गुजरात विधानसभा चुनाव देश के सियासी पटल पर छा गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह का गृह राज्य होने के अलावा गुजरात को भाजपा का गढ़ भी कहा जाता है। पिछले दो दशक से राज्य में भाजपा की सरकार है। ऐसे आंकड़े गुजरात में भाजपा की लोकप्रियता की गवाही देते हैं। हमेशा भाजपा के पक्ष में नजर आने वाला आंकड़ों का यह खेल इस बार बिगड़ता नजर आ रहा है। जातीय आन्दोलन से चर्चा में आए राज्य के 3 युवा नेताओं और कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी के सियासी गठजोड़ ने गुजरात में भाजपा के माथे पर शिकन ला दी है। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में अभी तक गुजरात में एकतरफा जीत हासिल करती आई भाजपा के लिए इस बार का चुनाव आसान नहीं होने जा रहा है। अरसों बाद कांग्रेस गुजरात के चुनावी मैदान में भाजपा के सामने कुछ हद तक टिकती नजर आ रही है।
अभी तक भाजपा खुद को गुजरात में अजेय समझती थी। उसका ऐसा सोचना काफी हद तक सही भी था। अगर गुजरात के पिछले 4 विधानसभा चुनावों के नतीजों पर नजर डालें तो राज्य में कांग्रेस कहीं भी भाजपा के मुकाबले खड़ी नजर नहीं आती है। लेकिन इस वर्ष अगस्त महीने में हुए गुजरात राज्यसभा चुनावों में कांग्रेस के चाणक्य अहमद पटेल को मिली जीत ने शंकर सिंह वाघेला गुट की बगावत का दंश झेल रही गुजरात कांग्रेस के लिए संजीवनी का काम किया। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी इसके बाद गुजरात में राजनीतिक रूप से काफी सक्रिय हो गए और उन्होंने राज्य में जातीय आन्दोलन का नेतृत्व कर रहे नेताओं को अपने साथ मिलाकर भाजपा का खेल बिगाड़ने की हरसंभव कोशिश की है। इन सभी तर्कों से परे यक्ष प्रश्न आज भी यही है कि क्या राहुल गाँधी गुजरात चुनावों में जीत दर्ज कर कांग्रेस की डूबती लुटिया को बचा पाएंगे?
बदले-बदले से हैं राहुल के तेवर
बीते कुछ समय से कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी के तेवर काफी बदले-बदले से नजर आ रहे हैं। राहुल गाँधी को कांग्रेस अध्यक्ष बनाए जाने की मांग उठाने के बाद से उनकी लोकप्रियता और राजनीतिक सूझबूझ में जबरदस्त अंतर देखने को मिला है। राहुल गाँधी राजनीतिक रूप से अब ज्यादा परिपक्व नजर आ रहे हैं। उनके इस नए अवतार से भाजपाई ही नहीं वरन कांग्रेस के दिग्गज भी हैरान हैं। गुजरात राज्यसभा चुनावों से पहले दिग्गज कांग्रेसी नेता और गुजरात के बापू कहे जाने वाले शंकर सिंह वाघेला की बगावत ने राज्य में कांग्रेस की जड़ें हिला दी थी। वाघेला की बगावत के बावजूद कांग्रेस उम्मीदवार अहमद पटेल अपनी राज्यसभा सीट बचाने में सफल रहे थे। उनकी इस जीत ने कांग्रेस के लिए संजीवनी का काम किया और राज्य में पार्टी को पुनर्जीवित किया।
कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी ने ऐसी मुश्किल परिस्थितियों में सियासी नजाकत को समझा और नियमित रूप से गुजरात के दौरे किए। कार्यकर्ता संवाद सम्मलेन से लेकर द्वारकाधीश मंदिर तक, राहुल गाँधी हर जगह नजर आए। पार्टी कार्यकर्ताओं की मेहनत और राहुल गाँधी के धुआँधार प्रचार अभियानों से कांग्रेस राज्य में अपना खोया जनाधार हासिल करने में सफल रही। अब राहुल गाँधी की नजरें सत्ताधारी दल भाजपा से नाराज चल रही जातियों की ओर टिक गई थी। गुजरात की सियासत में अहम भूमिका निभाने वाली 3 जातियां विभिन्न मुद्दों को लेकर सत्ताधारी दल भाजपा से नाराज चल रही थी। राहुल गाँधी ने मौका देखकर चौका लगाया और ओबीसी समाज के नेता अल्पेश ठाकोर को अपनी ओर मिला लिया। दलित नेता जिग्नेश मेवानी ने भी पिछले दरवाजे से कांग्रेस को समर्थन देने की बात कही। पाटीदार नेता हार्दिक पटेल भी भाजपा के खिलाफ हो चुके हैं।
ट्विटर पर छाए राहुल
2014 के लोकसभा चुनावों में भाजपा की जीत में सोशल मीडिया का बड़ा योगदान रहा था। भाजपा नेताओं की सक्रियता और सोशल मीडिया पर चलाए गए “एंटी-कांग्रेस कैम्पेन” ने भाजपा की जीत में बड़ी भूमिका निभाई थी। उस वक्त तक शशि थरूर ही एक मात्र ऐसे कांग्रेसी नेता थे जो सोशल मीडिया पर सक्रिय थे। पर आगामी चुनावों में मद्देनजर कांग्रेस सोशल मीडिया को अपना प्रमुख हथियार बनाने की पूरी तैयारी कर चुका है। अपने हालिया गुजरात दौरे के दौरान राहुल गाँधी ने अपने ट्विटर हैंडल पर “विकास पागल हो गया” कैम्पेन चलाया था और मोदी सरकार की नीतियों पर बने मेमे को भी प्रचारित किया था। कांग्रेस अब भाजपा के विरुद्ध वही रणनीति अपना रही है जो 2014 के लोकसभा चुनावों के वक्त भाजपा ने उसके विरुद्ध अपनाई थी। राहुल गाँधी की डिजिटल टीम की कमान दक्षिण की अभिनेत्री दिव्या स्पंदना उर्फ राम्या संभाल रही हैं।
मोदीजी, आपकी पार्टी 22 साल से यहां सरकार में है और अब आप कहते हैं कि 2022 तक आप गुजरात से गरीबी मिटा देंगे pic.twitter.com/cdWtZt1tqV
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) October 11, 2017
मैं अब आपको उनकी अगली लाइन बताता हूँ, 2025 तक मोदीजी गुजरात के हर व्यक्ति को चाँद पर जाने के लिए Rocket देंगे
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) October 11, 2017
मित्रों, शाह-जादे के बारे में ना बोलूंगा, ना बोलने दूंगाhttps://t.co/y9QlHFHFHS
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) October 20, 2017
Madam Chief Minister, with all humility we are in the 21'st century. It's 2017, not 1817. https://t.co/ezPfca2NPS
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) October 22, 2017
Congress GST= Genuine Simple Tax
Modi ji's GST= Gabbar Singh Tax =''ये कमाई मुझे दे दे"
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) October 24, 2017
डॉ जेटली, नोटबंदी और GST से अर्थव्यवस्था ICU में है।
आप कहते हैं आप किसी से कम नहीं,
मगर आपकी दवा में दम नहीं— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) October 26, 2017
Real wages stagnant for 3 yrs,bank lending lowest in 60yrs,Inequality highest in 100yrs.In Modiji's words,this is a MMD(Modi Made Disaster) https://t.co/X3NicY3fK1
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) October 26, 2017
शाह-जादा की 'अपार सफलता' के बाद भाजपा की नई पेशकश – अजित शौर्य गाथाhttps://t.co/9YwOp1EoM8
