बसपा सुप्रीमो मायावती ने राज्यसभा सदस्यता से इस्तीफ़ा देने के बाद 23 जुलाई को पार्टी कार्यकर्ताओं की बैठक बुलाई है। इसमें बसपा के सभी सांसद और विधायक भी शामिल होंगे। उम्मीद की जा रही है कि इस बैठक के बाद मायावती अपनी अगले कदम की घोषणा करेंगी।
मायावती ने संसद के मानसून सत्र के पहले ही दिन राज्यसभा में सहारनपुर में दलितों पर हो रहे अत्याचारों का मुद्दा उठाया था। भाजपा सांसदों के विरोध और उपसभापति पीजे कुरियन द्वारा तय समय सीमा के बाद टोके जाने पर वो इस्तीफे की धमकी देकर चली गई थी। अगले दिन शाम को इन्होने तीन पन्नों का इस्तीफ़ा दिया था जिसे नियमों का हवाला देकर नामंजूर कर दिया गया था। उन्होंने पुनः तय रुपरेखा के अनुरूप इस्तीफ़ा दिया था जिसे कल मंजूर कर लिया गया था।
संगठन को संवारेंगी
मायावती की पार्टी बसपा का पिछले कुछ वर्षों में जनाधार घटा है। कभी देश की राष्ट्रीय पार्टियों में शुमार बसपा अब उत्तर प्रदेश में भी जमीन तलाश रही है। हालिया विधानसभा चुनावों में पार्टी के विधानसभा प्रतिनिधियों की संख्या 80 से घटकर 19 हो गई। ऐसे में इस बात के भी कयास लगाए जा रहे है कि मायावती पार्टी संगठन को मजबूत करने का कार्य करेंगी और पार्टी के आधार दलित वोटों को फिर से अपनी तरफ मिलायेंगी। इसके लिए वह उत्तर प्रदेश की राजनीति में दुबारा सक्रिय होंगी।
फिर लौट सकती हैं संसद में
दूसरी ओर उनके इस्तीफे के बाद से ही विपक्ष उनके समर्थन में खड़ा नजर आ रहा है। उनके दलित अत्याचार के मुद्दे पर इस्तीफे को आधार बनाकर विपक्ष भाजपा के दलित को राष्ट्रपति बनाने के बात बन रहे सियासी समीकरणों को बिगाड़ने का पूरी कोशिश में है। आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव ने उन्हें अपनी पार्टी के कोटे से राज्यसभा में भेजने की बात कही है।
वहीं भाजपा नेता और उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या के इस्तीफे के बाद खाली होने वाली फूलपुर सीट से उनकी लोकसभा उम्मीदवारी की भी चर्चा है। विपक्ष ने उनकी इस उम्मीदवारी का समर्थन करने के संकेत पहले ही दे दिए हैं। इस सीट पर दलित,अल्पसंख्यक और पिछड़े वर्ग के वोटों की प्रधानता का गणित भी उनके पक्ष में बैठ रहा है। ऐसे में मुमकिन है वो इस सीट से दावेदारी की घोषणा करे।
मायावती के सामने सारे विकल्प खुले हुए है और ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि वह इनमें से किसका चुनाव करती हैं।