त करते हैं और इसके खिलाफ संयुक्त राष्ट्र और अन्य जगहों पर आवाज उठाएंगे।

    संयुक्त राष्ट्र की आपात बैठक बुलाने को कहा

    सीरिया नें नेताओं नें अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के इस फैसले के बाद कहा है कि संयुक्त राष्ट्र को इस मुद्दे पर आपातकालीन बैठक बुलानी चाहिए और इस मुद्दे को सुलझाना चाहिए।

    AFP न्यूज़ के मुताबिक, संयुक्त राष्ट्र में सीरिया के प्रतिनिधि नें समिति को कहा है कि वह जल्द से जल्द कब्ज़ा किये हुए इलाके गोलन हाइट्स पर हुए फैसलों का संज्ञान ले और एक सदस्य (अमेरिका) द्वारा लिए हुए फैसले पर चर्चा करे।

    डोनाल्ड ट्रम्प के इस फैसले का हालाँकि उनके समर्थक देशों नें भी समर्थन नहीं किया है। अमेरिका के दो सबसे करीबी देश, ब्रिटेन और फ्रांस नें इस बारे में यह कहा कि यूरोप नें इस मसले पर अपना फैसला नहीं बदला है। इस फैसले के साथ बेल्जियम, जर्मनी और पोलैंड भी दिखे।

    चीन और रूस नें साफ़ तरीके से ट्रम्प के इस फैसले का विरोध किया है।

    चाइना डेली के मुताबिक चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लू कांग नें कहा है कि चीन नें गोलन हाइट्स को लेकर अपना फैसला नहीं बदला है और वह संयुक्त राष्ट्र द्वारा निर्धारित फैसले पर कायम है।

    संयुक्त राष्ट्र का फैसला

    संयुक्त राष्ट्र नें इसपर कहा है कि संयुक्त राष्ट्र संघ का गोलन के प्रति फैसला पहले जैसा ही है। उन्होनें कहा कि संयुक्त राष्ट्र नें जो फैसला सालों पहले सुरक्षा परिषद् की बैठक में लिया था, वही अभीतक मानी है।

    जाहिर है 1981 में संयुक्त राष्ट्र में 15 देशों नें एकसाथ यह फैसला लिया था कि इजराइल इस इलाके पर कब्ज़ा नहीं जमा सकता है।

    संयुक्त राष्ट्र बहुत जल्द फिर से इस मुद्दे को देख सकता है।

    By कविता

    कविता ने राजनीति विज्ञान में स्नातक और पत्रकारिता में डिप्लोमा किया है। वर्तमान में कविता द इंडियन वायर के लिए विदेशी मुद्दों से सम्बंधित लेख लिखती हैं।

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