सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिल्ली में ताकत का बंटवारा करने का आदेश आने के फैसले से सीएम केजरीवाल संतुष्ट नहीं है। उन्होंने कोर्ट के आदेश को लोकतंत्र के खिलाफ बताया है और कहा कि उनकी सरकार को कानूनी हल चाहिए।
लगातार अपने ताकत को लेकर जवाब मांग रही दिल्ली सरकार को आखिरकार कोर्ट ने कहा कि दिल्ली केंद्र है। इसलिए केंद्र में दर्ज बड़े लोगों के खिलाफ जांच करने का हक दिल्ली सरकार के पास नहीं है। एख विभाजित आदेश देने के बाद न्यायालय ने इस फैसले को उच्च न्यायालय के जजों की बेंच पर छोड़ दिया है।
आम आदमी प्रमुख केजरीवाल ने इसे “दिल्ली के लोगों के साथ अन्याय” करार दिया है। अदालत के आदेश का दावा करते हुए कि उन्होंने कहा कि निर्वाचित सरकार के पास अधिकारियों का तबादला करने की कोई शक्ति नहीं है। सीएम केजरीवाल ने कोर्ट से यह पूछा है कि जब आप सरकार के पास एक चपरासी तक को नियुक्त करने की ताकत नहीं है तो ऐसे में वह कैसे काम करेगी ।
उन्होंने यह भी कहा कि “हम पिछले चार वर्षों से पीड़ित हैं। एक छोटे काम के लिए या एक फ़ाइल को मंजूरी देने के लिए उन्हें दूसरों का मुंह देखना होगा, दिल्ली के मुख्यमंत्री और अन्य मंत्रियों को विरोध प्रदर्शन करना होगा और एलजी आवास पर भूख हड़ताल करना होगा, तो सरकार कैसे काम चलेगी? यह लोकतंत्र किस तरह का है?”
This is Indian democracy.
Those whom people elected are subordinate to those whom people defeated.
Those whom people elected are powerless and those whom people defeated enjoy complete powers. https://t.co/o6MeUekSQv
— Arvind Kejriwal (@ArvindKejriwal) February 14, 2019
केजरीवाल की सरकार के अनुसार जनता द्वारा चुनी हुई सरकार को भ्रष्ट नौकरशाहों के खिलाफ कार्रवाई करने की शक्ति होनी चाहिए।
संविधान पीठ के न्यायमूर्ति एके सीकरी और अशोक भूषण यह तय नहीं कर सके कि दिल्ली में अधिकारियों को लेकर किसके पास ज्यादा अधिकार होना चाहिए। हालांकि न्यायमूर्ति सीकरी का मानना था कि संयुक्त सचिव और उससे ऊपर के स्तर के उच्च पदस्थ अधिकारियों के तबादले का अधिकार उपराज्यपाल (एलजी) द्वारा किया जाना चाहिए।
नौकरशाहों द्वारा हड़ताल किए जाने पर बीते साल जुलाई महीने में सीएम अरविंद केजरीवाल एलजी अनिल बैजल के दफ्तर के बाहर धरने पर बैठ गए थे।