देश में हुए सभी घोटालों में चर्चित 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला रहा है। इस घोटाले में आए कोर्ट के फैसले ने सभी दोषियों को बरी कर दिया है, जिसको ताक पर रखते हुए कांग्रेस ने केंद्र सरकार पर हमला बोल दिया है। कांग्रेस का केंद्र पर पलटवार जायज है, क्योंकि कांग्रेस इस मामले में आज तक तंज झेल रही है। जिस तरह से अदालत का फैसला आया है इस पर कांग्रेस की जो प्रक्रिया है वह उससे राजनीती लाभ उठाना चाहेगी ही। कांग्रेस इस घोटाले का टीका अपने सर लेकर घूम रही थी, आजादी के बाद का यह सबसे बड़ा घोटाला है। ऐसे मामले में कोर्ट का फैसला जनता को हैरान कर ही देगा। 2जी मामले में जिस तरह से कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया है उससे लोगो के मन में शंका जरूर हो रही होगी। इससे लोगो के अंदर यही सन्देश गया होगा कि सारे आरोप गलत है, 2जी मामले में कोई घोटाला हुआ ही नहीं। क्या लोगो का ऐसा सोचना जायज है? क्या अदालत ने मान लिया कि इस मामले में किसी प्रकार की कोई गड़बड़ी नहीं हुई थी।
क्या अदालत ने कहा कि जो लेनदेन हुई है वह नियमो को ताक पर रखते हुए किया गया है? जिनको भी लाइसेंस दिए गए उनमे भुगतान का दर सही था। इसलिए इस सन्दर्भ में आए कोर्ट के फैसले को थोड़ा उजागर करना जरुरी है। फैसले के दिन न्यायालय ने यह कह कर दोषियों को बरी कर दिया कि पैसे के लेन देन में सीबीआई के तरफ से कोई पुख्ता सबुत नहीं पेश किया गया है। कोर्ट ने कहा कि आरोपियों के खिलाफ जाँच एजेंसियां कोई ठोस सबुत नहीं पेश कर पाई। इस तरह की वाक्या सीबीआई के अधिकारी और प्रवर्तन निदेशालय के खिलाफ एक कड़ी टिप्पणी है।
अगर देखा जाये तो सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय के पास अभी एक रास्ता बचा है जिससे दोनों एजेंसियां अपने ऊपर किये गए टिप्पणी का जवाब दे सके। 2जी मामले में अभी विशेष अदालत का फैसला आया है लेकिन दोनों एजेंसियां चाहे तो उच्च न्यायालय का रास्ता देख सकते है। लेकिन जब न्यायालय ने 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन में घोटाला हुआ या नहीं इस पर साफ शब्दों में कुछ कहा ही नहीं है तो फिर कोई निष्कर्ष निकाल लेना कहां तक उचित है? जिस तरह कोर्ट ने पांच मिनट के अंदर इतने बड़े घोटाले के सन्दर्भ में फैसला सुनाया और दोषियों को बरी कर दिया। यह मामला उतना भी सीधा नहीं है, 2जी मामले में ही उच्च न्यायालय ने 2012 में 122 2जी लाइसेंस रद्द कर दिए थे अगर कोई सबुत नहीं मिलता तो उच्च न्यायालय लाइसेंस रद्द क्यों करता? विशेष कोर्ट द्वारा किये गए टिप्पणी में कानून और प्रक्रियाओं के उल्लंघन को स्वीकार किया गया है।
लेकिन जब न्यायालय ने 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन में घोटाला हुआ या नहीं इस पर साफ शब्दों में कुछ कहा ही नहीं है तो फिर कोई निष्कर्ष निकाल लेना कहां तक उचित है। अगर देखा जाये तो उच्चतम न्यायालय ने भी इस मामले में ना कोई विचार और ना ही कोई टिप्पणी की। कोर्ट ने इस मामले में केवल इतना कहा कि 2जी मामले में जो लेन देन हुआ है वह मनमाने और असंवैधानिक तरीके से हुआ है। देखा जाए तो इस मामले में उच्च न्यायालय ने केवल इसके नियम, कानून और प्रक्रिया पर