चीनी कंपनियां दुनिया के जिन 60 प्रमुख देशों में निवेश के लिए उत्सुक रहती हैं, उनमें भारत 6 अंकों की गिरावट के साथ 37वें पायदान पर मौजूद है। जबकि इकॉनोमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट द्वारा जारी इस सूची में सिंगापुर सबसे ऊपर है। मतलब साफ है, एक छोटे से देश सिंगापुर में चीनी फर्म अथवा कंपनियां सबसे ज्यादा निवेश करती हैं।
इकॉनोमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट द्वारा जारी ग्लोबल इन्वेस्टमेंट इंडेक्स के मुताबिक, चीनी प्रत्यक्ष विदेशी विनिवेश के मामले में सिंगापुर ने अमेरिका को भी पछाड़ दिया है। जबकि हांगकांग, मलेशिया और ऑस्ट्रेलिया सूची में टॉप 5 स्थानों में शामिल हैं।
इस ब्रिक इकॉनोमी सूची में रूस 6 स्थान फिसलकर 11वें स्थान पर पहुंच गया है, जबकि दक्षिण अफ्रीका 44 वें स्थान पर पहुंच चुका है। इंडेक्स में ब्राजील 53वें स्थान पर मौजूद है।
चीन के साथ तनावपूर्ण राजनीतिक संबंधों के चलते भारत इस सूची में 6 स्थान नीचे खिसक कर 37वें स्थान पर पहुंच चुका है।
ईआईयू रिपोर्ट के मुताबिक, चीनी निवेशकों की ओर से भारत को मिल रही चुनौतियों के बावजूद देश में विकास की अपार संभावनाएं है, इसीलिए चीन की कई प्रमुख कंपनियां जैसे ह्यूवेई (दूरसंचार कंपनी) और शाओमी (इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनी) भारत में जबरदस्त कमाई कर रही हैं।
ईआईयू की रिपोर्ट में इस बात का भी उल्लेख किया गया है कि ई कॉमर्स के क्षेत्र में कई चीन फर्म दक्षिण-पूर्व एशिया और भारत में मजबूती के साथ काम कर सकती हैं। बतौर उदाहरण अलीबाबा ने ईकॉमर्स कंपनियों लजादा और पेटीएम में निवेश किया है।
हांलाकि विश्व की विकसित अर्थव्यवस्थाएं इस सूचकांक में अभी भी शीर्ष पर बनी हुई हैं। जिनमें मलेशिया चौथे स्थान पर तथा कजाकिस्तान 13वें पायदान पर काबिज है। ठीक इसके विपरीत विकसित देश ब्रिटेन को इस सूची में 29वां स्थान मिला है।
रिपोर्ट में यह भी लिखा गया है कि भारत और ईरान तेजी से बढ़ते हुए बाजार है, ऐसे में यहां चीन की कंपनियां एक प्रतिस्पर्धी के रूप में निवेश कर सकती हैं, लेकिन अमेरिका और जापान अपने बाजारों में प्रौद्योगिकी और ब्रांडों की प्राप्ति के लिए चीनी फर्मों के विलय और अधिग्रहण की पेश करते हैं।