हिमाचल प्रदेश में सियासी बिगुल बज चुका है। इस सियासी दंगल में सूबे के सत्ताधारी दल कांग्रेस और प्रमुख विपक्षी दल भाजपा में आर-पार की लड़ाई है। सियासी बिछात सज चुकी है और दोनों ही दल बड़ी सावधानी से अपने मोहरों को आगे बढ़ा रहे हैं। 9 नवंबर को प्रस्तावित हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनावों के 10 दिन पूर्व भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने 2 बार हिमाचल की सत्ता संभल चुके दिग्गज भाजपाई प्रेम कुमार धूमल को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित कर अपना तुरुप का इक्का चल दिया है। कांग्रेस पहले ही वर्तमान मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के नेतृत्व में चुनाव लड़ने की घोषणा कर चुकी है। अब सवाल यह है कि क्या प्रेम कुमार धूमल हिमाचल प्रदेश में भाजपा की साख धूमिल होने से बचा पाएंगे और भाजपा की सत्ता वापसी कराएंगे?
भाजपा हिमाचल प्रदेश में 9 नवंबर को प्रस्तावित विधानसभा चुनावों तक अपना पूरा ध्यान केंद्रित कर रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह लगतार हिमाचल प्रदेश पर नजर जमाए हुए हैं और चुनाव प्रचार के आखिरी चरण में धुआँधार रैलियां कर रहे हैं। भाजपा हिमाचल प्रदेश के चुनावी प्रचार अभियान में अपने सभी शीर्ष नेताओं को उतार चुकी हैं जिनमें गृह मंत्री राजनाथ सिंह, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, परिवहन मंत्री नितिन गडकरी जैसे बड़े नाम शामिल हैं। मोदी सरकार के स्वास्थ्य मंत्री जे पी नड्डा तो हिमाचल प्रदेश में डेरा डालकर ही बैठ गए हैं। भाजपा धूमल-नड्डा की जोड़ी के माध्यम से अपने कोर वोटबैंक कहे जाने वाले सवर्ण मतदाताओं को साध रही है। प्रेम कुमार धूमल हिमाचल भाजपा के सबसे बड़े चेहरे हैं और उन्हें आगे कर भाजपा उनकी लोकप्रियता भुनाने के प्रयास में है।
पीएम मोदी ने बाँधे धूमल की तारीफों के पुल
हिमाचल प्रदेश में मुख्यमंत्री पद के लिए उम्मीदवारी की घोषणा होने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रेम कुमार धूमल की तारीफों के पुल बाँध दिए थे। पीएम मोदी ने कहा था कि धूमल के पास व्यापक प्रशासनिक अनुभव है और वह एक शानदार मुख्यमंत्री बनेंगे। प्रेम कुमार धूमल की तरफदारी करते हुए पीएम मोदी ने कहा था कि धूमल जी हमारे वरिष्ठ नेता है और भाजपा हिमाचल प्रदेश में उन्ही के नेतृत्व में चुनाव लड़ेगी। पीएम मोदी ने आगे कहा कि भाजपा हिमाचल प्रदेश को भ्रष्टाचार मुक्त करना चाहती है और राज्य का रिकॉर्ड विकास करना चाहती है। उन्होंने कहा था, “हिमाचल प्रदेश की सत्ताधारी कांग्रेस सरकार भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी हुई हैं और खुद मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह पर सीबीआई जाँच चल रही है। भाजपा विकास की राजनीति करती है और हिमाचल प्रदेश को विकास के नए आयाम पर ले जाना चाहती है।”
धूमल के पीछे लम्बा सियासी अनुभव
हिमाचल प्रदेश में जे पी नड्डा की उम्मीदवारी की आस पाले समर्थकों को उस वक्त झटका लगा जब भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने प्रेम कुमार धूमल को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया। पिछले 2 सालों से भाजपा आलाकमान जिस तरह से नड्डा को हिमाचल प्रदेश में प्रोजेक्ट कर रहा था उसके बाद धूमल की उम्मीदवारी की घोषणा चौंकाने वाली बात थी। जे पी नड्डा को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और जे पी नड्डा की भी पहली पसंद माना जा रहा था। हिमाचल प्रदेश में पीएम मोदी और अमित शाह की रैलियों की जिम्मेदारी भी नड्डा के कन्धों पर थी। पर राज्य में सत्ता वापसी की कोशिशों में जुटे भाजपा आलाकमान ने ऐन वक्त पर व्यक्तिगत पसंद नड्डा की जगह सियासी समीकरणों में फिट बैठ रहे धूमल पर दांव खेला।
