हिमाचल प्रदेश में 9 नवंबर को प्रस्तावित विधानसभा चुनावों के लिए चुनाव प्रचार अभियान अपने अंतिम चरण में हैं। एक ओर राज्य की प्रमुख विपक्षी पार्टी भाजपा अपने सियासी तरकश से सभी तीर निकाल रही है वहीं सत्ताधारी दल कांग्रेस की ओर से मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह अकेले मोर्चा संभाले हुए हैं। भाजपा पीएम मोदी, पार्टी अध्यक्ष अमित शाह, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी, राजनाथ सिंह, जे पी नड्डा, स्मृति ईरानी समेत अपने सभी शीर्ष नेताओं को हिमाचल प्रदेश में चुनाव प्रचार में उतार चुकी है वहीं कांग्रेस की जिम्मेदारी वीरभद्र सिंह के बुजुर्ग कन्धों पर टिकी हैं। कांग्रेस आलाकमान से उन्हें अब तक कोई खास सहयोग नहीं मिला है और पार्टी के स्टार प्रचारक भी हिमाचल से नदारद नजर आ रहे हैं। अपने राजनीतिक जीवन में अजेय रहने वाले ‘राजा साहब’ को अपनी आखिरी सियासी पारी खेलने में मुश्किलें पेश आ रही हैं।
खानापूर्ति करने पहुँचे राहुल गाँधी
कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी गुजरात में अपना दौरा समाप्त कर आज एक दिन के लिए हिमाचल प्रदेश में चुनाव प्रचार करने पहुँचे हैं। हिमाचल प्रदेश चुनावों को लेकर आलाकमान की बेरुखी से वीरभद्र सिंह नाराज बताए जा रहे हैं। हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह और कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी में बहुत बनती नहीं है और हिमाचल चुनाव प्रचारों में इसकी बानगी देखने को मिली है। हिमाचल प्रदेश में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और पीएम मोदी खुद कई रैलियां कर चुके हैं। पीएम मोदी ने कल अपनी चुनावी सभा में कहा था कि कांग्रेस हिमाचल प्रदेश में बिना लड़े ही हार स्वीकार चुकी है। कांग्रेस के चुनावी मैदान छोड़कर भाग जाने से उन्हें मजा नहीं आ रहा है। ऐसे में चुनाव प्रचार के आखिरी चरण में राहुल गाँधी के हिमाचल प्रदेश दौरे को महज एक खानापूर्ति की तरह देखा जा रहा है।
मण्डी की रैली के बाद से नदारद थे राहुल
कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी आखिरी बार हिमाचल प्रदेश में मण्डी की रैली में नजर आए थे। मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह और कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष सुखविंदर सिंह के मतभेदों को सुलझाने के बाद कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी ने एक माह पूर्व मण्डी की रैली से वीरभद्र सिंह को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित किया था और कांग्रेस के चुनावी अभियान का श्री गणेश किया था। हालाँकि इसके बाद एक महीने के अंतराल में राहुल गाँधी पलटकर कभी हिमाचल प्रदेश नहीं आए। हिमाचल प्रदेश के लिए राहुल गाँधी की पसंद पार्टी प्रदेशाध्यक्ष सुखविंदर सिंह थे। सुखविंदर सिंह टिकट बँटवारों में भी अपनी भूमिका चाहते थे जिसे लेकर वीरभद्र सिंह ने उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। वीरभद्र सिंह ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी को पत्र लिखकर अपना विरोध जताया था और उनकी बात ना मानने पर चुनाव ना लड़ने और ना लड़ने देने की धमकी दी थी।
हिमाचल कांग्रेस के 27 विधायकों ने वीरभद्र सिंह का समर्थन किया था और उनके पक्ष में हस्ताक्षर युक्त चिट्ठी लिखी थी। उन्होंने वीरभद्र सिंह को अपना नेता माना था और उनके नेतृत्व में चुनाव लड़ने की बात कही थी। यह लगातार दूसरा मौका था जब वीरभद्र सिंह ने धमकी भरे लहजे का इस्तेमाल करते हुए खुद को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करवाया था। वीरभद्र सिंह वैसे भी राहुल गाँधी को कोई खास तवज्जो नहीं देते हैं और सीधे सोनिया गाँधी से बात करते हैं। इस वजह से राहुल गाँधी ने हिमाचल चुनाव प्रचार से दूरी बनाए रखी और इस दौरान 2 बार गुजरात का दौरा कर लिया। गुजरात में विधानसभा चुनाव 9 व 13 दिसंबर को होने हैं जिसमें अभी भी एक महीने से अधिक का समय शेष है। पार्टी में उभरे मतभेदों की वजह से हिमाचल प्रदेश में सत्ताधारी दल कांग्रेस बैकफुट पर नजर आ रही है।