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) November 4, 2017
गुजरात विधानसभा चुनावों और केंद्र की सत्ताधारी मोदी सरकार की नीतियों को लेकर राहुल गाँधी के ट्विटर हैंडल से लगातार ट्वीट हो रहे हैं। हर ट्वीट में भाजपा और नरेंद्र मोदी को निशाना बनाया जा रहा है। कभी भाजपा का मजबूत पक्ष रहा सोशल मीडिया अब कांग्रेस का दुर्ग बनता जा रहा है। राहुल गाँधी को गुजरात के चुनाव प्रचार में अपार जनसमर्थन मिल रहा है। उन्हें सुनने के लिए लोगों की भीड़ जुट रही है और यह भाजपा के लिए चिंता की बात है। हालाँकि भीड़ को वोट में बदलना हर किसी के बस की बात नहीं होती पर राहुल के बदले हुए अंदाज की वजह से इसकी सम्भावना से इंकार नहीं किया जा सकता। भाजपा गुजरात के चुनाव प्रचार में अपने कई शीर्ष नेताओं को उतार चुकी है और आने वाले दिनों में पूरे देश से 200-300 नेताओं की फौज गुजरात के चुनावी दंगल में नजर आएगी।
कांग्रेस की हिंदुत्व विरोधी छवि में सुधार
कांग्रेस पर लगातार आरोप लगते रहे हैं कि वह हिंदुत्व विरोधी दल है और मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति करती आई है। 2014 के लोकसभा चुनावों में मिली करारी हार के बाद कांग्रेस ने पूर्व रक्षामंत्री ए के एंटनी के नेतृत्व में हार के कारणों का पता लगाने के लिए कमेटी गठित की थी। एंटनी कमेटी द्वारा दी गई रिपोर्ट में कांग्रेस की हिंदुत्व विरोधी छवि को भी हार के प्रमुख कारणों में से एक माना गया था। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी पिछले कुछ समय से पार्टी की इस छवि को तोड़ने का प्रयास कर रहे हैं। इसके लिए वह गुजरात में अपने चुनावी दौरों पर मंदिरों में जा रहे हैं और माथे पर त्रिपुण्ड-तिलक लगाए नजर आ रहे है। भाजपा ने दो दशक पहले इसी हिंदुत्व मुद्दे को आधार बनाकर कांग्रेस को गुजरात की सत्ता से बेदखल किया था। उसके बाद से आज तक गुजरात में कांग्रेस का सियासी वनवास खत्म नहीं हो सका है।
कांग्रेस की छवि शुरू से ही मुस्लिम हितैषी दल की रही है और इस वजह से उसे हिन्दू जनसंख्या बाहुल्य राज्यों में हाशिए पर रहना पड़ा है। हालाँकि इस छवि का लाभ भी कांग्रेस को बराबर मिलता रहा है और मुस्लिम समाज कांग्रेस का परंपरागत वोटबैंक बन गया है। लेकिन अब धीरे-धीरे मुस्लिम समाज धर्म आधारित राजनीति को छोड़कर विकास की राह पर जा रहा है। नवरात्रि में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी का सौराष्ट्र दौरा महज एक इत्तेफाक नहीं वरन सोची-समझी रणनीति का हिस्सा था। राहुल गाँधी ने अपनी सौराष्ट्र यात्रा के दौरान कई जगहों पर मंदिरों में जाकर पूजा-अर्चना की और माथे पर त्रिपुण्ड और तिलक लगाए नजर आए। उन्होंने जनता को सम्बोधित करने के दौरान भी ऐसी वेशभूषा बनाए रखी जो उनके हिंदूवादी होने की गवाही दे। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी सॉफ्ट हिंदुत्व का कार्ड खेलकर भाजपा को मात देने की फिराक में हैं।
खत्म होगा कांग्रेस का सियासी वनवास