धूमल के सहारे भाजपा को सत्ता वापसी की उम्मीद
भाजपा हिमाचल प्रदेश में सत्ता वापसी को कितनी आतुर है इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि भाजपा आलाकमान ने सत्ता की चाह में ‘रूल 75’ को ताक पर रख दिया है। अमित शाह ने मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर प्रेम कुमार धूमल के नाम का ऐलान कर यह स्पष्ट कर दिया कि भाजपा सत्ता वापसी के लिए एक बार अपने सिद्धांतों से समझौता कर सकती है। प्रेम कुमार धूमल की आयु 73 वर्ष, 6 महीने है। चुनाव परिणाम की घोषणा के वक्त तक उनकी आयु 73 वर्ष, 8 महीने हो जाएगी। अगर भाजपा के ‘रूल 75’ के लिहाज से देखें तो बतौर मुख्यमंत्री उनके पास 16 महीने का कार्यकाल होगा। भाजपा पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल की लोकप्रियता को हिमाचल में सत्ता वापसी का आधार बनाना चाहती है।
भाजपा आलाकमान की पहली पसंद थे नड्डा
हिमाचल प्रदेश के लिए भाजपा आलाकमान की पहली पसंद मोदी सरकार के मंत्री जे पी नड्डा थे। प्रेम कुमार धूमल को ऐन वक्त पर मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर भाजपा आलाकमान ने हिमाचल प्रदेश में जातिगत समीकरणों को साधने का प्रयास किया है। हिमाचल प्रदेश के मतदाता वर्ग पर नजर डालें तो राज्य की तकरीबन 37 फीसदी आबादी राजपूत समाज की है। ब्राह्मण मतदाताओं की आबादी 18 फीसदी है। सवर्ण वर्ग को हमेशा से भाजपा का कोर वोटबैंक माना जाता है। मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार घोषित किए गए प्रेम कुमार धूमल राजपूत समाज से आते हैं वहीं मोदी सरकार में मंत्री जे पी नड्डा ब्राह्मण समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं। अगर जातिगत समीकरणों के आधार पर देखें तो धूमल का पलड़ा भारी दिखाई देता है। भाजपा आलाकमान ने इसी आधार पर जे पी नड्डा की जगह प्रेम कुमार धूमल को तरजीह दी है।
2014 में मोदी सरकार के गठन के बाद नवंबर में हुए पहले मन्त्रिमण्डल विस्तार में जे पी नड्डा को स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय का कार्यभार सौंपा गया था। बतौर स्वास्थ्य मंत्री अपने 3 वर्षों के कार्यकाल में नड्डा काफी प्रभावी रहे हैं और मोदी सरकार के सबसे लोकप्रिय मंत्रियों में से एक हैं। पिछले 2 सालों से भाजपा आलाकमान जिस तरह से नड्डा के लिए हिमाचल प्रदेश में भूमिका बना उम्मीदें दी थी, धूमल की उम्मीदवारी की घोषणा से उनपर पानी फिर गया। जे पी नड्डा को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और जे पी नड्डा की भी पहली पसंद माना जा रहा था। हिमाचल प्रदेश में पीएम मोदी और अमित शाह की रैलियों की जिम्मेदारी भी नड्डा के कन्धों पर थी। पर राज्य में सत्ता वापसी की कोशिशों में जुटी भाजपा ने ऐन वक्त पर व्यक्तिगत पसंद नड्डा की जगह सियासी समीकरणों में फिट बैठ रहे धूमल पर दांव खेला।
सियासी दंगल के जातिगत समीकरणों पर नजर
