चुनावी सरगर्मियों ने हिमाचल प्रदेश की सर्द वादियों का तापमान अचानक बढ़ा दिया है। शिमला की वादियों में पारा तो लगातार गिर रहा है पर हवाओं में सियासी गर्माहट का एहसास हो रहा है। चुनाव आयोग ने राज्य में विधानसभा चुनावों के लिए 9 नवंबर की तारीख मुकर्रर की है। केंद्र की सत्ताधारी पार्टी भाजपा हिमाचल प्रदेश में विपक्ष की भूमिका में है और इस बार सत्ता में आने के लिए बेताब दिख रही है। भाजपा आलाकमान हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनावों को लेकर काफी गंभीर है और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह लगतार हिमाचल प्रदेश में सक्रिय नजर आ रहे हैं। भाजपा के अन्य शीर्ष नेता भी हिमाचल में चुनाव प्रचार में लगे हुए हैं। भाजपा हिमाचल प्रदेश के सियासी फलक को भगवा करने की हरसंभव कोशिश कर रही और इसके लिए हर दांव आजमा रही है।
दूसरी ओर हिमाचल प्रदेश के सत्ताधारी दल कांग्रेस की नैया भगवान भरोसे है। वरिष्ठ कांग्रेसी नेता और हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने धमकी भरे अंदाज में कांग्रेस आलाकमान से राज्य में खुद को मुख्यमंत्री पद का दावेदार घोषित करवाया है और अब वह अलग-थलग से पड़ गए हैं। हिमाचल में कांग्रेस के चुनावी अभियान की डोर अकेले वीरभद्र सिंह संभाले हुए हैं और उन्हें आलाकमान से कुछ खास सहयोग नहीं मिल रहा है। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी ने हिमाचल की जिम्मेदारी सौंपकर वीरभद्र सिंह से अपना पल्ला झाड़ लिया है और अपना पूरा ध्यान गुजरात पर लगा रहे हैं। वहीं स्वास्थ्य कारणों की वजह से सोनिया गाँधी भी हिमाचल प्रदेश के चुनावी अभियान में शामिल नहीं हो पा रही हैं। बमुश्किल हफ्ते भर बाद होने वाले चुनावों में हिमाचल कांग्रेस की नैया डूबती नजर आ रही है।
जातिगत समीकरणों पर भाजपा का ध्यान
हिमाचल प्रदेश की सत्ता में आने के लिए भाजपा हर मुमकिन कोशिश कर रही है। प्रेम कुमार धूमल को मुख्यमंत्री पड़ का उम्मीदवार बनाना भाजपा की सियासी रणनीति का हिस्सा है। कोई भी सियासी दल चाहे विकास को कितनी भी तवज्जो दे पर आज भी देश में राजनीति का मुख्य आधार जातिवाद ही है। भाजपा ने हिमाचल प्रदेश में प्रेम कुमार धूमल को आगे करने जातीय और सियासी समीकरणों को साधने का प्रयास किया है। धूमल के पास 35 सालों का लम्बा राजनीतिक अनुभव भी है और वह पूर्व में 2 बार राज्य के मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं। हिमाचल प्रदेश में धूमल की अच्छी-खासी लोकप्रियता है और उनके पूर्ववर्ती कार्यकालों के दौरान राज्य में सड़क निर्माण, पेयजल सुविधा जैसी बुनियादी सुविधाओं का विकास हुआ था। इस वजह से उन्हें ‘सड़क वाला चीफ मिनिस्टर’ भी कहा जाता है।
हिमाचल प्रदेश के लिए भाजपा आलाकमान की पहली पसंद मोदी सरकार के स्वास्थ्य मंत्री जे पी नड्डा थे। प्रेम कुमार धूमल को ऐन वक्त पर मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर भाजपा आलाकमान ने हिमाचल प्रदेश में जातिगत समीकरणों को साधने का प्रयास किया है। हिमाचल प्रदेश के मतदाता वर्ग पर नजर डालें तो राज्य की तकरीबन 37 फीसदी आबादी राजपूत समाज की है। ब्राह्मण मतदाताओं की आबादी 18 फीसदी है। सवर्ण वर्ग को हमेशा से भाजपा का कोर वोटबैंक माना जाता है। मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार घोषित किए गए प्रेम कुमार धूमल राजपूत समाज से आते हैं वहीं मोदी सरकार में मंत्री जे पी नड्डा ब्राह्मण समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं। अगर जातिगत समीकरणों के आधार पर देखें तो धूमल का पलड़ा भारी दिखाई देता है। भाजपा आलाकमान ने इसी आधार पर जे पी नड्डा की जगह प्रेम कुमार धूमल को तरजीह दी है।
हिंदुत्व का दांव, सवर्ण वोटरों पर नजर
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भाजपा को विकास की राजनीति करने वाली पार्टी बताते हैं और यह काफी हद तक सही भी है। पर मतदाता वर्ग आज भी भाजपा को हिंदुत्ववादी राजनीति करने वाला दल मानता है। इसका नजारा अक्सर चुनावी रैलियों में दिख जाता है और भाजपा का सियासी मंच भगवा नजर आता है। भाजपा ने उसके कोर वोटबैंक कहे जाने वाले सवर्ण वर्ग को साधने के लिए हिमाचल प्रदेश में भी हिंदुत्व कार्ड खेला है। एक ओर जहाँ धूमल-नड्डा की जोड़ी राजपूत-ब्राह्मण एकता की बानगी पेश करती नजर आ रही है वही दूसरी ओर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और देश में हिंदुत्व के सबसे बड़े चेहरे माने जाने वाले योगी आदित्यनाथ हिन्दू मतदाताओं को लुभाते नजर आ रहे हैं। भाजपा हिमाचल प्रदेश की सत्ता तक पहुँचने के लिए एक-एक कर अपने तरकश से सियासी तीर निकाल रही है।
