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    गुजरात विधानसभा चुनाव

    हिमाचल प्रदेश चुनावों में यूँ तो हर सीट महत्वपूर्ण है पर कई सीटें ऐसी भी हैं जो अब तक सत्ताधारी दल कांग्रेस और भाजपा के अबूझ पहेली बनी हुई हैं। कांगड़ा का नाम इन्हीं सीटों में शामिल है। कांगड़ा के चुनाव परिणामों को लेकर किए गए आंकलन और पूर्वानुमान हमेशा ही गलत साबित होते आए हैं। ओबीसी मतदाताओं की आबादी से बाहुल्य कांगड़ा सीट पर कांग्रेस और भाजपा दोनों दलों की जमीन दरकती नजर आ रही है। दोनों में से कोई भी दल कांगड़ा में जीत की निरंतरता बरकरार नहीं रख सका है और कई बार तो बाजी निर्दलीयों के हाथ भी लगी है। ‘राजाओं की कर्मभूमि’ के नाम से मशहूर कांगड़ा हिमाचल प्रदेश की सियासत में अहम् स्थान रखता है और हिमाचल की सत्ता तक पहुँचाने की सीढ़ी माना जाता है। शायद इसी वजह से पीएम नरेंद्र मोदी ने अपनी चुनावी रैली के लिए कांगड़ा को चुना था।

    कांगड़ा की जनता को पसंद है बदलाव

    कांगड़ा विधानसभा सीट पर हालिया वर्षों में कोई भी सियासी दिग्गज लगातार जीत दर्ज करने में सफल नहीं रहा है। ओबीसी आबादी बाहुल्य कांगड़ा सीट पर घिरथ जाति के मतदाता बड़ी संख्या में मौजूद हैं। इस जाति की खासियत है कि यह एकजुट होकर मतदान करते हैं। अगर कांगड़ा के सियासी इतिहास को देखें तो जो भी प्रत्याशी ने घिरथ जाति के मतदाताओं को अपनी ओर मिलाने में सफल रहा है, जीत का सेहरा उसी के सिर बँधा है। प्रमुख राष्ट्रीय पार्टियां पिछले 2 विधानसभा चुनावों से कांगड़ा की सीट नहीं जीत सकी हैं। 2007 में बसपा प्रत्याशी संजय चौधरी ने कांगड़ा सीट पर बाजी मारी थी। उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी और पूर्व विधायक चौधरी सुरेन्दर काकू को 1,500 मतों के अंतर से हराया था। 2012 के चुनावों में निर्दलीय प्रत्याशी पवन काजल ने जीत दर्ज कर कांग्रेस और भाजपा के माथे पर शिकन ला दी थी।

    कांगड़ा विधानसभा क्षेत्र में ब्राह्मण और राजपूत मतदाताओं की भी आबादी है मगर कोई भी दल आज तक इन दोनों को एकजुट करने में सफल नहीं हो सका है। कांगड़ा के लोकप्रिय चेहरे और जाने-माने बिल्डर पवन काजल ने पिछले चुनावों में सभी सियासी पूर्वानुमानों को धता बताते कांगड़ा की सीट जीत ली थी। कुछ समय पहले तक ऐसी खबरें आ रही थी कि इस बार चुनावों में पवन भाजपा का हाथ थाम सकते है। मगर ऐन वक्त पर कांग्रेस के टिकट पर दावेदारी पेश कर पवन ने अपने इरादे स्पष्ट कर दिए। भाजपा ने पूर्व विधायक और बसपा से भाजपा में आए संजय चौधरी को चुनावी मैदान में उतारा है। पिछले 10 वर्षों से कांगड़ा की सियासत से दूर रही भाजपा और कांग्रेस इस बार बाहर से आए प्रत्याशियों के भरोसे कांगड़ा की जनता से जुड़ने का प्रयास कर रही हैं।

    कांगड़ा में चुनावी रैली कर चुके हैं पीएम मोदी

    कांगड़ा की रैली में अपने सम्बोधन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस की विचारधारा पर हमला बोला था। पीएम मोदी ने कहा था कि मैंने वीरभूमि हिमाचल का अन्न खाया है। जब भी सीमाओं ने देश के सम्प्रभुता की रक्षा के लिए बलिदान माँगा है हिमाचल के रणबांकुरे सबसे पहले आगे आए हैं। कश्मीर मुद्दे का जिक्र करते हुए पीएम मोदी ने कहा था, “पाकिस्तान मांग करता है कि कश्मीर को आजादी दो। पाकिस्तान का समर्थन करने वाले घाटी के अलगाववादी भी कहते हैं कि कश्मीर को आजाद करो। लेकिन देश की सम्प्रभुता और एकता बनाए रखने के लिए हमारे वीर जवान उनके खिलाफ लड़ाई लड़ते हैं। कांग्रेसी विचारधारा के नेता कहते हैं कि कश्मीर की आजादी की मांग सही है। कांग्रेस का एक भी नेता उनकी आलोचना नहीं कर रहा है। कांग्रेस की विचारधारा देश को तोड़ने की है।”

