संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में वर्ष 2018 की पहली छ्माही तक एफ़डीआई (प्रत्यक्ष विदेशी निवेश) के तहत 22 अरब डॉलर का निवेश हुआ है। वहीं वैश्विक एफ़डीआई के मामले यहीं आंकड़ा 41 प्रतिशत गिर गया है, जिसका कारण ट्रम्प प्रशासन द्वारा करों की दर को बढ़ाना माना जा रहा है।
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार देश में हुए एफ़डीआई निवेश के तहत इस छमाही के आंकड़े में पिछली बार की तुलना में 13 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज़ की गयी है। वहीं 22 अरब डॉलर के विदेशी प्रत्यक्ष निवेश के साथ ही भारत इस मामले में विश्व के 10 सबसे बड़े देशों में शामिल हो गया है।
वहीं सूचीबद्ध तरीके से देखने पर एफ़डीआई के मामले में चीन 70 अरब डॉलर के साथ पहले नंबर पर, यूके 65.5 अरब डॉलर के साथ दूसरे नंबर पर, अमेरिका 46.5 अरब डॉलर के साथ तीसरे नंबर पर, नीदरलैंड 44.8 अरब डॉलर के साथ चौथे नंबर पर, ऑस्ट्रेलिया 36.1 अरब डॉलर के साथ पांचवे नंबर पर विराजमान है।
इसी के साथ वैश्विक एफ़डीआई में भरी गिरावट देखने को मिली है। वर्ष 2017 की तुलना में वर्ष 2018 तक 41 प्रतिशत की गिरावट दर्ज़ की गयी है, जिसके चलते वर्ष 2017 के मध्य में वैश्विक एफ़डीआई का ये आंकड़ा 794 अरब डॉलर पर था, जो 2018 के मध्य तक गिरकर 470 अरब डॉलर पर आ गया है।
रिपोर्ट के अनुसार विकसित देशों में एफ़डीआई के आंकड़ों में अधिक तेज़ी दिखाई देती है। निवेशक विकसित देशों में अपने निवेश को पहली वरीयता में रखते हैं, वहीं दूसरी विकासशील देशों में भारत जैसी बड़ी अर्थव्यवस्था को नकारा नहीं जा सकता है इसी के चलते भारत भी इन निवेशकों की खास पसंद के रूप में सामने आता है।
लेकिन इन सब की तुलना में छोटे विकासशील देशों एफ़डीआई के तहत निवेश को लेकर बड़ी समस्या सामने आती है।