सीबीआई का गठन यूँ तो भ्रष्टाचार के मामलों में पुलिस की मदद करने और गंभीर मामलों की छानबीन करने के लिए हुआ था पर विगत कुछ वर्षों में इसकी कार्यप्रणाली पर स्पष्ट रूप से राजनीतिक प्रभाव देखा जा सकता है। सीबीआई सत्ता पक्ष का एक हथियार बन कर रह गयी है जिसे वह अपनी मर्ज़ी के मुताबिक़ विपक्षियों पर इस्तेमाल करती है। वैसे सीबीआई डायरेक्टर की तरफ से समय-समय पर यह सफाई दी जाती है कि एजेंसी पर किसी का दबाव नहीं है, वह स्वतंत्र रूप से कार्य करती है। पर उनकी सफाई भी एक सवालिया निशान खड़ा करती है क्यूँकि पूर्व में सीबीआई को कभी सफाई की जरुरत नहीं पड़ी। या यूँ कह लें कि पूर्व में सीबीआई पर कभी इस तरह के आरोप नहीं लगे।
देश की जनता का विश्वास अब सीबीआई से उठने लगा है। सीबीआई ही नहीं वरन विशेष रूप से गठित जांच कमेटियों की रिपोर्ट भी अब निष्पक्ष नहीं रह गयी है। अब तो लोगों को यह भी याद नहीं कि आखिरी बार कब किसी जांच रिपोर्ट में सत्ताधारी दल को दोषी पाया गया था। यह तथ्य सिर्फ वर्तमान सरकार पर लागू नहीं होता बल्कि हर सत्ताधारी दल ने अपनी मर्जी के मुताबिक विपक्षियों पर सीबीआई की आड़ में शिकंजा कसा है।
उत्तर प्रदेश है जीवंत उदाहरण
इस तथ्य का सबसे बड़ा उदाहरण उत्तर प्रदेश की पिछली दो सरकारें रही हैं। उत्तर प्रदेश की पिछली दोनों सरकारें क्षेत्रीय दलों की थी जिनकी लालसा राष्ट्रीय राजनीति के क्षितिज पर तेजी से उभरने की थी। इस मोह में दोनों पार्टियों ने एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप का कीचड़ उछाला और जब हर तरफ कीचड़ हो गया तो कमल को खिलना ही था। अपने इस उतावलेपन में प्रदेश की राजनीति में भी दोनों पार्टियाँ हाशिये पर चली गयी। दरअसल उनके द्वारा लगाये गये आरोप और उसकी जांच रिपोर्टों से वो जनता का विश्वास जीतने में असफल रहे वर्ना उनकी योजनाओं से जनता में खास नाराज़गी नहीं थी। उनकी एक सी मनोवृत्ति ने जनता को अन्य विकल्प तलाशने पर मजबूर कर दिया।
इतिहास को दुहरा रही है सरकार
वर्तमान सरकार इसी इतिहास को दुहरा रही है। सीबीआई के हर छापे में किसी ना किसी विपक्षी नेता का नाम जुड़ा होता है। यह सच भी हो सकता है और विपक्ष को पंगु बनाने की कोशिश भी। अगर सच में ऐसा है तो यह लोकतंत्र के लिए खतरनाक साबित हो सकता है क्यूँकि देश पहले से ही एक मजबूत विपक्ष की कमी से जूझ रहा है। ऐसे हालात ही तानाशाही के उदय के लिए जिम्मेदार होते हैं और विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के लिए यह किसी भी दृष्टि से उपयुक्त नहीं है।
स्वतंत्र रूप से कार्य करे सीबीआई
सरकार को सीबीआई को पूरी स्वतंत्रता देनी होगी, सिर्फ कागजों पर नहीं अपितु जमीनी हकीकत में भी। सत्ता के लोभ में सरकार सीबीआई के गठन का मुख्य उद्देश्य भूल गयी है। सीबीआई सिर्फ न्यायपालिका के प्रति उत्तरदायी होनी चाहिए और निष्पक्ष रूप से सक्रिय होनी चाहिए। तभी मुमकिन है कि सीबीआई अपना खोया हुआ गौरव पाये और फिर से देश की जनता का विश्वास जीत सके। यह कदम सीबीआई गठन के कागजी आधार को जमीनी हकीकत का असली जामा पहनाने में कारगर सिद्ध होगा।