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    'गुलाल' अभिनेता सवी सिद्धू बने सिक्यूरिटी गार्ड, कहा कि फिल्म देखना एक सपना रह गया है अभी

    बॉलीवुड में किसी के साथ भी कुछ भी हो जाता है। जहाँ एक तरफ, इन्सान इतनी ऊंचाई हासिल कर दशकों तक इंडस्ट्री में रहता है, वही दूसरी तरफ ऐसे भी कुछ कलाकार होते हैं जो एक साथ ही लोगों की नजरो से गायब हो जाते हैं और मुश्किल से अपना जीवन बिताते हैं। ‘गुलाल’, ‘पटियाला हाउस’ और ‘बेवकूफियां’ अभिनेता सवी सिद्धू के साथ भी कुछ ऐसा हुआ है जिनकी कहानी सुन कर आप रोने लगोगे।

    फिल्म कम्पैनियन ने एक छोटा सा विडियो रिलीज़ किया है जिसमे पूर्व अभिनेता अपनी दुखभरी कहानी सुना रहे हैं और बता रहे हैं कि क्यों उन्हें सिक्यूरिटी गार्ड की नौकरी लेनी पड़ी।

    उन्होंने सबसे पहले यही बताया कि उन्होंने अपने अभिनय के सफ़र को कैसा शुरू किया। उनके मुताबिक, “अनुराग कश्यप मिले संघर्ष करते करते तो मुझे ‘पांच’ में लिया, उनकी जो पहली फिल्म थी रिलीज़ नहीं हुई। उसके बाद उन्होंने मुझे ‘ब्लैक फ्राइडे’ में लिया, सबसे मुख्य किरदारों में से एक कमिश्नर समर का किरदार किया मैंने, फिर उनके साथ मैंने ‘गुलाल’ भी करी। मैंने यश राज, सुभाष जी के साथ, निखिल अडवाणी के साथ ‘पटियाला हाउस’ करी।”

    सवी ने स्कूल लखनऊ से किया और फिर वह चंडीगढ़ आ गए। यहाँ स्नातक करते वक़्त उन्हें मॉडलिंग का प्रस्ताव मिला। फिर कानून की पढाई करने के लिए वह वापस लखनऊ चले गए। सवी ने उन दौरान थिएटर भी किया था। अपनी ज़िन्दगी पर बात करते हुए उन्होंने ये भी बताया कि बचपन से ही उनके अन्दर अभिनय का कीड़ा था। उनके मुताबिक, “चूँकि मेरे भाई को एयर इंडिया में नौकरी मिल गयी थी इसलिए मेरे लिए मुंबई आना आसान हो गया था। फिर जैसे संघर्ष होता है, मैंने शुरू करी निर्माताओं को मिलना।”

    इस बारे में बात करते हुए कि बॉलीवुड में वह क्यों नहीं चल पाए, उन्होंने कहा-“काम की कभी दिक्कत नहीं हुई। मुझे ही छोड़ना पड़ा कि मैं नहीं कर पा रहा हूँ। जानते हो, ऐसा था कि क्या मेरा इंतज़ार कर रहा है। यहाँ जैसे लोगों को काम मिलता नहीं और मेरे पास इतना काम है कि मैं काम नहीं कर पा रहा। मेरी स्वास्थ्य समस्याएं बढ़ रही हैं। मेरी वित्तीय समस्याएं भी बढ़ गयी, स्वास्थ्य समस्याएं भी बढ़ गयी तो काम ख़तम हो गया।”

    अपनी ज़िन्दगी के सबसे मुश्किल पढ़ाव पर बात करते हुए उन्होंने कहा-“सबसे मुश्किल पढ़ाव वो था जब मैंने अपनी पत्नी को खो दिया।” फिर उन्होए पता चला कि उन्होंने पिता, फिर माँ और फिर अपने ससुरालवालों को भी खो दिया। धीरे धीरे, वहा अकेले हो गए। वह एक हाउसिंग सोसायटी में सिक्यूरिटी गार्ड के रूप में 12 घंटे की शिफ्ट करते है।

    उन्होंने आगे कहा-“मेरे पास बस के पैसे नहीं हैं अपने निर्देशक निर्माता को मिलने के ऐसे हालात हैं। जा कर फिल्म देखना तो मेरे लिए सपना है अभी। बहुत फिल्में याद कर रहा हूँ, देखने का मन करता हैं पर मेरी वित्तीय स्थिति ऐसी है।”

    मगर इतना सहने के बाद भी उन्होंने उम्मीद नहीं हारी और अंत में कहा-“वो लोग मेरा इंतज़ार कर रहे हैं, मैं आ रहा हूँ।”

     

    By साक्षी बंसल

    पत्रकारिता की छात्रा जिसे ख़बरों की दुनिया में रूचि है।

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