पीएम मोदी ने ली कांग्रेस की चुटकी
चुनावी प्रचार के दौरान हिमाचल प्रदेश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कांग्रेस पर तंज कसते हुआ कहा था, “कांग्रेस हार के डर से हिमाचल प्रदेश में चुनावी मैदान छोड़कर भाग चुकी है। कांग्रेस का कोई वरिष्ठ नेता हिमाचल प्रदेश में नजर नहीं आ रहा है। कांग्रेस को हिमाचल प्रदेश में अपनी हार निश्चित दिख रही है। इस वजह से आलाकमान ने वीरभद्र सिंह को सियासी मोर्चे पर अपनी तकदीर के सहारे अकेला छोड़ दिया है।” हिमाचल चुनावों को लेकर कांग्रेस के रुख पर चुटकी लेते हुए उन्होंने कहा था, ” इस बार मजा नहीं आ रहा। कांग्रेस मैदान छोड़कर भाग चुकी है। मीडिया में भी बीजेपी के बारे में ही लिखा जा रहा है। अरे भाई कांग्रेस के नेता आते, धूमल नहीं तो मोदी पर ही हमला करते पर इस बार कुछ नहीं दिख रहा है। यह चुनाव पूरी तरह एकतरफा हो चुका है।”
चुनाव प्रचार में कांग्रेस से कहीं आगे है भाजपा
भाजपा हिमाचल प्रदेश की सत्ता में आने की हरसंभव कोशिश कर रही है और चुनाव प्रचार अभियान में भी कांग्रेस से एक कदम आगे नजर आ रही है। भाजपा के शीर्ष नेता लगातार हिमाचल के वादियों की खाक छान रहे हैं और मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार प्रेम कुमार धूमल दिन-रात एक किए हुए हैं। समाचार पत्रों, टीवी चैनलों हर जगह पर भाजपा के विज्ञापन छाए हुए हैं। सड़कों के किनारे भाजपा प्रत्याशियों के बड़े-बड़े बैनर नजर आ रहे हैं। बड़ी-बड़ी टीवी स्क्रीन लगाए भाजपा के करीब 65-70 प्रचार वाहन दिन-रात विधानसभा क्षेत्रों में घूम रहे हैं। भाजपा के संगठन कार्यकर्ता दूर गाँवों में जाकर मतदाताओं को रिझाने का प्रयास कर रहे हैं। दूसरी ओर कांग्रेस ने अपने 40 स्टार प्रचारकों के साथ हिमाचल के सियासी दंगल में उतरने का ऐलान किया था मगर अभी तक उसकी घोषणा जमीनी रूप नहीं ले सकी है।
ब्राह्मण चेहरे की कमी से जूझ रही है हिमाचल कांग्रेस
हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस एक सशक्त और लोकप्रिय ब्राह्मण चेहरे की कमी से जूझ रही है। अगर हिमाचल प्रदेश के जातीय समीकरणों पर गौर करें तो राजपूत समाज राज्य में किंग मेकर की भूमिका में है। मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह राजपूत समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं जिसकी मतदाता वर्ग में भागीदारी 37 फीसदी है। इसी को मद्देनजर रखते हुए भाजपा ने ऐन वक्त पर प्रेम कुमार धूमल को अपना चेहरा बनाते हुए मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया था। 18 फीसदी मत प्रतिशत के साथ हिमाचल प्रदेश के मतदाता वर्ग में दूसरी सबसे बड़ी भागीदारी ब्राह्मण समाज की है। भाजपा ने राज्य में ब्राह्मण समाज के मतदाताओं को साधने के लिए मोदी सरकार के मंत्री जे पी नड्डा को आगे किया है और उसे इसका फायदा मिलता भी दिख रहा है।