गुजरात के विधानसभा चुनाव देशभर में चर्चा का मुख्यबिंदु बन चुके हैं। पिछले 2 दशकों से गुजरात की सत्ता पर काबिज भाजपा आज गुजरात में अपना गढ़ बचाने की जद्दोजहद में जुटी हुई है। 90 के दशक से ही भाजपा का परंपरागत वोटबैंक रहा गुजरात का पाटीदार समाज अब उससे किनारा कर चुका है। गुजरात की सत्ता तक पहुँचने के लिए किसी भी दल को पाटीदारों का समर्थन मिलना बहुत जरुरी है। गुजरात की 20 फीसदी आबादी पाटीदारों की है और पाटीदार समाज संगठित होकर वोट करता है। ऐसे में पाटीदार समाज के वोटरों का कांग्रेस को समर्थन देना गुजरात विधानसभा चुनाव के परिणामों को उलट-पलट कर रख देगा। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी गुजरात में कांग्रेस को मजबूती देने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं और लगातार राज्य का दौरा कर रहे हैं।
राहुल गाँधी गुजरात में कांग्रेस का दो दशकों का सियासी वनवास खत्म करने की जुगत में लगे हैं। गुजरात में भाजपा के अगुआ रहे नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बन चुके हैं और गुजरात में उनकी कद-काठी का कोई भी नेता अब भाजपा के पास नहीं है। ऐसे में भाजपा के लिए गुजरात बचाना मुश्किल नजर आ रहा है। भाजपा आरक्षण की मांग कर रहे पाटीदारों को मनाने में जुटी है पर पिछले 26 महीनों में उसे कोई खास कामयाबी नहीं मिल सकी है। गुजरात में करीब 20 फीसदी वोट पाटीदार समाज के पास हैं। 70 सीटों पर निर्णायक भूमिका में होने की वजह से पाटीदारों को गुजरात का “किंग मेकर” भी कहा जाता है। पाटीदार समाज के नेता और पाटीदार आन्दोलन के अगुआ हार्दिक पटेल ने स्पष्ट कर दिया है कि वह भाजपा सरकार के खिलाफ आन्दोलनरत है। ऐसे में पाटीदार समाज का रुख गुजरात के सभी सियासी समीकरणों को गलत साबित कर सकता है।
गुजरात में सत्ता विरोधी लहर से जूझ रही है भाजपा
गुजरात में पिछले 2 दशकों से सत्ता पर काबिज भाजपा की सत्ता वापसी की राह आसान नजर नहीं आ रही है।बीते 2 सालों से राज्य में सरकार विरोधी लहर दिखाई दे रही है। समाज का हर वर्ग किसी ना किसी मुद्दे को आधार बनाकर सरकार के खिलाफ सड़क पर उतर चुका है। भाजपा पिछले 2 दशकों से गुजरात की सत्ता पर काबिज है और इतने लम्बे समय से सत्तासीन रहने की वजह से गुजरात के लोगों में भाजपा के प्रति नाराजगी बढ़ी है। हालाँकि भाजपा के शासनकाल में गुजरात ने बहुत तरक्की की है और वह आज देश के समृद्ध राज्यों की सूची में अग्रणी स्थान पर काबिज है। 2014 लोकसभा चुनावों के वक्त ऐसा ही कुछ हुआ था जब पूरे देश में सत्ता विरोधी लहर चल रही थी। तब भाजपा प्रचण्ड बहुमत से सत्ता में आई थी। परिवर्तन समय की मांग है और शायद अब गुजरात की जनता भी परिवर्तन चाहती है।
गुजरात को आधार बना दिल्ली फतह की तैयारी
गुजरात विधानसभा चुनावों को देशभर में लोकसभा चुनावों की रिहर्सल के तौर पर देखा जा रहा है। कांग्रेस और भाजपा दोनों ही दल गुजरात में अपनी पूरी ताकत झोंक रही है। इस बात की खबर सबको है कि गुजरात विधानसभा चुनाव के परिणाम ही आगामी लोकसभा चुनावों की दिशा तय करेंगे। इन सबके साथ-साथ राहुल गाँधी का राजनीतिक भविष्य भी गुजरात विधानसभा चुनाव के परिणामों पर टिका है। गुजरात में भाजपा के लोकप्रियता की अहम कड़ी रही नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी अब दिल्ली जा चुकी है और गुजरात भाजपा सशक्त चेहरे की कमी से जूझ रही है। