सूरत शहर यूँ तो अपने कपड़ा व्यवसाय और हीरों की तराशी के लिए प्रसिद्द है पर वो आजकल किसी और वजह से सुर्ख़ियों में है। यह वजह है शहर के कपड़ा व्यापारियों द्वारा किया जा रहा जीएसटी का विरोध। जीएसटी यानि गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स के विरोध में पूरे शहर के व्यापारी लामबंद होकर शांतिपूर्ण तरीके से प्रदर्शन कर रहे हैं। यह विरोध जीएसटी के लागू होने के बाद से लगातार जारी है।
देश के कुल विदेशी निर्यात में तकरीबन 11% हिस्सा कपड़ा व्यवसाय का है और यह कपड़ा व्यवसाय देश के पश्चिमी तटीय इलाकों में ज्यादा विकसित है। सूरत देश में कपड़ा व्यवसाय का मुख्य केंद्र है। अकेले सूरत का देश के कपड़ा व्यवसाय में योगदान 30% है। शहर के कपड़ा व्यवसाय की इस तरक्की में भाजपा के उन तीन शासनकालों का बेहद अहम् योगदान रहा है जिनमें तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की नीतियों ने कारोबार की उन्नति के रास्ते खोले और विदेशी निर्यात की संभावनाओं को और मजबूत किया।
एक वक़्त था जब कानपुर को “मैनेचेस्टर ऑफ़ ईस्ट” कहा जाता था और बंगाल में हुगली के किनारों पर केवल कॉटन मिलें हुआ करती थी। कपड़ा व्यवसाय मध्य और पूर्वी भारत में ज्यादा विकसित था। पर बदलते वक़्त ने सब-कुछ बदल कर रख दिया और सुविधाओं के अभाव में ये धंधे चौपट हो गए। दिन-ब-दिन आधुनिक होती तकनीक ने छोटे व्यवसायिओं की कमर तोड़ दी और सरकारी मदद और प्रोत्साहन के अभाव में वे सड़क पर आ गए। यह वो समय था जब पश्चिम भारत में औद्योगीकरण की लहर चल रही थी। तीव्र गति से कपड़ा उद्योग पश्चिमी तटीय इलाकों में विकसित हुआ और बॉम्बे(अब मुंबई), सूरत और अहमदाबाद इसके प्रमुख केंद्र बन गये।
सुलग रहा है शहर
व्यापारियों के विरोध का तरीका भले ही शांतिपूर्ण हो पर उमड़ रहा जनसैलाब आने वाले तूफ़ान की आहत दे रहा है। व्यापारी मोदी के विरोध में नारेबाजी तो नहीं कर रहे हैं पर उनकी नीतियों का विरोध कर रहे हैं जो परोक्ष रूप से उनका भी विरोध है। यह जनसैलाब बिल्कुल उस समुद्र की तरह दिखाई दे रहा जो तूफ़ान के आने से पहले बिल्कुल शांत दिखाई देता है और फिर पल में ही सबकुछ अपने अंदर समेत लेता है। यदि ऐसा है तो यह भाजपा के लिए उसके गढ़ गुजरात में खतरे की घंटी है और उसे वक़्त रहते संभल जाना चाहिए। मोदी को मनाने के लिए व्यवसायी प्रार्थनारुपी नारे लगा रहे हैं और भक्त की प्रार्थना ना सुनने पर तो भगवान् को भी कोप का भागी बनना पड़ता है, मोदीजी तो फिर भी इंसान है। हर कदम पर मोदी के साथ खड़े रहने वाले गुजरात का पहली बार मोदी से विश्वास डिगा है।
आगामी चुनावों पर असर डाल सकता है जीएसटी
इस कदम को विपक्ष एक अवसर के तौर पर देख रहा है। वैसे भी मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद नियुक्त मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल अपने दो साल के कार्यकाल में प्रभावी नहीं रही हैं और वर्तमान मुख्यमंत्री विजय रुपानी भी जमीन से जुड़े नेता नहीं है। गुजरात में मुख्यमंत्री चुनाव करीब है और ऐसे में सरकार का एक गलत कदम विपक्ष के लिए संजीवनी का काम कर सकता है। गुजरात देश का पाँचवा सबसे बड़ा राज्य है और गुजरात चुनाव के परिणाम निश्चित रूप से आने वाले लोकसभा चुनाव परिणाम पर असर डालेंगे। देश ही नहीं अपितु दुनिया के किसी भी हिस्से में मोदीजी की रैलियों में इतनी भीड़ का जुटना आम बात है पर उनके एक फैसले के विरोध में इतनी भीड़ का जुटना आम बात नहीं। मोदीजी को ये भी नहीं भूलना चाहिए कि भीड़ उसी की होती है जो भीड़ के साथ खड़ा होता है।