धूमल-नड्डा की राजपूत-ब्राह्मण की जोड़ी भाजपा के लिए सवर्णों को साधने का काम कर रही थी और योगी आदित्यनाथ के दौरे ने इसमें ‘सोने पर सुहागा’ का काम किया। इस बिंदु पर कांग्रेस भाजपा से पिछड़ती नजर आ रही है। हिमाचल कांग्रेस या कांग्रेस केंद्रीय नेतृत्व के पास ब्राह्मण समाज के मतदाताओं को साधने के लिए कोई लोकप्रिय चेहरा नहीं हैं। देशभर में कांग्रेस की छवि हिंदुत्व विरोधी दल की बनी हुई है और भाजपा इसका फायदा उठा रही है। हिमाचल कांग्रेस के एक बड़े ब्राह्मण चेहरे और पूर्व केंद्रीय मंत्री सुखराम बेटे अनिल शर्मा संग भाजपा में शामिल हो चुके हैं वहीं पूर्व केंद्रीय मंत्री और राज्यसभा सांसद आनंद शर्मा को हिमाचल प्रदेश की राजनीति में कोई खास दिलचस्पी नहीं है। ऐसे में प्रचारकों की कमी से जूझ रही हिमाचल कांग्रेस के समक्ष भाजपा के इस जातीय समीकरण का काट निकालने की समस्या खड़ी हो गई है।
अकेले पड़े वीरभद्र सिंह
हिमाचल प्रदेश में चुनाव प्रचार अभियान के लिए मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह को अन्य किसी बड़े चेहरे का साथ नहीं मिल पा रहा है। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी इस समय अपना पूरा ध्यान गुजरात पर लगाए हुए हैं। वैसे भी वीरभद्र सिंह राहुल गाँधी को नेता नहीं मानते हैं और उनकी राजनीतिक समझ को खास तवज्जो नहीं देते हैं। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी लम्बे समय से अस्वस्थ चल रही हैं और इस वजह से वह प्रचार अभियान में शामिल नहीं हो पा रही हैं। हिमाचल प्रदेश कांग्रेस प्रभारी सुशील कुमार शिंदे वीरभद्र सिंह के इर्द-गिर्द ही सियासी चालें चल रहे हैं। राज्यसभा सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री आनंद शर्मा को हिमाचल प्रदेश की राजनीति से कोई खास लगाव नहीं है और उनका राज्य में बड़ा जनाधार भी नहीं है। दिग्गज कांग्रेसी नेता अम्बिका सोनी ने भी हिमाचल चुनाव प्रचारों में कोई खास दिलचस्पी नहीं दिखाई है।
नहीं नजर आए कांग्रेस के स्टार प्रचारक
हिमाचल प्रदेश चुनावों के मद्देनजर अपने प्रचार अभियान के लिए कांग्रेस आलाकमान ने 40 स्टार प्रचारकों की सूची जारी की थी। इनमें सोनिया गाँधी, राहुल गाँधी, कैप्टन अमरिंदर सिंह, सचिन पायलट, ज्योतिरादित्य सिंधिया, रणदीप सुरजेवाला, आनंद शर्मा, अम्बिका सोनी और नवजोत सिंह सिद्धू जैसे बड़े नाम शामिल थे। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी स्वास्थ्य कारणों से चुनाव प्रचार में शामिल नहीं हो पा रही हैं वहीं कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी गुजरात से फुर्सत नहीं निकाल पा रहे हैं। अन्य नेताओं में सचिन पायलट, रणदीप सुरजेवाला, ज्योतिरादित्य सिंधिया न्यूज चैनलों पर कांग्रेस सरकार का पक्ष रखते नजर आ जा रहे हैं। वहीं शेष स्टार प्रचारक शिमला स्थित पार्टी प्रदेश मुख्यालय में बैठकर रणनीति बना रहे हैं और लौट रहे हैं। कांग्रेस नेताओं की चुनावी मेहनत सतह पर नजर नहीं आ रही है जो पार्टी के लिए घातक साबित हो सकती है।
आखिरी चरण में मिला अमरिंदर सिंह का साथ
हिमाचल प्रदेश में ‘राजा साहब’ के नाम से जाने जाने वाले वीरभद्र सिंह पूरी तन्मयता के साथ चुनाव प्रचार में जुटे हुए हैं। हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की नैया पूरी तरह से वीरभद्र सिंह के भरोसे हैं। अपने राजनीतिक जीवन में अजेय रहने वाले वीरभद्र सिंह इससे पहले कभी भी इतने मुश्किल हालातों में नहीं फंसे थे। हिमाचल प्रदेश के पड़ोसी राज्य पंजाब के मुख्यमंत्री और साफ-सुथरी छवि वाले नेता कैप्टन अमरिंदर सिंह चुनाव प्रचार के अंतिम चरण में महज एक दिन के लिए कांग्रेस के चुनाव प्रचार में उतरे हैं। हिमाचल प्रदेश के सीमावर्ती जिलों के युवा रोजगार के लिए पंजाब का रुख करते हैं। ऐसे में अमरिंदर सिंह का शुरूआती दौर से प्रचार अभियान में शामिल होना इन क्षेत्रों में कांग्रेस का प्रभाव बढ़ा सकता था। अब हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस का भविष्य पूरी तरह से वीरभद्र सिंह के सियासी समझ, राजनीतिक अनुभव और लोकप्रियता पर निर्भर है।
अन्तर्कलह से जूझ रही है हिमाचल कांग्रेस