हिमाचल प्रदेश एक हिन्दू बाहुल्य राज्य है। राज्य में 95 फीसदी आबादी हिन्दू मतदाताओं की है। इसमें सवर्णों की सहभागिता 55 फीसदी है। राजपूत समाज के मतदाताओं की संख्या 37 फीसदी है वहीं ब्राह्मण समाज के मतदाताओं की संख्या 18 फीसदी है। हिमाचल भाजपा के 2 बड़े चेहरे प्रेम कुमार धूमल और जे पी नड्डा क्रमशः राजपूत और ब्राह्मण समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं। भाजपा इन दोनों दिग्गजों को एक साथ लाकर सवर्ण मतदाताओं को अपनी ओर मिलाने की पुरजोर कोशिश में लगी है। 2012 के विधानसभा चुनावों में भाजपा महज 4 फीसदी के मतान्तर से कांग्रेस से पीछे रह गई थी। हालाँकि इसके बाद हुए 2014 लोकसभा चुनावों में भाजपा ने हिमाचल प्रदेश की चारों सीटें जीतकर कांग्रेस को अपनी जबरदस्त मौजूदगी का एहसास करा दिया था।
हिमाचल प्रदेश विधानसभा में कुल 68 सीटें है। 2012 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने 36 सीटों पर कब्जा जमाया था वहीं भाजपा को 26 सीटों पर कामयाबी मिली थी। अन्य दलों के हाथ 6 सीटें लगी थी। 2012 में हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा को 2007 के चुनावों की अपेक्षा 16 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा था वहीं कांग्रेस को 13 सीटों का फायदा हुआ था। अगर मतों के लिहाज से देखें तो कांग्रेस को 43 फीसदी मत मिले थे वहीं भाजपा को 39 फीसदी मत मिले थे। 2007 के चुनावों की अपेक्षा भाजपा के मत प्रतिशत में 5 फीसदी की कमी आई थी वहीं कांग्रेस का मत प्रतिशत 5 फीसदी बढ़ गया था। 4 फीसदी मतान्तर के बावजूद भाजपा कांग्रेस से 10 सीट पीछे रही थी। अब भाजपा सवर्ण समीकरण को साध मतान्तर पाटकर सत्ता वापसी की राह तलाशने में जुटी है।
हिमाचल चुनाव प्रचार में उतरे योगी
बीते डेढ़ दशक में भाजपा ने देशभर में अपनी छवि में सुधार किया है और अब उसकी पहचान सिर्फ हिंदुत्ववादी राजनीति करने वाले दल की नहीं रह गई है। भाजपा भले ही विकास की राजनीति की बात करे पर हिंदुत्व आज भी भाजपा का अमोघ अस्त्र है। भाजपा ऐन वक्त में हर चुनावों से पहले किसी ना किसी रूप में हिंदुत्व का मुद्दा उठाती रहती है फिर चाहे वो धर्मांतरण हो या लव जेहाद। भाजपा ने उसके कोर वोटबैंक कहे जाने वाले सवर्ण वर्ग को साधने के लिए हिमाचल प्रदेश में भी हिंदुत्व कार्ड खेला है। एक ओर जहाँ धूमल-नड्डा की जोड़ी राजपूत-ब्राह्मण एकता की बानगी पेश करती नजर आ रही है वही दूसरी ओर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और देश में हिंदुत्व के सबसे बड़े चेहरे माने जाने वाले योगी आदित्यनाथ हिन्दू मतदाताओं को लुभाते नजर आ रहे हैं।
भाजपा हिमाचल प्रदेश की सत्ता तक पहुँचने के लिए एक-एक कर अपने तरकश से सियासी तीर निकाल रही है। बीते 30 अक्टूबर को योगी आदित्यनाथ ने हिमाचल प्रदेश का दौरा किया था। योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि कांग्रेस ने देव भूमि हिमाचल को अपराध भूमि में तब्दील कर दिया है। कभी अपने बेबाक भाषणों से चर्चा में रहने वाले योगी आदित्यनाथ की लोकप्रियता में मुख्यमंत्री बनने के बाद जबरदस्त इजाफा हुआ है और देशभर में उनको जनसमर्थन मिल रहा है। योगी आदित्यनाथ आज भाजपा के फायरब्रांड नेता होने के साथ-साथ स्टार प्रचारकों की सूची में भी अग्रणी स्थान पर आते हैं। योगी आदित्यनाथ को हिमाचल प्रदेश में चुनावी अभियान में शामिल कर भाजपा ने हिन्दू मतदाताओं को लुभाने की कोशिश की है। हिमाचल प्रदेश की 95 फीसदी से अधिक आबादी हिन्दू है। ऐसे में योगी का प्रचार अभियान हिमाचल के चुनाव परिणामों पर असर डाल सकता है।
क्या भाजपा की नैया पार लगा पाएंगे धूमल?
