Fri. Apr 19th, 2024
    विजय रुपाणी

    गुजरात भाजपा के दिग्गज नेता विजय रुपाणी ने आज लगातार दूसरी बार गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली। विजय रुपाणी के शपथ ग्रहण समारोह में भाजपा शासित प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों के साथ-साथ सभी सहयोगी दलों के नेता भी नजर आए। गुजरात विधानसभा चुनाव एक प्रादेशिक चुनाव ना होकर भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए राष्ट्रीय साख का विषय बन गया था। यही वजह है कि भाजपा अपनी जीत का जुलूस गाजे-बाजे के साथ निकाल रही है।

    विजय रुपाणी के शपथ ग्रहण समारोह में मंच पर उपस्थित राजनेताओं का हुजूम एनडीए की मजबूती को दर्शा रहा है और इसके माध्यम से पीएम मोदी कांग्रेस को मजबूत सन्देश देना चाह रहे हैं। जातीय आन्दोलन और सत्ता विरोधी लहर के बावजूद भाजपा गुजरात में सत्ता बचाने में कामयाब रही और इस जीत का सेहरा विजय रुपाणी के सिर बँधा। विजय रुपाणी लगातार दूसरी बार गुजरात के मुख्यमंत्री चुने गए।

    प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने एक बार फिर विजय रुपाणी पर अपना भरोसा जताया है। विजय रुपाणी के पास दशकों का सियासी अनुभव है और वह लम्बे समय तक संगठन कार्यकर्ता रह चुके हैं। बतौर मुख्यमंत्री अपने पिछले कार्यकाल में विजय रुपाणी को बमुश्किल डेढ़ सालों का कार्यकाल मिला था और वह भी ऐसे समय में जब पाटीदार और ओबीसी आन्दोलन जोर पकड़ चुका था।

    ऐसे में उनके पास कुछ खास करने का अवसर नहीं था और आन्दोलनरत जातियों की मान-मनौव्वल में ही कार्यकाल बीत गया। भाजपा आलाकमान ने एकबार फिर विजय रुपाणी पर अपना भरोसा जताया है और उन्हें 5 वर्षों का पूरा कार्यकाल सौंपा है। विजय रुपाणी की सियासी समझ और प्रबंधन पर मोदी-शाह को यकीन है और उन्हें उम्मीद है कि रुपाणी गुजरात को जातीय आन्दोलन की बेड़ियों से आजाद कर दोबारा विकास का प्रतिरूप बनाएंगे।

    विजय रुपाणी का जन्म बर्मा की राजधानी रंगून में 1956 में हुआ था। राजनीतिक अस्थिरता के चलते उनका परिवार 1960 में राजकोट चला आया और रुपाणी ने अपनी शिक्षा-दीक्षा गुजरात से ही प्राप्त की। विजय रुपाणी ने सौराष्ट्र विश्वविद्यालय से कानून की पढाई की है। विजय रुपाणी एक धनाढ्य वैश्य परिवार से आते हैं।

    विजय रुपाणी अपने छात्र जीवन से ही भाजपा के साथ जुड़े हुए हैं और वह एबीवीपी के सक्रिय कार्यकर्ता रह चुके हैं। 1971 में विजय रुपाणी ने जनसंघ की सदस्यता ली थी। विजय रुपाणी आपातकाल के दौरान 11 महीनों तक जेल में भी रहे। विजय रुपाणी वर्ष 1978 से 1981 तक आरएसएस के प्रचारक भी रह चुके हैं। विजय रुपाणी भाजपा की स्थापना के समय से ही पार्टी से जुड़े हैं।

    विजय रुपाणी 1987 में सक्रिय रूप से राजनीति में आए जब उन्होंने राजकोट म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन के चुनाव में जीत हासिल की और कॉर्पोरेटर निर्वाचित हुए। वह ड्रेनेज कमेटी के चेयरमैन भी बने। अगले ही वर्ष वह राजकोट म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन की स्टैण्डिंग कमेटी के चेयरमैन बने और वर्ष 1996 तक इस पद पर काबिज रहे।

    विजय रुपाणी वर्ष 1996 से 1997 तक राजकोट शहर के मेयर रहे। वर्ष 1998 में रुपाणी गुजरात भाजपा प्रदेश कमेटी के महासचिव चुने गए और केशुभाई पटेल के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के कार्यकाल के दौरान भाजपा की मैनिफेस्टो कमेटी के चेयरमैन भी रहे। विजय रुपाणी 4 बार गुजरात भाजपा प्रदेश इकाई के महासचिव रह चुके हैं।