हिमाचल कांग्रेस अन्तर्कलह से जूझ रही है। हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की राज्य इकाई विधानसभा चुनावों की घोषणा से ठीक पहले 2 धड़ों में बँट गई थी। एक धड़े का नेतृत्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह कर रहे थे वहीं दूसरे धड़े की कमान प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और राहुल गाँधी के करीबी माने जाने वाले सुखविंदर सिंह सुक्खू के हाथों में थी। प्रदेश सरकार और कांग्रेस संगठन की आतंरिक लड़ाई खुलकर सामने आ गई थी। हिमाचल कांग्रेस के वरिष्ठतम नेता और मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुखविंदर सिंह से मतभेद थे और वह कांग्रेस आलाकमान पर खुलकर हमला बोल रहे थे। पार्टी आलाकमान से अपनी नाराजगी व्यक्त करते हुए मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने कहा था कि कांग्रेस पार्टी अपनी पूर्ववर्ती नीतियों से “अलग दिशा में” आगे बढ़ रही है। उन्होंने पार्टी को चेताया था कि मनमाफिक तरीके से चयन करने का यह तरीका पार्टी का खात्मा कर देगा।
6 बार हिमाचल प्रदेश की सत्ता संभल चुके वीरभद्र सिंह ने कहा था, “पार्टी नेतृत्व को सोचने और कामकाज करने के तरीकों में बदलाव लाने की जरुरत है। कांग्रेस कारोबारियों की पार्टी नहीं है। कांग्रेस का आधार देश की आजादी के लिए अपना जीवन कुर्बान करने वाले लोगों से जुड़ा है।” वीरभद्र सिंह कांग्रेस के सबसे वरिष्ठतम सदस्यों में से एक हैं और वह पण्डित जवाहर लाल नेहरू के समय से ही कांग्रेस से जुड़े हैं। वीरभद्र सिंह ने ऐलान कर दिया है कि यह उनका आखिरी चुनाव होगा। बता दें कि हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुखविंदर सिंह से मतभेद चल रहे थे और इस बाबत उन्होंने कांग्रेस सुप्रीमो सोनिया गाँधी को चिट्ठी भी लिखी थी। उनके पीछे 27 विधायकों ने उनके समर्थन में कांग्रेस सुप्रीमो को चिट्ठी लिखी थी और वीरभद्र सिंह के नेतृत्व में चुनाव लड़ने की बात कही थी।
वीरभद्र सिंह पर दारोमदार
हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस को बचाने का पूरा दारोमदार अब वीरभद्र सिंह के कन्धों पर हैं। अपने राजनीतिक जीवन में अजेय रहने वाले वीरभद्र सिंह पहले ही कह चुके हैं कि यह उनके राजनीतिक जीवन का आखिरी चुनाव होगा। इसके बावजूद भी उन्हें कांग्रेस आलाकमान से कोई खास सहयोग नहीं मिल रहा है और वह अभिमन्यु की तरह अकेले ही भाजपा का सियासी चक्रव्यूह भेदने की कोशिश कर रहे हैं। हिमाचल प्रदेश कांग्रेस इकाई और आलाकमान के बीच उभरे मतभेद स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहे हैं। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी स्वास्थ्य कारणों से चुनाव प्रचार में हिस्सा नहीं ले पा रही हैं वहीं कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी एक महीने बाद चुनाव प्रचार के आखिरी दौर में हिमाचल पहुँचे हैं।
हिमाचल प्रदेश की जनता ने हमेशा ही ‘राजा साहब’ को पलकों पर बिठाया है पर इस बार सियासी समीकरण कांग्रेस के खिलाफ जा रहे हैं। वीरभद्र सिंह भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे हुए हैं और राज्य में कांग्रेस का प्रभाव धीरे-धीरे खत्म हो रहा है। हिमाचल प्रदेश में सारे सियासी आंकलन और पूर्वानुमान गलत साबित होते आए हैं। हिमाचल प्रदेश की सियासत का मिजाज ही कुछ ऐसा है कि भाजपा और कांग्रेस बारी-बारी से अपनी सरकार बनाते आए हैं। इस लिहाजन हिमाचल प्रदेश में इस बार भाजपा की सरकार बनने के आसार नजर आ रहे हैं। अब तो हिमाचल प्रदेश की जनता के साथ-साथ सियासी पण्डितों को भी 18 दिसंबर का इंतजार है जब वीरभद्र सिंह की आखिरी सियासी पारी का प्रदर्शन सबके सामने आएगा।