सवाल किये। इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने यह माना की अनियमिता बरती गयी है। लेकिन 2जी मामले में भ्रष्टाचार हुआ, यह फैसला सीबीआई की विशेष अदालत को करना था। इस मामले की सुनवाई 2011 में हुई थी, 30 अप्रैल 2011 को सीबीआई ने अपने आरोप पत्र में ए राजा और अन्य के खिलाफ 30 हजार 984 करोड़ के गबन का आरोप लगाया था। विशेष अदालत ने राजा और कनीमोझी के अलावा अन्य आरोपियों के खिलाफ भ्रष्टाचार निरोधक कानून, आपराधिक षड्यंत्र रचने, धोखाधड़ी, फर्जी दस्तावेज बनाने, पद का दुरुपयोग करने और घूस लेने जैसे आरोप लगाए गए थे। इस मामले में ऐसा नहीं है कि सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय के पास इन पर आरोप तय करने के लिए सबूत कम थे। लेकिन विशेष अदालत ने इस मामले में इस तरह फैसला सुनाया जैसे कोई छोटी मोटी चोरी की वारदात हो।
इस मामले में दिए गए न्यायालय के फैसले पर हम कोई टिप्पणी भी नहीं कर सकते है। क्योंकि न्यायालय ने उसी तथ्यों पर अपना फैसला सुनाया है जो कि सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय ने उसके समक्ष सबूत रखे थे। यह तो सच है कि ए राजा के मंत्री रहते दूरसंचार मंत्रालय ने पहले आवेदन करने की अंतिम तिथि 1 अक्टूबर, 2007 तय की। इसके बाद आवेदन प्राप्त करने की कट-ऑफ डेट बदलने से 575 में से 408 आवेदक रेस से बाहर हो गए। इस मामले में दूसरा आरोप सीबीआई के तरफ से यह था कि इसके अनुसार पहले आओ और पहले पाओ निति का उलंघन किया गया जो कि गैर तरीके से आजमाया गया था। तीसरे आरोप में सीबीआई ने यह आरोप लगाया था कि उन कंपनियों पर सवाल उठाये गए जिन्हे किसी प्रकार का अनुभव नहीं था। चौथा आरोप यह था कि नए आपरेटरों के लिए प्रवेश शुल्क का संशोधन नहीं किया जा रहा था। कंपनियों के अनुभव वाले आरोप पर राजा ने कहा था कि ट्राई ने अनुभव का प्रावधान ख़त्म कर दिया था। राजा ने यह दावा किया था कि ट्राई ने यह कहा था कि जो भी फर्म 1650 करोड़ देगी वहीं स्पेक्ट्रम के नीलामी में शामिल होने के योग्य होगी। यानि ट्राई के अनुसार पहले आओ पहले पाओ की नीति जैसे पहले पैसा और लाइसेंस ले जाओ। जानकारों का कहना है कि इसके पूर्व राजग की सरकार थी लेकिन उसमे 2जी खरीदने वालो की जनसँख्या कम थी, इसलिए पहले आओ पहले पाओ की नीति समझ आती थी। लेकिन दूरसंचार रहे ए राजा के कार्यकाल में निति को घुमाफिरा कर पेश किया किया गया। सीबीआइ के बारे में उच्चतम न्यायालय ने 2013 में पिंजड़े का तोता होने का जो शब्द प्रयोग किया उसमें यह उम्मीद कम ही थी कि वह ईमानदारी और दृढ़ता से मामले की छानबीन करता या सजा देने लायक सुबूत पेश करता।
यह बात परिवर्तन निदेशालय के बारे में कहा जा सकता है कि जो धाराएँ आरोपी पर लगाए गए थे उसे साबित करना भी जरुरी था। लेकिन दोनों एजेंसियों में से किसी ने भी पैसे के लेन देन में सबूत पेश नहीं किया। इस सन्दर्भ में प्रशासनिक मामले में तो गलतिया हो सकती है, लेकिन सबसे आश्चर्य की बात यह है कि नई सरकार के आने के बाद भी इन दोनो एजेंसियों ने कोई कड़ा रुख नहीं अपनाया या नए सिरे इस मामले की जाँच प्रारम्भ नहीं की। सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय ने 2जी मामले में कुछ नहीं किया।