    वर्ष 2006 में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के कार्यकाल में विजय रुपाणी गुजरात पर्यटन बोर्ड के चेयरमैन चुने गए। वर्ष 2006 से 2012 तक विजय रुपाणी गुजरात से राज्यसभा सांसद भी रहे। नरेन्द्र मोदी के मुख्यमंत्री कार्यकाल के दौरान वर्ष 2013 में विजय रुपाणी गुजरात म्यूनिसिपल फाइनेंस बोर्ड के चेयरमैन भी रहे।

    वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों में मिले बहुमत के बाद जब केंद्र में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा सरकार का गठन हो रहा था उस वक्त विजय रुपाणी का नाम गुजरात के मुख्यमंत्री पद की दौड़ में शामिल था। पर ऐन वक्त पर आनंदीबेन पटेल को गुजरात का मुख्यमंत्री बना दिया गया। आनंदीबेन पटेल के पहले मन्त्रिमण्डल विस्तार में विजय रुपाणी को कैबिनेट मंत्री के ओहदे से नवाजा गया और उनके हिस्से में परिवहन, जल आपूर्ति तथा श्रम एवं रोजगार मंत्रालय आया।

    19 फरवरी, 2016 को विजय रुपाणी को गुजरात भाजपा प्रदेश इकाई का अध्यक्ष बनाया गया। वह अगस्त, 2016 तक गुजरात भाजपा अध्यक्ष के पद पर रहे। बढ़ती उम्र और जोर पकड़ रहे जातीय आंदोलनों के दबाव में तत्कालीन मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल ने अपनी कुर्सी खाली कर दी और 7 अगस्त, 2016 को विजय रुपाणी गुजरात के मुख्यमंत्री बने।

    विजय रुपाणी ने जिस वक्त मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी संभाली थी उस वक्त गुजरात में जातीय आन्दोलन जोर पकड़ चुका था और भाजपा की पकड़ उसके परंपरागत वोटबैंक रहे पाटीदार समाज पर ढ़ीली हो चुकी थी। गुजरात भाजपा के पाटीदार चेहरे और वरिष्ठ नेता नितिन पटेल राज्य के उपमुख्यमंत्री बने और रुपाणी-पटेल की जोड़ी राज्य में भाजपा की जमीन मजबूत करने में जुट गई।

    जिस वक्त विजय रुपाणी मुख्यमंत्री बने थे उस समय युवा नेता हार्दिक पटेल के नेतृत्व में गुजरात का पाटीदार समाज आरक्षण की मांग को लेकर राज्य में सड़कों पर उतर चुका था। लाखों की भीड़ ने अहमदाबाद में विकास की रफ्तार को बिलकुल थाम सा लिया था। नाराज पाटीदारों को मनाने की हर कोशिश बेकार साबित हो रही थी।

    मुख्यमंत्री विजय रुपाणी ने पाटीदारों से आरक्षण की मांग पर बात करने के लिए एक समिति गठित की जिसकी कमान उन्होंने राज्य के उपमुख्यमंत्री और पाटीदार नेता नितिन पटेल को सौंपी। हालाँकि यह समिति अपने उद्देश्यों को पाने में तो सफल नहीं हुई पर आन्दोलन की उग्रता को नियंत्रित करने में विजय रुपाणी काफी हद तक सफल रहे।

    भाजपा अभी पाटीदार आन्दोलन के झटके से उबर नहीं पाई थी कि गुजरात के सबसे बड़े मतदाता वर्ग ओबीसी समाज ने सत्ताधारी भाजपा सरकार के खिलाफ आन्दोलन छेड़ दिया। ओबीसी आन्दोलन की कमान सँभाली थी कांग्रेस के पुराने शागिर्द खोड़ाजी ठाकोर के पुत्र अल्पेश ठाकोर ने। अल्पेश ने गुजरात में ओबीसी समुदाय की 146 जातियों को एकजुट किया और सत्ताधारी भाजपा सरकार को उखाड़ फेंकने की धमकी देने लगे।

    पहले ओबीसी आन्दोलन का रुख पाटीदारों को आरक्षण देने के खिलाफ था पर धीरे-धीरे सब साथ आ मिले। अल्पेश ठाकोर कांग्रेस में शामिल हो गए और पाटीदार नेता हार्दिक पटेल ने भी खुलकर कांग्रेस का समर्थन किया। इन सबके बावजूद विजय रुपाणी गुजरात में भाजपा की नैया पार लगाने में सफल रहे।

