शुक्रवार को सीबीआई डायरेक्टर आलोक वर्मा केस को लेकर आए सुप्रीम कोर्ट के आदेश को बीजेपी और कॉंग्रेस दोनों ही अपने पाले में जाता हुआ देख रही हैं।
सीबीआई के डायरेक्टर आलोक वर्मा ने केंद्र सरकार द्वारा खुद को एकाएक छुट्टी पर भेजे जाने के लिए व एक अन्य आईजी स्टार के अधिकारी एम. नागेश्वर राव को उनका स्थान दिये जाने के विरोध में दिल्ली हाइकोर्ट में अर्जी दी है।
आलोक वर्मा ने कहा है उन्हे पद से हटाने के लिए केंद्र सरकार द्वारा उठाया गया कदम पूरी तरह से गैरकानूनी है। वर्मा ने कहा कि दिल्ली पुलिस इस्टैब्लिशमेंट एक्ट के सेक्शन 4ए के तहत सीबीआई डायरेक्टर का पद नियुक्ति के 2 साल तक सुरक्षित रहता है ऐसे में केंद्र सरकार द्वारा उनपर की गयी कार्यवाही पूरी तरह से अनैतिक व संविधान के खिलाफ है।
वहीं वर्मा ने दूसरे सीबीआई अधिकारी अस्थाना पर 3 करोड़ रुपये की रिश्वत लेने का भी आरोप लगाया है।
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक अन्तरिम आदेश पारित करते हुए केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) को दो हफ़्तों का समय देते हुए इस पूरे मामले कि जाँच करने के लिए कहा है। इसके तहत सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ जज एके पटनायक सीवीसी की कार्यप्रगति पर नज़र रखेंगे।
भाजपा के प्रवक्ता अनिल झा ने मीडिया से रूबरू हो कर बताया है कि वर्मा को छुट्टी पर भेजने का आदेश सीवीसी की पहल के बाद ही लिया गया था, हालाँकि सुप्रीम कोर्ट की जाँच पूरी होना जरूरी है।
वहीं कॉंग्रेस सुप्रीम कोर्ट की जाँच को एक बड़ी जीत के रूप में देख रही है, ऐसे में अगर सीवीसी द्वारा केंद्र सरकार के इरादों में जरा सा भी ऊंच-नीच निकलकर सामने आता है तो कॉंग्रेस भाजपा को बुरी तरह से घेर लेगी।