पहली इलेक्ट्रिक ट्रेन के शुरू होने से लेकर एशिया के सबसे बड़े रेल पुल के निर्माण होने तक यह साल 2018 भारतीय रेल के इतिहास में बहुत ही ख़ास माना जा रहा है। रेलवे ने इस साल कई ऐसी चीज़ें शुरू की जो इस देश में पहली बार आई है।
कौन-कौनसे मुकाम किये हासिल ?
इस साल भारतीय रेलवे ने इतिहास में एक वर्ष में सबसे ज्यादा मुकाम हासिल किये हैं। आइये जानते हैं :
सबसे तेज़ ट्रेन का निर्माण :
देश के राष्ट्रीय ट्रांसपोर्टर ने इस साल रेलवे के लिए भारत की सबसे तेज़ ट्रेन का निर्माण किया है। इसे ट्रेन 18 नाम दिया गया है एवं यह हमारे भारत में पहली ऐसी ट्रेन है जिसने ट्रायल के दोरान 180 kmph जितनी गति पकड़ी थी। इससे यह भारत की सबसे तेज़ गति वाली ट्रेन बन गयी है। लेकिन प्राधिकरण ने बताया की रेलवे ट्रैक इतनी गति को सहन करने की क्षमता नहीं रखते हैं अतः इसे अधिकतम 130 kmph की गति से चलाया जाएगा।
पहली वातानुकूलित लोकल ट्रेन की शुरुआत :
इस साल भारत को अपनी पहली वातानुकूलित लोकल ट्रेन भी मिली। यह ट्रेन 31 मार्च को चेन्नई के इंटीग्रल कोच फ़ैक्टरी से मुंबई के लिए रवाना हुई थी। यह ट्रेन सेंट्रल रेलवे की हार्बर लाइन पर चलेगी। इसमें वातानुकूलित होने के साथ साथ कई और भी नयी तकनीकें हैं।
भारत का सबसे बड़ा रेल पुल :
बोगिबील पुल जोकि असम में है, भारत का सबसे लंबा रेल पुल है। इसकी कुल लम्बाई 5 किलोमीटर है एवं यह पूल ब्रहापुत्र नदी के ऊपर बना हुआ है।
यह भारत का एकमात्र पूरी तरह से वेल्डेड पुल है, जिसमें डबल डेकर संरचना में निचले डेक पर दो रेलवे लाइन और ऊपरी पर एक तीन-लेन की सड़क है। यह पुल भारी सैन्य टैंकों की आवाजाही का सामना करने के लिए पर्याप्त मजबूत है। इसके साथ ही यह फाइटर प्लेन की लैंडिंग करने की क्षमता रखता है।
पहली इलेक्ट्रिक ट्रेन की शुरुआत :
भारतीय रेलवे के 100 प्रतिशत विद्युतीकरण योजना के अंतर्गत, इसने अपने एक डीजल इंजन को 69 दिनों में एक इलेक्ट्रिक में परिवर्तित कर दिया है। ऐसा करने से अब उसमे लागत भी कम लगेगी एवं उससे काम भी ज्यादा होगा। इस इंजन की हार्सपावर 2600 से बढ़कर 5000 hp हो गयी है।
दुर्घटना के आंकडें रहे सबसे कम :
इन सभी मुकामों के अलावा जो सबसे महत्वपूर्ण मुकाम था वह यह था की इस साल पिछले वर्षों में सबसे कम रेल दुर्घटना हुई। इस साल अप्रैल 2018 में 15 दिसंबर के बीच 45 घटनाएं दर्ज की गई थीं जहां पिछले साल इसी अवधि में यह 54 थी। इन आंकड़ों को पिछले तीन दशकों में सबसे कम माना जा रहा है। यह भाटिया रेलवे के लिए सबसे बड़ा मुकाम रहा है।