    सौराष्ट्र के ऊना में कथित गौरक्षकों द्वारा दलितों की पिटाई के बाद सामाजिक कार्यकर्ता और पेशेवर वकील जिग्नेश मेवानी ने सत्ताधारी भाजपा सरकार के खिलाफ आन्दोलन छेड़ दिया था। उन्होंने भाजपा पर दलितों से भेदभाव करने का आरोप लगाया और दलित समाज को भाजपा के खिलाफ एकजुट खड़ा किया। दलित समाज गुजरात के प्रमुख वोटबैंकों में से एक था और उनके समर्थन के बिना भाजपा के लिए गुजरात जीतना मुश्किल था।

    जिग्नेश मेवानी निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़े और उनकी उम्मीदवारी को कांग्रेस ने समर्थन दिया। बदले में जिग्नेश मेवानी ने दलित समाज के मतदातों को कांग्रेस के पक्ष में वोट करने की अपील की। इन तमाम जातीय कार्ड के दांवों के बावजूद भी विजय रुपाणी गुजरात की जनता का भरोसा जीतने में सफल रहे और राज्य में भाजपा ने लगातार 6वीं बार सरकार बनाई।

    विजय रुपाणी के पिछले कायर्काल के वक्त दिक्कत यह थी कि एक ओर भाजपा सत्ता विरोधी लहर से जूझ रही थी वहीं दूसरी ओर जातीय आन्दोलनों ने उसकी नाक में दम कर रखा था। मुख्यमंत्री विजय रुपाणी के 15 महीनों के कार्यकाल की तुलना नरेन्द्र मोदी के बतौर मुख्यमंत्री 13 वर्षों के कार्यकाल से की जा रही थी। बतौर मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के कार्यकाल में गुजरात ने अभूतपूर्व तरक्की की थी और उनका शासनकाल आज भी देश के मुख्यमंत्रियों के लिए एक मिसाल है।

    नरेन्द्र मोदी के कार्यकाल के वक्त गुजरात का नाम लेते ही मोदी का चेहरा आँखों के सामने आ जाता था। नरेन्द्र मोदी के दौर में गुजरात भाजपा का कोई भी नेता या उनके कैबिनेट का कोई भी मंत्री अपनी स्वतंत्र पहचान नहीं बना पाया था। यही कारण था कि विजय रुपाणी नरेन्द्र मोदी की तुलना में कमजोर मुख्यमंत्री नजर आ रहे थे।

    विजय रुपाणी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के विश्वस्त हैं। गुजरात में विजय रुपाणी भाजपा संगठन के लिए दशकों काम कर चुके हैं। वह साफ-सुथरी छवि वाले नेता हैं और गुजरात में एक जाना-माना चेहरा हैं। यही वजह है कि भाजपा ने एक बार फिर उन्हें आगे करके दांव खेला है। विजय रुपाणी कारोबारी घराने से आते हैं और गुजरात के व्यापारी वर्ग में उनकी अच्छी पकड़ है।

    गुजरात भाजपा के गढ़ कहे जाने वाले सौराष्ट्र में विजय रुपाणी की पकड़ काफी अच्छी है। हालाँकि इस बार भाजपा को सौराष्ट्र में पाटीदारों के आक्रोश का सामना करना पड़ा और उसका प्रदर्शन पिछले चुनावों की तुलना में खराब रहा। भाजपा अब अपना हर कदम 2019 लोकसभा चुनावों को ध्यान में रखकर उठा रही है और विजय रुपाणी को मुख्यमंत्री बनाना भी इसी रणनीति का हिस्सा है। अब यह देखना है कि क्या विजय रुपाणी गुजरात के लिए दूसरे विकास पुरुष साबित होते हैं और राज्य को जातीय आन्दोलनों से दोबारा विकास की पटरी पर लौटा पाते हैं।

    By हिमांशु पांडेय

    हिमांशु पाण्डेय दा इंडियन वायर के हिंदी संस्करण पर राजनीति संपादक की भूमिका में कार्यरत है। भारत की राजनीति के केंद्र बिंदु माने जाने वाले उत्तर प्रदेश से ताल्लुक रखने वाले हिमांशु भारत की राजनीतिक उठापटक से पूर्णतया वाकिफ है।मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक करने के बाद, राजनीति और लेखन में उनके रुझान ने उन्हें पत्रकारिता की तरफ आकर्षित किया। हिमांशु दा इंडियन वायर के माध्यम से ताजातरीन राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर अपने विचारों को आम जन तक पहुंचाते हैं।