हिन्द महासागर में भारत का दबदबा लगातार बढ़ता जा रहा है। चीन ने भारत को घेरने की जो रणनीति बनाई थी वह एक के बाद विफल होती दिख रही है। चीन के महत्वाकांक्षी वन बेल्ट वन रोड प्रोजेक्ट को एक और झटका लगा है। भारत के निकटतम पड़ोसियों में से एक श्रीलंका के दक्षिणी तट हम्बनटोटा स्थित एयरपोर्ट के संचालन की कमान भारत के हाथों में आ सकती है। इस एयरपोर्ट का निर्माण चीन सरकार ने किया है और चीनी सरकार मौजूदा चीन-श्रीलंका करार के तहत इसके संचालन से आने वाली रकम से प्रोजेक्ट में लगा अपना निवेश वसूलती। भारत सरकार ने इस पर आपत्ति जताई थी। हिन्द महासागर क्षेत्र में भारत की मजबूत उपस्थिति और क्षमता के चलते अब श्रीलंका सरकार यह एयरपोर्ट भारत को सौंप सकती है।
हम्बनटोटा के इस एयरपोर्ट पर यात्रियों की संख्या बहुत कम है। यात्रियों की कमी के कारण ही इसे ‘घोस्ट एयरपोर्ट’ कहा जाता है। इस एयरपोर्ट का निर्माण चीनी सरकार की मदद से किया गे था और चीन के एग्जिम बैंक ने एयरपोर्ट निर्माण में निवेश किया था। संचालन मिलने की दशा में हम्बनटोटा के ‘घोस्ट एयरपोर्ट’ से हुई कमाई की रकम वाया भारत चीन सरकार को देय होगी। भारत के नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने श्रीलंका सरकार को इस एयरपोर्ट के संचालन अधिकार प्राप्त करने के लिए आवेदन किया है। भारत के अतिरिक्त चीन और अन्य 6 देशों ने भी हम्बनटोटा एयरपोर्ट के संचालन के लिए आवेदन किया है।
बता दें कि श्रीलंका के दक्षिणी तट पर बना यह एयरपोर्ट चीन के अति महत्वाकांक्षी वन बेल्ट वन रोड परियोजना के लिए अति महत्वपूर्ण है। अगर इकोनॉमिक टाइम्स की ख़बरों पर गौर करें तो भारत सरकार इस प्रोजेक्ट में 70 फ़ीसदी हिस्सेदारी लेने के लिए 205 मिलियन डॉलर का निवेश कर सकती है। इस निवेश की बदौलत भारत को अगले 40 सालों के लिए इस प्रोजेक्ट में शेयर मिल जायेगा। हम्बनटोटा एयरपोर्ट के संचालन का अधिकार मिलने से हिन्द महासागर क्षेत्र में भारत का दबदबा और भी बढ़ेगा। एयरपोर्ट से कुछ ही दूरी पर चीन ने हम्बनटोटा बंदरगाह विकसित किया है और अगले 99 सालों तक उसका संचालन चीन के हाथ में है। ऐसे में भारत एयरपोर्ट का संचालन अपने हाथ में लेकर हिन्द महासागर क्षेत्र में शक्ति संतुलन बनाये रखना चाहेगा।
बता दें कि श्रीलंका के पूर्व राष्ट्रपति महिंद्रा राजपक्षे के कार्यकाल के दौरान श्रीलंका सरकार ने चीन के साथ मिलकर हम्बनटोटा बंदरगाह को विकसित करने की योजना बनाई थी। इस योजना के तहत चीन को हम्बनटोटा में एयरपोर्ट निर्माण, स्टेडियम, स्पेशल इकोनॉमिक जोन, पांच सितारा होटल और अन्य इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण करना था। भारत सरकार ने इस पर आपत्ति जताई थी। श्रीलंका की जनता ने सड़कों पर उतरकर सरकार के खिलाफ हम्बनटोटा बंदरगाह को चीनी हाथों में बेचने का आरोप लगाते हुए प्रदर्शन किया था। भारत की आपत्ति और लोगों के विरोध के बाद श्रीलंका सरकार ने करार की शर्तों में बदलाव कर लिया। अब चीन अगले 99 सालों तक हम्बनटोटा बंदरगाह का संचालन ही संभाल सकता है और वह किसी भी सूरत में सैन्य गतिविधियों के लिए बंदरगाह का इस्तेमाल नहीं कर सकता है।
भारत को घेरने की अपनी रणनीति के तहत चीन ने श्रीलंका के दक्षिणी तट पर स्थित हम्बनटोटा बंदरगाह को विकसित करने और वहाँ चीनी निवेश बनाने के लिए करार किया था। इस करार की मुख्य बात यह थी कि चीन इसे सैन्य गतिविधियों के लिए भी इस्तेमाल कर सकता था। इस करार के तहत श्रीलंका सरकार ने चीन की सरकारी कंपनी चाइना मर्चेंट्स पोर्ट होल्डिंग्स को 80 फीसदी हिस्सेदारी देने की भी बात कही थी। मगर अब मौजूदा बदलावों के बाद चीन केवल इस बंदरगाह को विकसित करने में श्रीलंका की मदद करेगा। वह इसे सैन्य गतिविधियों के लिए इस्तेमाल नहीं कर सकेगा।
चीनी कंपनी अपने इस प्रोजेक्ट पर 1.5 अरब डॉलर निवेश कर रही थी। चीनी निवेश स्थापित करने के नाम पर चीन इलाके की 1500 एकड़ जमीन भी हथियाना चाहता था। वह यहाँ चीनी निवेश को बढ़ावा देने के लिए उद्योग स्थापित करना चाहता था। इतनी बड़ी जमीन का उपयोग उद्योग स्थापित करने के नाम पर किसी भी अन्य उद्देश्यों के लिए हो सकता था। अगर सैन्य कार्रवाइयों के लिए बंदरगाह का इस्तेमाल हो सकता है है तो मुमकिन है औद्योगिक क्षेत्रों में गुप्त सैन्य अड्डा भी स्थापित हो जाए। देश के सबसे करीबी समुद्री तट पर ऐसा कोई भी कदम हमारी समुद्री सीमाओं के साथ-साथ देश की सम्प्रभुता और सुरक्षा के लिए खतरा हो सकता था।
सफल रही पीएम मोदी की रणनीति
इसे पीएम मोदी की सफल रणनीति का परिणाम माना जा रहा है। पीएम मोदी के गत वर्ष श्रीलंका दौरे के दौरान एक चीनी पनडुब्बी को श्रीलंका में ठहरने की इजाजत नहीं मिली थी। श्रीलंका के इस रवैये के बाद से ही चीन के माथे पर शिकन आने लगी थी। श्रीलंका भारत के समीपवर्ती पड़ोसियों में है और श्रीलंकाई तट भारत के दक्षिणी छोर जैसे ही हैं। ऐसे में इन जगहों पर ड्रैगन की मौजूदगी निश्चित तौर पर भारत के आधिपत्य वाले हिन्द महासागर क्षेत्र में उसकी बढ़ती ताकत को इंगित करती। मुमकिन था आने वाले कुछ वक़्त के बाद इस क्षेत्र में भी हालात दक्षिणी चीन सागर जैसे हो जाते।