चीन द्वारा चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर (सीपीईसी) के जरिए करीब 60 अरब डॉलर का निवेश पाकिस्तान में किया जा रहा है। मुख्य रूप से चीन की निगाहें पाकिस्तान के ग्वादरह बंदरगाह को अधिक विकसित करने की है। चीन किसी भी तरह से पाकिस्तान के प्रमुख आर्थिक बंदरगाह पर अपना प्रभुत्व इस्तेमाल करना चाहता है। इसलिए ही चीन द्वारा यहां पर भारी निवेश किया जा रहा है।
ग्वादर पोर्ट में मरीन ऑपरेशंस के प्रमुख कप्तान गुल मोहम्मद का मानना है कि ग्वादर बंदरगाह दक्षिण एशिया का दुबई बनेगा। सिंध प्रांत के गवर्नर मोहम्मद जुबैर जो कि बंदरगाह के विकास के प्रमुख आर्किटेक्ट थे, इनके अनुसार सीपीईसी बनाने के पीछे चीन के इरादे का एक छिपा हुआ उद्देश्य है।
जब कोई देश महाशक्ति बन जाता है तो उसके पास काफी सारा पैसा होता है। तब वो देश अपना विस्तार ग्लोबली रूप से करता है। ये चीन के संदर्भ में कहा गया है। चीन व पाकिस्तान के लिए ग्वादर बंदरगाह में निवेश करना काफी जरूरी है। अमेरिका के साथ प्रतिस्पर्धा करने के लिए पाक को चीन से निवेश की जरूरत है। इससे उसे सुरक्षा का लाभ मिलता है।
कई पाकिस्तानी अधिकारियों के मुताबिक चीन के साथ सीपीईसी सौदा पाकिस्तान का एक शत्रुतापूर्ण तरीके से भारत के खिलाफ वास्तव में कदम है। साथ ही अमेरिका के साथ तेजी से उग्र संबंधों को मुक्त करने का एक तरीका है।
ग्वादर बंदरगाह को व्यापक रूप से चीन के मोतियों के तार के गहने के रूप में देखा जाता है। म्यांमार और श्रीलंका सहित अन्य देशों में सामरिक समुद्री ठिकानों के लिए चीन इस बंदरगाह का प्रयोग करना चाहता है। चीन में ग्वादर बंदरगाह की बड़ी योजना है।
इसके अलावा चीन पाकिस्तान में रेल लिंक, पाकिस्तान के सबसे बड़े हवाई अड्डे और अफगानिस्तान के लिए एक नई सड़क का निर्माण करेगा। लेकिन चीन की राह पाकिस्तान में इतनी आसान नहीं है। बलूचिस्तान प्रांत के लोग इसका विरोध कर रहा है। साथ ही भारत ने भी इस पर आपत्ति दर्ज करवाई है।
पाकिस्तान से ज्यादा उपस्थिति यहां चीनी सैनिकों की है। कराची विश्वविद्यालय के एक छात्र के मुताबिक यह स्पष्ट है कि जब आप कर्जदार है, तो आप ऋणदाता की तुलना में कमजोर स्थिति में है। यहां पाक कर्जदार व चीन ऋणदाता की भूमिका में है।