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी अपनी राजनीतिक सक्रियता से गुजरात में भाजपा से नाराज चल रहे ओबीसी, दलित और पाटीदारों का समर्थन पाने में सफल रहे हैं। गुजरात विधानसभा चुनाव भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए मिशन-2019 का आगाज है और राहुल गाँधी जीत के साथ आगाज करने में जुटे हुए हैं।
भाजपा के लिए चुनौती बना गुजरात बचाना
भाजपा के गुजरात में लगातार सत्ता पर काबिज रहने की सबसे बड़ी वजह है नरेंद्र मोदी। बतौर मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल के दौरान गुजरात भाजपा लोकप्रियता के सातवें आसमान पर पहुँच गई थी पर आज परिस्थितियां बिल्कुल बदल चुकी है। एक वक्त था जब अमित शाह और नरेंद्र मोदी की जोड़ी गुजरात विधानसभा चुनावों में भाजपा के जीत की कहानी लिखती थी पर आज इसी जोड़ी को गुजरात बचाने के लिए लगातार राज्य का दौरा कर रही है। नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने और अमित शाह के भाजपा अध्यक्ष बनने के बाद गुजरात में भाजपा की पकड़ ढ़ीली होने लगी। बतौर मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल और विजय रुपाणी अपने कार्यकाल में लोकप्रिय नहीं रहे है। पिछले 15 सालों में यह पहली बार है जब भाजपा गुजरात विधानसभा चुनावों में नरेंद्र मोदी के बिना उतरी है। विजय रुपाणी के चेहरे पर गुजरात बचा पाना भाजपा के लिए बड़ी चुनौती साबित होगी।
क्या खुलेगी राहुल की किस्मत
जबसे कांग्रेस के भीतर राहुल गाँधी को कमान सौंपने की माँग उठी है सियासी नजरिए से कांग्रेस तरक्की करती नजर आ रही है। कांग्रेस ने महाराष्ट्र के नांदेड़ में निकाय चुनावों में जीत हासिल की और पंजाब में भाजपा के गढ़ गुरदासपुर पर कब्जा जमाया। कांग्रेस समर्थित वाम मोर्चे के सदस्य दल आईयूएमल के उम्मीदवार ने केरल के वेंगारा में आसान जीत दर्ज की। हाल ही में मध्य प्रदेश के सतना जिले की चित्रकूट विधानसभा सीट पर हुए उपचुनावों में कांग्रेस ने 14,000 से अधिक मतों से जीत दर्ज की है। गुजरात में कहानी थोड़ी अलग है और राज्य में भाजपा की संगठन शक्ति से कांग्रेस कोसों दूर है। गुजरात में भाजपा की संगठन इकाई आरएसएस की अच्छी-खासी पकड़ है और मोदी-शाह की जोड़ी गुजरातियों की नब्ज पकड़ना जानती है।
कांग्रेस को भी एहसास है कि वह सिर्फ जातीय समीकरणों को साधकर कांग्रेस गुजरात की सत्ता में वापसी नहीं कर सकती है। पर भाजपा को 100-110 सीटों पर रोक कर कांग्रेस राज्य में अपनी दमदार उपस्थिति जरूर दर्ज करा सकती है। अगर राहुल गाँधी इतना भी कर पाए तो इसे उनकी जीत ही कहा जाएगा और पार्टी अध्यक्ष के तौर पर कांग्रेस में उनकी स्वीकार्यता बढ़ जाएगी। राहुल गाँधी के बदले हुए तेवरों और बढ़ती हुई लोकप्रियता को देखकर कांग्रेस के लिए इस लक्ष्य को हासिल करना बहुत मुश्किल भी नहीं लगता। अब सभी को 18 दिसंबर को घोषित होने वाले चुनाव परिणामों का इंतजार है। चुनाव परिणाम ही यह स्पष्ट कर सकेंगे कि सियासत के इस कड़े इम्तेहान में कांग्रेस का पप्पू पास हो पाता है या नहीं।