बीते 30 अक्टूबर को योगी आदित्यनाथ ने हिमाचल प्रदेश का दौरा किया था। योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि कांग्रेस ने देव भूमि हिमाचल को अपराध भूमि में तब्दील कर दिया है। कभी अपने बेबाक भाषणों से चर्चा में रहने वाले योगी आदित्यनाथ की लोकप्रियता में मुख्यमंत्री बनने के बाद जबरदस्त इजाफा हुआ है और देशभर में उनको जनसमर्थन मिल रहा है। योगी आदित्यनाथ आज भाजपा के फायरब्रांड नेता होने के साथ-साथ स्टार प्रचारकों की सूची में भी अग्रणी स्थान पर आते हैं। गुजरात भाजपा के एक नेता ने तो उन्हें भाजपा का तीसरा सबसे सशक्त नेता बता दिया था। योगी आदित्यनाथ को हिमाचल प्रदेश में चुनावी अभियान में शामिल कर भाजपा ने हिन्दू मतदाताओं को लुभाने की कोशिश की है। हिमाचल प्रदेश की 95 फीसदी से अधिक आबादी हिन्दू है। ऐसे में योगी का प्रचार अभियान हिमाचल के चुनाव परिणामों पर असर डाल सकता है।
वीरभद्र से खफा है कांग्रेस आलाकमान
हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह मौजूदा समय में कांग्रेस के सबसे वरिष्ठम नेताओं में से एक हैं। विधानसभा चुनाव की अधिसूचना जारी होने से एक महीने पूर्व हिमाचल प्रदेश कांग्रेस इकाई और पार्टी संगठन में मतभेद उभर कर सामने आए थे। हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह और कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष सुखविंदर सिंह के बीच सीटों के बँटवारे को लेकर खींचतान मची हुई थी। वीरभद्र सिंह ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी को इस बाबत चिट्ठी भी लिखी थी। हिमाचल कांग्रेस के 27 विधायकों ने उनके समर्थन में पीछे से अपनी हस्ताक्षर युक्त चिट्ठी लिखी थी। हिमाचल प्रदेश के कई वरिष्ठ कांग्रेसी नेता भी वीरभद्र सिंह के समर्थन में उतर आए थे। मामले की गंभीरता को देखते को देखते हुए कांग्रेस आलाकमान ने वीरभद्र सिंह को दिल्ली बुलाया और उन्हें प्रत्याशी चुनने का अधिकार दिया।
वीरभद्र सिंह कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष सुखविंदर सिंह को हटाने की मांग कर रहे थे जिसे ठुकरा दिया गया था। सुखविंदर सिंह कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी की पसंद थे। राहुल गाँधी ने वीरभद्र सिंह को आश्वस्त किया था कि टिकट बँटवारे में सुखविंदर सिंह का कोई हस्तक्षेप नहीं होगा लेकिन वह पार्टी प्रदेशाध्यक्ष पद पर बने रहेंगे। वीरभद्र सिंह और राहुल गाँधी के बीच वैचारिक मतभेद हैं और चुनाव प्रचारों के दौरान यह स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है। मण्डी की रैली से कांग्रेस के चुनावी अभियान का श्री गणेश करने के बाद राहुल गाँधी हिमाचल प्रदेश नहीं गए हैं और चुनाव पूर्व उनका एकमात्र दौरा 6 नवंबर को प्रस्तावित है। वीरभद्र सिंह राहुल गाँधी की सियासी समझ को ज्यादा तवज्जो नहीं देते हैं और सीधे सोनिया गाँधी से बात करते हैं। अब यह देखना है कि वीरभद्र सिंह अकेले दम पर कांग्रेस की नैया पार लगा पाते हैं या नहीं।
बढ़ रहे हैं भाजपा की सत्ता वापसी के आसार
हिमाचल प्रदेश का सियासी माहौल लगातार बदल रहा है। ताजा रुझानों के मुताबिक हिमाचल प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने के आसार हैं। मुख्यमंत्री पद के लिए धूमल की उम्मीदवारी के ऐलान के साथ भाजपा की सत्ता वापसी की उम्मीदें और भी बढ़ गई हैं। अगर हिमाचल प्रदेश में पिछले ढ़ाई दशकों के सियासी इतिहास पर नजर डालें तो कोई भी दल लगातार दूसरी बार सत्ता में नहीं आया है। भाजपा और कांग्रेस बारी-बारी से हिमाचल प्रदेश की सत्ता पर आसीन होती आई है। हिमाचल प्रदेश की राजनीति का रुख उस ऊँट की तरह है जो किसी भी करवट बैठ सकता है। यहाँ चुनाव परिणामों को लेकर किसी भी तरह के पूर्वानुमान और आंकलन गलत साबित होते रहे हैं।
वरिष्ठ भाजपा नेता और मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार प्रेम कुमार धूमल ने बतौर मुख्यमंत्री अपने कार्यकाल के दौरान राज्य में बुनियादी ढांचों के विकास, सड़क निर्माण पर काफी जोर दिया था जिस वजह से वह ‘सड़क वाला चीफ मिनिस्टर’ उपनाम से विख्यात है। ओपिनियन पोल के रुझान भी हिमाचल विधानसभा में विपक्ष के नेता की भूमिका में बैठे धूमल के पक्ष में है। ऐसे में अगर हिमाचल विधानसभा चुनावों के नतीजे भाजपा के पक्ष में आए तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए।