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    हिमाचल प्रदेश चुनाव

    हिमाचल प्रदेश की बुशहर रियासत के अंतिम राजा और 6 बार सूबे के मुखिया रहे वीरभद्र सिंह किसी परिचय के मोहताज नहीं है। 1962 में अपनी सियासी पारी शुरू करने वाली वीरभद्र सिंह पिछले 55 सालों से कांग्रेस के साथ जुड़े हैं और पार्टी के वरिष्ठम नेताओं में से एक हैं। वीरभद्र सिंह ने देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से लेकर मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के हर प्रधानमंत्री के साथ काम किया है। सियासी अनुभव और कद के लिहाज से उनके सामने कोई नहीं ठहरता है। ‘राजा साहब’ के उपनाम से प्रसिद्ध वीरभद्र सिंह अभी तक सियासत की हर जंग में अजेय रहे हैं और कोई भी चुनाव हारे नहीं हैं। वीरभद्र सिंह ने अब तक 13 बार चुनाव लड़ा है और हमेशा ही विजय पताका फहराई है। इनमें 8 विधानसभा चुनाव और 5 लोकसभा चुनाव शामिल हैं।

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    हिमाचल प्रदेश की राजनीति में अब तक बेताज बादशाह की भूमिका में नजर आने वाले वीरभद्र सिंह ने शिमला ग्रामीण सीट अपने पुत्र विक्रमादित्य सिंह के लिए खाली कर दी है। विक्रमादित्य सिंह कांग्रेस के टिकट पर पहली बार सियासी दंगल में उतरेंगे। वीरभद्र सिंह ने अपनी परंपरागत शिमला ग्रामीण सीट की जगह अर्की से नामांकन भरा है। अर्की सीट पर पिछले 10 सालों से भाजपा का कब्जा है और इसे हिमाचल भाजपा का गढ़ भी कहा जाता है। यह पहली बार नहीं है जब वीरभद्र सिंह ने अपना निर्वाचन क्षेत्र बदला है। इससे पूर्व भी वह 3 बार अपना निर्वाचन क्षेत्र बदल चुके हैं। हर बार जनता ने उन्हें हाथों-हाथ लिया है और पलकों पर बिठाया है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि सियासी दंगल में वीरभद्र सिंह हिमाचल भाजपा का गढ़ कही जाने वाली अर्की सीट पर चढ़ाई करने में सफल हो पाते हैं या नहीं।

    सियासी जंग में अजेय रहे हैं ‘राजा साहब’

    समर्थकों के बीच ‘राजा साहब’ के उपनाम से मशहूर वीरभद्र सिंह बुशहर रियासत के आखिरी राजा हैं। 1962 में सियासत की दुनिया में कदम रखने वाले वीरभद्र सिंह अपने 55 सालों के राजनीतिक जीवन में अभी तक अजेय रहे हैं। अगर विधानसभा चुनावों की बात करें तो वीरभद्र सिंह ने 1983 में जुब्बल, 1985 में कोठकाई, 1990-2007 तक लगातार 5 बार रोहडू और 2012 विधानसभा चुनावों में शिमला ग्रामीण सीट का प्रतिनिधित्व किया था। इसके अतिरिक्त वीरभद्र सिंह 1962, 1967, 1971, 1980 और 2009 में लोकसभा के लिए भी निर्वाचित हुए। सियासत के मैदान में अजेय रहे वीरभद्र सिंह ने शिमला संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले सोलन जिले की अर्की सीट से दावेदारी ठोंक कर सियासी सरगर्मियां बढ़ा दी है। अब सबकी नजरें इस ओर टिकी हैं कि क्या अर्की में इतिहास स्वयं को दोहराएगा या ‘राजा साहब’ स्वयं इतिहास बन जाएंगे।