हिमाचल प्रदेश की सत्ताधारी कांग्रेस सरकार की राह प्रेम कुमार धूमल की उम्मीदवारी के ऐलान के बाद और मुश्किल होती नजर आ रही है। मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के भ्रष्टाचार के आरोपों में फंसने के झटके से कांग्रेस अभी उबर नहीं पाई थी कि राज्य सरकार और पार्टी संगठन में उभरे मतभेद सतह पर आ गए। कांग्रेस आलाकमान ने हस्तक्षेप कर किसी तरह से इस मामले का हल निकाला तो वीरभद्र सिंह सरकार में मंत्री रहे अनिल शर्मा और पूर्व केंद्रीय मंत्री और दिग्गज कांग्रेसी नेता सुखराम ने भाजपा में शामिल होने का ऐलान कर दिया।
भाजपा अपने सभी शीर्ष नेताओं और बड़े चेहरों को हिमाचल प्रदेश के चुनावी प्रचार में शामिल कर जीत हासिल करने की हरसंभव कोशिश कर रही है। 95 फीसदी हिन्दू आबादी वाले हिमाचल में मतदाताओं को लुभाने के लिए भाजपा ने देश में हिंदुत्व के सबसे बड़े चेहरे योगी आदित्यनाथ को भी चुनावी प्रचार अभियान में उतार चुकी है। भाजपा हिमाचल प्रदेश में अपने कोर वोटबैंक माने जाने वाले सवर्ण समाज के वोटरों को साधने की हर मुमकिन कोशिश करती नजर आ रही है। चुनावों से ऐन पहले भाजपा आलाकमान की पहली पसंद जे पी नड्डा की जगह प्रेम कुमार धूमल की उम्मीदवारी की घोषणा इस बात का सबूत है।
हिमाचल प्रदेश में राजपूत समाज किंग मेकर की भूमिका में है और धूमल राजपूत समाज से ही आते हैं। जे पी नड्डा ब्राह्मण समाज से आते है जो आबादी के लिहाज से हिमाचल प्रदेश का दूसरा सबसे बड़ा मतदाता वर्ग है। नड्डा-धूमल की जोड़ी हिमाचल प्रदेश की सियासत में 55 फीसदी हिस्सेदारी रखने वाले सवर्ण मतदाताओं को साधने का प्रयास कर रही है। प्रेम कुमार धूमल के पुत्र और हमीरपुर से सांसद अनुराग ठाकुर भी हिमाचल प्रदेश में डेरा डाले हुए हैं और नतीजों को भाजपा के पक्ष में करने की हरसंभव कोशिश कर रहे हैं। यह चुनाव प्रेम कुमार धूमल के राजनीतिक जीवन का आखिरी चुनाव भी साबित हो सकता है क्योंकि भाजपा में 75 वर्ष की आयुसीमा पार करने के बाद सक्रिय राजनीति से सेवानिवृत्ति की परंपरा है। अब हर कोई यह जानने को उत्सुक है कि क्या प्रेम कुमार धूमल हिमाचल प्रदेश में भाजपा की साख धूमिल होने से बचा पाएंगे?