    हिमाचल प्रदेश चुनाव
    कांगड़ा में चुनावी रैली कर चुके हैं पीएम मोदी

    पीएम मोदी ने कहा था कि हिमाचल प्रदेश के लिए भाजपा ने अपना विजन डॉक्यूमेंट जारी कर दिया है। कांग्रेस के कार्यकाल में राज्य में कुछ भी काम नहीं हुआ है इस वजह से हमे 5 सालों में 10 साल का काम करना पड़ेगा। पीएम मोदी ने आगे कहा था कि केंद्र में सरकार बनाने के बाद भाजपा ने हिमाचल प्रदेश को राष्ट्रीय स्तर के कई संस्थान दिए हैं। हमने यह कभी नहीं देखा कि हिमाचल प्रदेश में किसकी सरकार है। पिछले 3 सालों में राज्य से कोई भेदभाव नहीं किया गया है। हिमाचल प्रदेश को शायद ही कभी केंद्र से इतनी मदद मिली हो जितनी भाजपा सरकार ने पिछले 3 सालों में की है। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने हिमाचल प्रदेश में 9 नवंबर को प्रस्तावित चुनावों से 9 दिन पहले हिमाचल भाजपा के वरिष्ठ नेता प्रेम कुमार धूमल को आगे कर सियासी कायापलट का दांव खेला था।

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    हिमाचल के सत्ता की सीढ़ी है कांगड़ा

    कांगड़ा में रैली को सम्बोधित करते हुए पीएम मोदी ने कहा था, “जो कांगड़ा में चुनाव जीतता है, हिमाचल प्रदेश में उसी की सरकार बनती है।” उनकी यह बात सोलह आने सच भी है। कांगड़ा हिमाचल प्रदेश का सबसे बड़ा जिला है। हिमाचल प्रदेश विधानसभा की कुल 68 सीटों में से अकेले 15 सीटें कांगड़ा जिले की है। हिमाचल प्रदेश में बहुमत का आंकड़ा 35 सीटों का है। एक तरह से कांगड़ा जिला हिमाचल प्रदेश की सियासत में ‘किंग मेकर’ की भूमिका निभाता है। इसी वजह से यह कहा जाता है कि हिमाचल जीतने के लिए कांगड़ा जीतना जरुरी है। हिमाचल प्रदेश विधानसभा की सीट संख्या-16 कांगड़ा (अनारक्षित) है। वर्ष 2012 में हुए विधानसभा चुनावों के वक्त क्षेत्र में मतदाताओं की कुल संख्या 68,243 थी। कांगड़ा की सीट पर वही उम्मीदवार जीतता है जो जातीय समीकरणों को साधने में सफल रहता है।

    2012 के चुनावों में भाजपा को कांगड़ा की 15 में से 2 सीटों पर जीत मिली थी वहीं कांग्रेस के हाथ 10 सीटें लगी थी। तीन सीटों पर बाजी निर्दलीयों के हाथ लगी थी। कांगड़ा के वर्तमान विधायक पवन काजल ने 2012 में निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ा था। इस बार वह कांग्रेस के टिकट पर ताल ठोंक रहे है। पेशे से बिल्डर काजल क्षेत्र में जाना-पहचाना चेहरा हैं। हालाँकि 2014 में हुए लोकसभा चुनावों में भाजपा के वरिष्ठ नेता शांता कुमार ने कांगड़ा संसदीय सीट से निवर्तमान सांसद कांग्रेस के चन्दर कुमार को तकरीबन 2,07,000 मतों के बड़े अंतर से हराया था। शांता कुमार को 5,56,000 मत मिले थे वहीं चन्दर कुमार को तकरीबन 2,86,000 मत मिले थे। मतों के लिहाज से शांता कुमार की यह जीत कांगड़ा में अब तक का रिकॉर्ड थी। 2014 आम चुनावों में भाजपा ने हिमाचल प्रदेश में क्लीन स्वीप किया था।

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    कांगड़ा से चुनावी मैदान में हैं 6 उम्मीदवार

    हिमाचल प्रदेश की सियासत में महत्वपूर्ण स्थान रखने वाली कांगड़ा सीट से इस बार कुल 6 प्रत्याशियों ने ताल ठोंकी है। कांग्रेस ने मौजूदा विधायक पवन काजल को चुनावी मैदान में उतारा है जिनके सामने भाजपा प्रत्याशी और पूर्व विधायक संजय चौधरी की कड़ी चुनौती है। इसके अतिरिक्त बहुजन समाज पार्टी के विजय कुमार, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के रवि चंद, लोक गठबंधन पार्टी के सेवानिवृत्त कर्नल कुलदीप सिंह और निर्दलीय उम्मीदवार डॉ. राजेश शर्मा भी चुनावी मैदान में है। कांगड़ा की जनता हमेशा से ही किसी भी बड़े चेहरे या पार्टी के नाम के साथ नहीं जाती बल्कि क्षेत्र से जुड़े लोगों को समर्थन देती आई है। अब देखना है कि कांगड़ा की जनता इस बार भी लोगों से जुड़े किसी निर्दलीय चेहरे को समर्थन देती है या किसी राष्ट्रीय पार्टी के प्रत्याशी को मौका देती है।

    By हिमांशु पांडेय

    हिमांशु पाण्डेय दा इंडियन वायर के हिंदी संस्करण पर राजनीति संपादक की भूमिका में कार्यरत है। भारत की राजनीति के केंद्र बिंदु माने जाने वाले उत्तर प्रदेश से ताल्लुक रखने वाले हिमांशु भारत की राजनीतिक उठापटक से पूर्णतया वाकिफ है।मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक करने के बाद, राजनीति और लेखन में उनके रुझान ने उन्हें पत्रकारिता की तरफ आकर्षित किया। हिमांशु दा इंडियन वायर के माध्यम से ताजातरीन राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर अपने विचारों को आम जन तक पहुंचाते हैं।