    आसान नहीं है अर्की फतह करना

    वीरभद्र सिंह के राजनीतिक जीवन का रिकॉर्ड देखते हुए अर्की से उनकी दावेदारी पर सवाल नहीं उठाया जा सकता पर हिमाचल प्रदेश के बदलते राजनीतिक परिदृश्यों को देखते हुए उनकी सफलता को लेकर संदेह की स्थिति उत्पन्न हो गई है। 2014 में हुए लोकसभा चुनावों में भाजपा ने हिमाचल प्रदेश की चारों लोकसभा सीटों पर कब्जा जमाया था और राज्य के सत्ताधारी दल कांग्रेस का सूफड़ा साफ कर दिया था। इससे पूर्व 2009 में सत्ता में आने के कुछ दिन बाद ही वीरभद्र सिंह और उनका परिवार भ्रष्टाचार के आरोपों से घिर गया था। इस मामले की जाँच अभी भी चल रही है और इस वजह से उनके व्यक्तित्व पर सवालिया निशान लगे हैं। हाल ही में हिमाचल कांग्रेस में बगावत की स्थिति उत्पन्न हो गई थी और इसे सुलझाने के लिए कांग्रेस आलाकमान को हस्तक्षेप करना पड़ा था।

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    वीरभद्र सिंह ने जिस अर्की सीट से नामांकन भरा है वह भाजपा के प्रतिनिधित्व वाले शिमला संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत आती है। अर्की सीट पार 2007 से पहले कांग्रेस का दबदबा था पर पिछले 2 बार से यहाँ की जनता भाजपा के साथ है। अर्की विधानसभा क्षेत्र में मतदाताओं की कुल संख्या 84,834 है। वीरभद्र सिंह के दावेदारी की वजह से अर्की विधानसभा हिमाचल प्रदेश की ‘हॉट सीट’ बन गई है। भाजपा ने वीरभद्र सिंह के विजयरथ को थामने के लिए मौजूदा विधायक गोविन्द राम शर्मा की जगह रत्न पाल सिंह को मैदान में उतारा है। कांग्रेस वीरभद्र सिंह के सहारे अर्की में अपना पुराना दबदबा कायम करने की राह तलाश रही है वहीं भाजपा आलाकमान सभी सियासी समीकरणों को साधकर अर्की बचाने में जुट गया है। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह अर्की में चुनावी सभा कर वीरभद्र सिंह की राह और मुश्किल कर सकते हैं।

    बराबर है दोनों दलों का पलड़ा

    हिमाचल प्रदेश विधानसभा की अर्की सीट पर पहली बार 1977 में चुनाव हुआ था। तब से अब तक हिमाचल प्रदेश में 9 बार विधानसभा चुनाव हुए हैं। इन 9 चुनावों में से अर्की सीट पर 4 बार बाजी भाजपा के हाथ लगी है वहीं कांग्रेस ने भी 4 बार फतह हासिल की है। एक बार जनता पार्टी ने यह सीट जीती थी। आंकड़ों के लिहाज से अर्की सीट पर भाजपा और कांग्रेस का पलड़ा बराबर दिख रहा है। वीरभद्र सिंह का राजनीतिक कद और व्यक्तित्व यहाँ बड़ा अंतर पैदा कर सकता है जिसे पाटने के लिए भाजपा हरसंभव कोशिश कर रही है। हिमाचल प्रदेश में 9 नवंबर को चुनाव प्रस्तावित हैं और चुनाव परिणाम 18 दिसंबर को जारी होंगे। सभी की नजरें इस ओर टिकी हैं कि इस सियासी उठापटक में बाजी किसके हाथ लगती है।

    By हिमांशु पांडेय

    हिमांशु पाण्डेय दा इंडियन वायर के हिंदी संस्करण पर राजनीति संपादक की भूमिका में कार्यरत है। भारत की राजनीति के केंद्र बिंदु माने जाने वाले उत्तर प्रदेश से ताल्लुक रखने वाले हिमांशु भारत की राजनीतिक उठापटक से पूर्णतया वाकिफ है।मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक करने के बाद, राजनीति और लेखन में उनके रुझान ने उन्हें पत्रकारिता की तरफ आकर्षित किया। हिमांशु दा इंडियन वायर के माध्यम से ताजातरीन राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर अपने विचारों को आम जन तक पहुंचाते हैं।